Adarsh Diary (आदर्श डायरी )
Tuesday, August 29, 2023
Friday, August 4, 2023
गुमनाम क्रांतिकारी शंभूनाथ आजाद
गुमनाम क्रांतिकारी.....
शंभूनाथ आजाद के खौफ से कांप उठा था मद्रास का अंग्रेज गर्वनर
बम और पिस्तौल के साथ पहुंचे थे उसका वध करने
ऊटी में बैंक में डाली थी डकैती, लूटे थे एक लाख रुपये
--प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड, कानपुर कांड, मेरठ कांड, लाहौर कांड आदि घटनाएं विख्यात रहीं, उसी प्रकार उटी मद्रास बम कांड मशहूर है, जिसके नायक शंभूनाथ आजाद आगरा की तहसील बाह में कचौराघाट के थे, जो मद्रास के गवर्नर को बमों से उड़ाने अपने साथियों के साथ पहुंच गए। उन्हें भले ही सफलता नहीं मिली, लेकिन अंग्रेज सरकार उनसे इतनी आतंकित हो गई कि उन्हें कालेपानी की सजा दी। कई बार वे जेल गए। सब कुछ सहा। आजादी के बाद उन्होंने अपनी शेष जिदंगी अपने गांव कचौरा घाट में ही बिताई।
बड़ी विचित्र और जौहरशाली दास्तां है शंभूनाथ आजाद की। 26 जनवरी सन् 1908 में जन्मे आजाद जब आठ वर्ष के थे, तभी उनके पिता शंकर लाल रिछारिया व माताजी का देवलोक गमन हो गया। वे काम की तलाश में पंजाब चले गये। वहां उनकी मुलाकात क्रांतिकारियों से हुई और वे उनके संगठन हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ और अनुशीलन समिति के सदस्य बन गए। वे दिल्ली में विभिन्न राज्यों से अस्त्र-शस्त्रों का संकलन करते थे। हथियारों को बुलंदशहर ले जाते समय पुलिस ने पकड़ लिया। दो साल की सजा हो गयी थी।
बोस्टर्न जेल में इन्होंने सिविल एंड मिलट्री गजट समाचार पत्र में मद्रास के गोरे गवर्नर का बयान पढ़ा-“इस प्रांत की जनता राजभक्त है, इसलिए क्रांतिकारियों की दाल नहीं गलती”।
इसे पढ़ कर आजाद बौखला गए और मद्रास के गवर्नर को उड़ाने की योजना बना ली। योजना बनी ही थी कि मनोली कांड (अंबाला केस) में प्रमुख अभियुक्त बना कर उन्हें जेल भेज दिया। मुकदमे में आजाद बरी हो गए। इसके बाद वे मद्रास के गवर्नर का वध करने के लिए फिर सक्रिय हो गए। तीन अच्छी क्वालिटी के रिवाल्वर खरीद ली। नौ साथियों के साथ ये अपने लक्ष्य पर रवाना हो गए।
धन की कमी को पूरा करने के लिए वे और उनके साथी ऊटी पहुंचे, यहां पर मैन मार्केट में ऊट कमांड नेशनल बैंक में डकैती डालकर एक लाख से अधिक रूपया लूट लिया। रुपये लेकर मद्रास पहुंचे, लेकिन उनके नौ साथियों में चार साथी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिये।
संकट पर संकट आते गए, लेकिन आजाद का लक्ष्य निर्धारित था। मुखबिर और सीआईडी ने मद्रास में यह खबर दे दी थी कि गर्वनर एंडरसन और वहां पहुंचे बंगाल के गर्वनर को गोलियों और बमों से उड़ा दिया जाएगा। आजाद और उनके साथियों ने बहुत सारे बम तैयार कर लिए थे। पुलिस के तीन सौ जवानों ने धावा बोल दिया। उनमें और क्रांतिकारियों में जम कर संघर्ष हुआ। जब सारे बम और गोलियां खत्म हो गई तो धूएं वाला बम चलाकर ये क्रांतिकारी वहां से फरार हो गए। इस कांड में उनके एक साथी गोविंदराम बहल गोली लगने से शहीद हो गए। कुछ समय बाद आजाद सहित अन्य सभी साथी गिरफ्तार कर लिए गए।
सात जुलाई 1933 को स्पेशल जज गोविंद मैनन की अदालत में आजाद व उनके साथियों को पेश किया गया। इन सहित पांच साथियों पर ऊटी बैंक डकैती का मुकदमा चला। आजाद को 25 साल की सजा हुई। 9 अगस्त 1933 को मद्रास सिटी बम कांड में इन्हें व दो क्रांतिकारियों को 20-20 साल के काले पानी की सजा हो गई। लेकिन 1938 में अन्य क्रांतिकारियों के साथ आजाद को भी रिहा कर दिया गया था। इसके बाद भी वे क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे। जेल जाते, उत्पीड़न सहते। फिर छूट जाते। यही क्रम भारत के आजाद होने तक चलता रहा। जिन साथियों ने इनके साथ क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लिया, उनमें रामचंद्र भट्ट, नरेंद्र पाठक, लज्जाराम, आनंद स्वरूप, सियाराम आदि थे। एक साथी रोशनलाल बम परीक्षण में विस्फोट हो जाने से शहीद हो गए थे। 12 अगस्त 1985 शंभूनाथ आजाद इस संसार से विदा हो गए।
