नहीं बना सका मनोरमा जी के सपनों का गांधी स्मारक
सर्वोदय विचारक, गांधीवादी आदरणीय श्रीमती मनोरमा शर्मा बहन जी ने शहर को अनेक आयाम प्रदान किए। कुछ सपनों को भी संजोया, जिसके लिए जीवन भर उन्होंने इसके प्रयास किए। जो सपने उन्होंने संजोए, जीते जी तो पूरे हो सकते थे, लेकिन उनकी आंख समय से पहले ही मिचने के कारण वे सपने अधूरे रह गए। उनमें एक सपना था यमुना पार स्थित गांधी स्मारक को पर्यटन केंद्र बनाने का। उसका उन्होंने कायाकल्प करा दिया था। वे चाहती थीं कि जो भी पर्यटक एत्माद्दोला का अवलोकन करने आएं, वे गांधी स्मारक भी देंखे। इसी प्रकार सपेरों का गांव के पास सकलपुर का उन्होंने विकास किया। उसके और अधिक विकास का सपना था। इन कार्यों से मुझे अवगत कराती रहती थीं, मुझे अक्सर इन स्थलों पर ले जाती थीं।
ये दोनों सपने उनके अभी तक अधूरे हैं। शासन, प्रशासन हमेशा दबाव की राजनीति करता है। जहां तक का विकास मनोरमा बहन जी ने कराया, उसके आगे कुछ नहीं बढ़ा, बल्कि उपेक्षा के कारण फिर से गांधी स्मारक दुर्गति की ओर है।
बहन जी ने अपने स्तर पर बड़े बड़े कार्यक्रम आगरा में कराए। एक लाख से अधिक लोगों की यमुना यात्रा का स्वागत उन्होंने आगरा में कराया, उनकी व्यवस्था कराई थी। उनका बल्केश्वर स्थित आवास पर देश के प्रमुख लोगों का आवागमन रहता था। मैंने यहाँ तांत्रिक श्री चंद्रास्वामी से दो बार मुलाकात की। यहीं पर गांधीवादी एसएन सुब्बाराब, मेधा पाटेकर, स्वामी अग्निवेश, जल पुरुष राजेंद्र आदि तमाम लोगों से साक्षात्कार लिए थे।
बहन जी का स्नेह हम लोगों पर सदैव रहा। हर हफ्ते किसी न किसी बहाने से मुलाकात और दो-चार बार फोन करना, यह उनकी आदत में शुमार था, यानि उनकी यह हम पर बड़ी कृपा थी। हमें कभी कोई दुख न हो, इसका पूरा ध्यान रखती थीं। उनका ममत्व अब हमेशा याद आता है। उनसे बिछ़ुड़े भले ही 12 साल हो गए, आज भी उनकी छवि आंखों में समाई रहती है।
उनके द्वारा स्थापित महिला शांति सेना का नेतृत्व उनकी पुत्रवधु श्रीमती वत्सला प्रभाकर कर रही है।
आज बहनजी की परम पुण्य तिथि पर कोटि-कोटि नमन करता हूं।
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