सुखद अनुभव रहे आकाशवाणी के
आकाशवाणी से मेरे बहुत पुराने संबंध रहे हैं। मेरे पूज्य पिताजी स्वाधीनता सेनानी स्व.रोशनलाल गुप्त करुणेश की आकाशवाणी मथुरा पर भेंट वार्ताएं हुआ करती थीं। क्योंकि पिताजी के मन मस्तिष्क में पूरा स्वाधीनता आंदोलन और विश्व की क्रांतियां समाहित थीं। इसलिए उन्हीं को आकाशवाणी मथुरा के अधिकारी बुलाया करते थे। वहां पर मैं पिताजी के साथ जाया करता था। वहां पर कई बार श्रद्धेय अचला नागर जी से भी मेरी भेंट हुई, लेकिन व्यस्तता उनकी बहुत हुआ करती थी।
उन दिनों ज्यादातर रिकार्डिंग, इंटरव्यू श्री सत्यदेव आजाद जी और श्री श्रीकृष्ण शरद जी लिया करते थे। ये दोनों ही समय-समय पर आगरा आकर भी अलग-अलग लोगों के साक्षात्कार लेकर रूपक आदि तैयार करते थे। और भी अधिकारी थे, लेकिन नाम अब याद नहीं रहे।
पिताजी और मैं बस से जाते। नाम मात्र को पारश्रमिक मिलता था, जो बस यात्रा, द्वारिकाधीश जी के दर्शन, भोग और वहां से पेड़े खरीदने आदि में ही व्यय हो जाता था। लेकिन उस समय तो केवल आकाशवाणी ही जन-जन का प्रिय था। प्रचार, समाचार और मनोरंजन का एक मात्र यह माध्यम था। कभी-कभी आकाशवाणी से लौटते समय गायत्री तपोभूमि भी हम लोग जाते थे, जहां क्रांतिकारी श्री सत्यभक्त जी से मुलाकात होती थी। वे गायत्री तपोभूमि के लिए देशभक्तों पर ट्रेक्ट (छोटी-छोटी पुस्तकें) लिखा करते थे।
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मेरी भी वार्ताएं
पिताजी के साथ जाते-जाते मुझे भी आकाशवाणी पर युव वाणी में वार्ता करने का मौका मिल गया। जहां तक मुझे याद है, मेरी पहली वार्ता 16 मार्च 1986 को थी, जिसका विषय था स्वाधीनता संग्राम में आगरा के बलिदानी वीर। इसमें सफलता मिलने लगी तो अन्य विषयों पर भी अवसर मिला। 22 सितंबर 1986 को धरती का क्षेत्रफल और आबादी का भार पर वार्ता रही। उन दिनों हम लोगों ने आगरा में नेत्रदान अभियान चलाया था। जो टाइम्स आई रिसर्च फाउंडेशन, दिल्ली के सहयोग से संचालित था। 14 जून 1987 को नेत्रदान महादान पर आकाशवाणी मथुरा से वार्ता प्रसारित हुई। भारतीय साहित्यकारों के आदर्श टैगोर, (9-6-1988), आयुर्वेद का विकास, समाचार साप्ताहिकी (18-1-1997) सहित अनेक अन्य वार्ताएं प्रसारित हुई। समाचार साप्ताहिकी भी कई बार प्रसारित हुई। आगरा में आकाशवाणी केंद्र शुरू होने के बाद अभी तक वहां से निरंतर मेरी वार्ताएं प्रसारित हो रही हैं।
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आगरा में आकाशवाणी
आगरा में लंबे समय से आकाशवाणी केंद्र खोले जाने की मांग चल रही थी। उसे पूरा करते हुए विभव नगर में केंद्र का सन् 1989 में शुभारंभ हुआ। उद्घाटन के समय पत्रकारों के लिए सम्मानजनक व्यवस्था न होने पर पत्रकारों ने उसका बहिष्कार कर दिया था। तब मुख्य अतिथि एवं तत्कालीन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री हरीकिशन भगत एवं प्रदेश मंत्री डा.कृष्णवीर सिंह कौशल भी पत्रकारों के साथ धरने पर बैठ गए और उन्हें मना लिया था।