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गांव में बनाया शहीद स्मारक
आजादी के बाद शंभूनाथ आजाद अपने गांव लौट आए। सरकार ने जो पेंशन दी, उससे उन्होंने ही शहीद स्मारक बनवाया। उसमें शहीदों के चित्र लगाए। बाह में इनकी स्मृति में शासन ने एक अस्पताल भी बनवाया है।
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वर्जन
आजाद जी के बारे में देश के तमाम क्रांतिकारियों ने लिखा है। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने भी अखंड ज्योति पत्रिका के स्वाधीनता दिवस विशेषांक में आजाद जी के बारे में अपने विचार लिखे थे।
--श्रीकृष्ण शर्मा, भतीजे
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मुझे गर्व होता है जब मेरे बाबा की वजह मुझे स्कूल, कालेज व अन्य जगह सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। बाबा ने जो देशभक्ति पूर्ण कार्य किए, वे हम सबके लिए ही नहीं, हम जैसे सभी युवाओं के लिए प्रेरणाप्रद होंगे।
शिवा शर्मा, पौत्र
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शंभूनाथ हमारे गांव के दो बार प्रधान चुने गए। वे देश के विकास के साथ-साथ अपने गांव के विकास की चिंता करते थे। उन्होंने समाज को जो दिया, वो शायद ही कोई दे पाए।
-शिशुपाल सिंह यादव, सेवानिवृत रोडवेज कर्मी
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आदर्श नंदन गुप्ता, मोबाइल नंबर 9837069255
Thursday, August 3, 2023
गुमनाम क्रांतिकारी,,,पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
श्रंखला---- गुमनाम क्रांतिकारी
डंडे पड़ते रहे, पर झंडा नहीं झुकने दिया
पं.श्रीराम शर्मा आचार्य विचार क्रांति अभियान से पहले थे स्वातन्त्र्य वीर सेनानी
गायत्री परिवार में हैं इनके करोड़ों अनुयायी
प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
आगराः युग ऋषि पं.श्रीराम शर्मा आचार्य ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में क्रांति की, उसके बाद वे विचार क्रांति अभियान के संवाहक बने। अनगिनत पुस्तकें लिखीं। उनके गायत्री परिवार में करोड़ों अनुयायी हैं।
20 सितंबर 1911 को आंवलखेड़ा में पं.रूपकिशोर शर्मा के यहां जन्मे पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी में बचपन से ही देशभक्ति और ईश्वर भक्ति की भावना थी। 15 वर्ष की अवस्था से ही आचार्य जी स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। सन् 1927 से 1933 स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रहे। 23 मार्च 1931 को सरदार भगतसिंह को फांसी पर लटकाये जाने के विरोध में निषेधाज्ञा तोड़ी और जुलूस आदि में भाग लिया, फलस्वरूप वे गिरफ्तार कर लिए गए। आंवलखेड़ा के खेड़ा गांव के निकट पारखी गांव में झंडा जुलूस निकाल रहे थे कि पुलिस पहुंच गई और जम कर डंडों से पिटाई की। जिससे अर्ध मूर्छित होकर जमीन पर गिर गए, लेकिन तिरंगे झंडे को अपने हाथ से नहीं छोड़ा था।
सन् 1933 में कांग्रेस का कोलकाता में अधिवेशन था। जिसमें आगरा से कई जत्थे वहां जा चुके थे। आखिरी जत्था पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के नेतृत्व में वहां जाने को निकाला। अंग्रेज सरकार उस अधिवेशन को असफल करना चाहती थी। सब-इंस्पेक्टर अनंतराम ने उन्हें पहचान लिया और उनकी घेराबंदी कर ली। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, जगन प्रसाद रावत व गोपाल नारायण शिरोमणि आदि को गिरफ्तार कर कारागार भेज दिया। कोलकाता अधिवेशन की अवधि समाप्त होने के बाद ही सभी को रिहा किया गया।
