Thursday, June 15, 2023

कल उमड़ी थी, मिट आज चली

... कल उमड़ी थी मिट आज चली...
सन् 1982 के करीब की बात है। तब मैं साप्ताहिक स्वराज्य व दैनिक स्वराज्य टाइम्स के संपादक मंडल में था। साहित्य ही मेरा प्रिय विषय था।अतः इस प्रकार आलेख लिखना व संपादन किया करता था।देश भर की पत्र-पत्रिकाओें का पढ़ने में रुचि भी थी। परम पूज्य महादेवी वर्मा जी के प्रति अटूट  श्रद्धा थी। पाठ्यक्रमों में मैंने उनको पढ़ा था। तब बहुत बड़े साहित्यकार भी संपादक के नाम पत्र लिखने में संकोच नहीं करते थे।एक दिन साप्ताहिक हिंदुस्तान में पूज्य महादेवी वर्मा जी का युवाओं पर एक पत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने यह लिखा था कि बेरोजगारी के कारण ही युवा अपराध की दुनिया में जा रहा है।
मुझे पढ़ कर अच्छा नहीं लगा। मैंने पूरी श्रद्धा के साथ, पूज्य महादेवी जी से क्षमा याचना सहित एक पत्र साप्ताहिक हिंदुस्तान के पत्र कालम के लिए ही लिखा।उसमें मैंने उनकी बात का विरोध किया। लिखाकि यदि कोई युवक बेरोजगार है तो क्या वह अपराध की दुनिया में चला जाएगा। रोजगार के लिए अन्य उपाय है। अपराध की दुनिया में रोजगार युवक भी जा सकते हैं। मैंने लिखा कि युवाओं नकारात्मक सोच की नहीं, सकारात्मक सोच की जरूरत है।
वह पत्र साप्ताहिक हिंदुस्तान ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। (मुझ पर इसका कोई प्रमाण नहीं है)
11 सितंबर 1987 को स्वराज्य टाइम्स कार्यालय में बैठा था। ट्रांजिस्टर पर समाचार सुन रहा था। अचानक समाचार आया,महादेवी जी का निधन हो गया। मैं स्तब्ध रह गया। हिंदी साहित्य का बहुत बड़ा नुकसान था। मेरी आंखें छलछला गई। मेरे दिमाग में उन्हीं की कविता की दो पंक्तियां बार-बार तैर रही थीं-..कल उमड़ी थी, मिट आज चली। तभी मैंने उनका समाचार स्वराज्य टाइम्स के लिए लिखना शुरू किया। उनके परिचय के साथ साहित्यिक यात्राऔर देहावसान पर शोक। आगरा के कुछ साहित्यकारों की ओर से श्रद्धांजलि भी लिखी । मैंने हैडिंग लगाया था---कल उमड़ी थी मिट आज चली। यह समाचार प्रकाशित हुआ। दूसरे दिन प्रेस जाकर जब मैंने दिल्ली के समाचार पत्र देखे तो उनमें भी यही शीर्षक था। मुझे बहुत अच्छा लगा। यानि मुझे लगा कि मेरी सोच भी वही थी जो दिल्लीा के पत्रकारों की रही होगी।
आज महादेवी जी की जयंती है। मुझे यह स्मृतियां आज ताजा हो गईं। उनकी जयंती पर मैं उनके चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं।

भेरों बाजार की सेंट्रल बैक से था पुराना नाता

भेरों बाजार की सेंट्रल बैक से था पुराना नाता

हमारे परिवार का संबंध केनरा बैंक, स्टेट बैंक, ग्रामीण बैंक से सीधा-सीधा रहा, क्योंकि हमारे भाई यहां सेवारत रहे, लेकिन बेलनगंज के भैरों बाजार स्थित सेंट्रल बैंक से हमारा सबसे अच्छा और सबसे लंबा नाता रहा। जो दिल से जुड़ा रहा।

सेंट्रल बैंक को लेकर मेरी सबसे पहली एक तस्वीर जो बनती है, वह उसके गेट पर खड़ा बूढ़ा छोले वाला। जब हम तीन, चार साल के रहे होंगे, तब हम लोग अपने आवास (तब तिकोनिया बेलनगंज में, भीकमपान वाले के बराबर) से यह छोले लेने जाते थे। पत्ते पर रखे वे 10-5 पैसे के छोले का स्वाद निराला था। खुब चटखारे लेकर खाते था। उसका स्वाद आज भी मेरी जीभ पर है।