आकाशवाणी आगरा पर भी पूज्य पिताजी के इंटरव्यू लगातार होते रहे। एक लंबी भेंट वार्ता सुश्री ऋतु राजपूत जी ने की थी। श्रीकृष्ण शरद जी भी मथुरा आकाशवाणी से आगरा ही आ गए थे। वे व अन्य अधिकारी पिताजी का साक्षात्कार समय-समय पर लेते रहे। मैं अभी भी विभिन्न विषयों पर वार्ता तक दे रहा हैं। वहां तब श्री दुर्ग विजय सिंह दीप भी थे। मैंने उनके साथ दैनिक स्वराज्य टाइम्स में कार्य किया था। वे भी हमारा सहयोग करते थे। उनके अलावा बहुत सारे अधिकारी आए और चले गए। जब दैनिक जागरण ज्वाइन किया तो कई बार वहां की वीट भी देखी और आकाशवाणी द्वारा आयोजित कई संगीत सम्मेलनों का कवरेज किया।
इन दिनों भी श्री पृथ्वीराज चौहान जी, महेंद्र सिंह जैमिनी, कुंदन सिंह जी, नीरज जैन जी, सर्वेश जी, श्रीकृष्ण जी, अजय प्रकाश जी, मुकेश वर्मा जी, विनोद शर्मा जी, देव प्रकाश शर्मा जी, राजेश शर्मा जी, मोहित कुमार जी सहित कई नाम एसे हैं, जिनका हमेशा सहयोग ही नहीं मिला, बल्कि आत्मीयता रही। अशोक धवन जी का भले ही कार्यक्रम या प्रसारण में कोई योगदान नहीं रहता, लेकिन उनसे लगातार संपर्क रहा। कई साल तक वे आगरा दूरदर्शन पर तैनात रहे, फिर से आकाशवाणी पर स्थानांतरित हो गए हैं।
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तब बहुत बड़ी बात थी रेडियो पर बोलना
जब तक दूरदर्शन शुरू नहीं हुआ, तब तक आकाशवाणी का विशेष महत्व रहा। उस पर अपनी वार्ता प्रसारित करना बड़ा गौरवशाली माना जाता था। पूरे मौहल्ले में चर्चा हो जाती थी, सभी रेडियो और ट्रांजिस्टर पर सुना कर थे। अखबारों में भी छपता था-“आदर्श नंदन आज आकाशवाणी” पर।
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बांसुरी वादक करते हैं रिकार्डिंग
आकाशवाणी आगरा पर व्यवस्था कभी भी बहुत अच्छी नहीं रहीं। मैंने जब दैनिक जागरण से आकाशवाणी की वीट देखी, तभी मुझे पता चला कि बहुत दिनों से आकाशवाणी पर रिकार्डिस्ट की नियुक्ति नहीं हुई है। वहां जो रिकार्डिंग करते थे वे थे बांसुरी वादक संगीतज्ञ रामकृष्ण जी। मैंने यह समाचार प्रमुखता से लिख दिया। उसके बाद मुझे लगा कि रामकृष्ण जी कहीं बुरा नहीं मान गए हों, लेकिन वे बहुत ही सरल, सहज व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने इसे अपनी आलोचना नहीं समझा। मुझे पता चला है कि उनका निधन हो चुका है, अब उनके सुपुत्र प्रियंक कुमार सैक्सोफोन के अंतरराष्ट्रीय स्तर के वादक है।
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5.50 लाख रुपया सरकार लेकर पैर बनवाया
तभी मैंने एक खबर और लिखी थी। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी मुकेश वर्मा जी के पैर में कोई दिक्कत हो गई थी। तब उन्होंने बड़ी जद्दोजहद करके सरकार से 5.50 लाख रुपये की मदद ली और अपना कृत्रिम पैर बनवाया था।
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आकाशवाणी का संघर्ष
अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। अभी भी साहित्यकारों, कवियों और संस्कृति कर्मियों को वहां प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए बुलाया जाता है। जरूरत है उसके परिमार्जन की। नई तकनीकी के साथ, नई युग में कदम से कदम मिला कर चलने की। लेकिन आकाशवाणी का संघर्ष बढ़ता जा रहा है। अधिकारी व कर्मचारी तेजी से सेवानिवृत हो रहे हैं, उनकी जगह नई नियुक्ति भी नहीं हो रही है।