25 वर्ष की आयु में आचार्य जी ने एक सरकारी इमारत पर तिरंगा फहरा दिया, वे तत्काल गिरफ्तार कर लिए गए और लगभग एक साल तक कारागार में रहना पड़ा। उसके बाद सावरमती आश्रम में कुछ दिनों गांधी जी का सानिध्य प्राप्त किया।
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सैनिक में पत्रकारिता की
आगरा से प्रकाशित स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी समाचार पत्र सैनिक में आचार्य पंडित श्री राम शर्मा जी ने पत्रकारिता की। प्रधान संपादक पं.श्रीकृष्णदत्त पालीवाल जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। यहां “मत्त”नाम से राष्ट्रभक्ति की कविताएं भी लिखीं। इसके अलावा प्रताप अखबार में भी कार्य किया।
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2400 प्रज्ञा पीठ स्थापित
आचार्य जी शुरू से ही उदार प्रवृत्ति के रहे। उन्होंने आंवलखेड़ा में अपनी भूमि गायत्री मंदिर के लिए दान में दी। छोटे से भूखंड पर अपनी माताजी दानकुंवरि जी के नाम पर इंटर कालेज की स्थापना की। देश-विदेश में संख्या 2400 शक्तिपीठ स्थापित कीं। छह संस्थान प्रमुख हैं, गायत्री तपोभूमि, मथुरा, अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा, गायत्री शक्तिपीठ, आंवलखेड़ा आगरा, शन्तिकुंज, हरिद्वार एवं ब्रह्मवर्चस्व, हरिद्वार, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार। विश्व के 120 देशों में इनके केन्द्र स्थापित हैं। शान्तिकुंज हरिद्वार, एक विशाल आश्रम हैं, जहां 95 वर्षों से अखण्डदीप प्रज्वल्लित है, जिसे आचार्य जी ने ही प्रज्ज्वलित किया था। आचार्यजी ने हजारों ग्रंथों की रचना की है।
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-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार, आगरा
मोबाइल नंबर 9837069255
Wednesday, August 2, 2023
अमर उजाला, आगरा में शुरु हुई मेरी आलेख श्रंखला, गुमनाम क्रांतिकारी,,,,आज प्रथम आलेख।श्रंखला---स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम क्रांतिकारीहर लाठी के बाद मुख से निकलता था “इंकलाब-जिंदाबाद”अंग्रेजों की पिटाई से जेल में शहीद हुए थे इंद्रचंद्र पैगोरियाप्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकारआगराः फिदा वतन पर हो जो, आदमी दिलेर है वह,जो यह नहीं तो फकत हड्डियों का ढेर है वह ।भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इस महायज्ञ में जो आहुतियां दी गईं, उनमें अधिकांश नौजवान ही थे। जिन्होंने न अपने परिवार की चिंता की, न भविष्य की। फांसी के फंदों को चूम लिया, गोलियां खाईं या फिर ब्रिटिश पुलिस के अत्याचारों से तिल-तिल कर, जेलों में घुट-घुट कर अपने प्राणोत्सर्ग कर दिए। अमर शहीद इंद्रचंद्र पैगोरिया भी एक एसे 32 वर्षीय देशभक्त थे, जो हर सुबह “इंकलाब-जिंदाबाद” बोलते, जिससे आक्रोशित अंग्रेज सिपाही लाठियों से मारते। यह क्रम प्रतिदिन चलता था। इस अमानुषिक उत्पीड़न से इंद्र बीमार हो गए और जेल में ही उनकी शहादत हो गई थी। 1942 की अगस्त क्रांति में पूरा देश आंदोलित हो उठा था। क्योंकि इसे महात्मा गांधी ने अंतिम क्रांति घोषित कर दिया था और मंत्र दिया था “अंग्रेजो भारत छोड़ो”, “करो या मरो”। आगरा शहर में भी यह जन क्रांति पूरी तरह से बेकाबू हो गई थी। सरकारी कार्यालयों को आग लगाई गई। रेल की पटरियां उखाड़ी गईं। हर तरफ आंदोलन ही आंदोलन थे।इसी आंदोलन के तहत राया (मथुरा) के स्टेशन को फूंकने के लिए आगरा और मथुरा के युवकों का एक दल पहुंचा, इनमें इंद्रचंद्र पैगोरिया, नेकराम शर्मा,बाबूलाल शर्मा, बंगालीमल अग्रवाल, ओमप्रकाश तिवारी, कुंवर बहादुर सिंह, गुरु प्रसाद, ओंकारनाथ,रामबाबू, भगवानदास शामिल थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस पहले ही सतर्क हो गई थी। उसने सभी को गिरफ्तार कर लिया। उनमें शामिल इंद्रचंद्र पैगोरिया को भारत रक्षा कानून की धारा 35 और 38 के तहत दो वर्ष की सजा दी गई और मथुरा की जिला जेल में भेज दिया। उसके बाद आगरा जिला कारागार में रखने के बाद कोलकाता की अलीपुर जेल में पहुंचा दिया। इस जेल में पहुंच कर उन्होंने एक नया क्रम बना लिया, सुबह उठते ही पूरे जोश के साथ “इंकलाब-जिंदाबाद” का घोष करते थे। यह सुनकर वहां के जेलर का पारा हाई हो जाता था और उन्हें बेरहमी से पिटवाता था। लेकिन उनके जोश में कोई कमी नहीं आती थी। हार कर अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें सुल्तानपुर भेज दिया। तब तक उनका शरीर जर्जर और बीमार हो चुका था और वहां वे एक जनवरी 1943 को उन्होंने अंतिम सांस ली। आगरा का यह लाड़ला शहीद हो गया। -------------नेताजी सुभाषचंद बोस से था परिचयइंद्रचंद्र पैगोरिया का जन्म सन् 1911 में आगरा की फतेहाबाद तहसील के गांव जयनगर में चिकित्सक पिता विधिचंद व माता भाग्यवती के यहां हुआ था। इनकी मां भाग्यवती देवी महान क्रांतिकारी लाला लाजपतराय की छोटी बहन थीं। इंद्रचंद्र के भाई डा.हरिश्चंद्र पैगोरिया भी कई बार जेल हो आए थे। 1939 में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इंद्रचंद्र स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। इनका नेताजी सुभाषचंद बोस से भी परिचय था। इन्हीं के कहने पर सन् 1940 में आगरा आए थे और मोतीगंज की चुंगी के मैदान में सभा की थी। इंद्रचंद्र पैगोरिया को उनकी शहादत के बाद जो मान-सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। न शासन ने उनकी सुध ली न प्रशासन ने। माथुर वैश्य समाज ने अभी अपनी एक पुस्तक स्वाधीनता सेनानियों पर प्रकाशित की है। उसमें भी उनका कोई उल्लेख नहीं है। आदर्श नंदन गुप्ता, ए-3, सीताराम कालोनी, फेस-1, बल्केश्वर, आगरा। मोबाइल नंबर-9837069255
Monday, July 17, 2023
लता मंगेशकर,,,, मेरा सुंदर सपना टूट गया
लता मंगेशकरः मेरा सुंदर सपना टूट गया...
35 वर्षीय हिंदी पत्रकारिता में मैंने अनगिनत शख्सियतों के दर्शन किए, साक्षात्कार लिए, पर मेरी इच्छा थी कि एक बार आदरणीय लता मंगेशकर जी के भी दर्शन हो जाएं, क्योंकि आदरणीय आशा भोसले जी से मेरी मुलाकात तो आगरा आगमन पर हो चुकी थी।मेरी मुख्य धारा की पत्रकारिता यानि 1991 के बाद उनका शुभागमन आगरा में नहीं हुआ, इसलिए उनसे मेरा मिलना नहीं हो पाया। 30 अगस्त सन् 2014 में मुझे संपत्ति ग्रुप राजकोट व एमफारयू के अश्वमेधा सम्मान के लिए भाई श्री दुष्यंत प्रताप सिंह ने मुंबई आमंत्रित किया। तब मैंने काफी प्रयास किए उनसे मिलने के लिए। अपने राजश्री प्रोडक्शन के अपने मित्र के माध्यम से उन्हें पत्र भिजवाया। मुलाकात की बात भी हो गई। फिल्म कलाकार राजन यानि चार्ली चैप्लिन मेरे साथ थे। जब मैंने उनके आवास पर फोन किया तो उसे लता मंगेशकर जी की बहन उषा मंगेशकर जी ने रिसीव किया। उन्होंने तब बताया कि उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया है। वे एक सप्ताह तक नहीं मिल सकती हैं। अतः भारी मन से हम उनसे बिना मिले, मुंबई से वापस लौट आए थे।
उसके बाद से लगातार मेरा प्रयास रहा कि किसी तरह से उनसे मुलाकात हो जाए, लेकिन सफलता नहीं मिली। आज जब उनके निधन का समाचार मिला तो बहुत दुख हुआ। भगवान उनकी आत्मा को परम शांति प्रदान करें। बस उनका गाए गीत की यह पंक्तियां बार-बार याद आ रही हैं-जाने वाले से मुलाकात ना होने पाई...।
आदर्श नंदन गुप्ता
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