बेलनगंज में उस समय एक दर्जन से अधिक बैंक थी। जिनमें से ज्यादातर भैरों बाजार के आसपास थीं। लंच टाइम में सभी कर्मचारी इस पतले-दुबले, इकहरे बदन वाले बाबा के छोले के स्वाद लिया करते थे।

उसके बाद मुझे याद आती है, शहर के प्रमुख समाजसेवी और सांस्कृतिक सेवा समिति के अध्यक्ष स्व.श्री बीएन शुक्ला की। जो ड्यूटी के बाद या लंच टाइम में हमारे आवास पर पूज्य पिताजी (स्व.रोशनलाल गुप्त करुणेश जी से सलाह-मशवरा करने आया करते थे। उन्होंने आगरा में प्रतिवर्ष पांच विभूतियों को आगरा रत्न की उपाधि देने की श्रंखला शुरू की थी। जब हमारे पिताजी को यह सम्मान मिला, उसी वह इस समारोह में सुंदरानी नेत्र चिकित्सालय के संस्थापक पद्म श्री जेएम पाहवा, होटल ग्रांड के स्वामी श्री रंजीत  राय डंग जी को भी सम्मानित किया गया था। मुख्य अतिथि से पूर्व सांसद एवं स्वाधीनता सेनानी स्व.शंभूनाथ चतुर्वेदी। सम्मान की यह श्रंखला उनके निधन के बाद ही बंद हो गया। उनके साथी स्व.धर्मपाल साहनी विशेष रूप से हुआ करते थे।

मेरे हिसाब से बेलनगंज की जितनी भी बैंक थीं या अब है, सबसे ज्यादा जगह इसी बैंक पर है। शायद 1200 वर्ग गज। इसी बिल्डिंग में आज भी डाकखाना संचालित है। इस बिल्डिंग सहित अनेक बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, जमीन जायदाद आगरा के प्रमुख उद्योगपति स्व.शिवराज भार्गव के पूर्वजों की हैं। बहुत सों पर मुकदमे चले, कहीं हार हुई तो कहीं जीत।

इस बैंक से अपनापन तब और बढ़ा, जब हमारे बड़े भाई श्री संजय गुप्ता कुछ दिनों के लिए यहां सेवारत रहे और बाद में आफर मिलने पर उन्होंने स्टेट बैंक ज्वाइन कर ली थी।

उसके बाद सिलसिला यहां चला बिजली के बिल जमा करने का। लंबी-लंबी लाइनों में हम लोग लगा करते थे। अन्य जो सरकारी फीस जमा होती थी, उसके लिए भी यहां कतार लगानी पड़ती थी।

पूज्य पिता जी की पेंशन यहां से ही मिलती थी। जब तक वह स्वस्थ रहे, तब मैं उनके साथ पैदल चला जाता था। अशक्त और अस्वस्थ होने पर उन्हें मैं रिक्शा या कभी कभार व्हील चेयर पर ले जाता था। उनके विछोह के बाद पूज्यमाता जी स्व.श्रीमती रामलता गुप्ता को पेंशन मिलने लगी, तब मैं कभी मेरी धर्मपत्नी आदीपिका गुप्ता भी उनके साथ जाती थी।

जब मैंने अमर उजाला के बाद दैनिक जागरण ज्वाइन किया तो यहां हमारा वेतन आने लगा तो यहीं पर अपना एकाउंट खुलावाया। जो अभी इस सप्ताह पहले बंद करा दिया। यहां हर बार हमारी मदद कवि एवं पंचमुखी महादेव मंदिर के महंत श्री गिरीश अश्क जी करते रहे। जो बहुत ही मृदुभाषी एवं सहयोगी भावना के हैं।

कई सालों बाद जब मैं पिछले हफ्ते बैंक गया। देखा कि पूरी बिल्डिंग जर्जर हो गई है। जिस भाग में बैंक अब भी संचालित है, वहां अभी भी पुराना ढर्रा था। कर्मचारियों में अभी भी काम टालने की आदत दिखी। कैशियर अभी भी खजांची बने हुए हैं । जब आखिरी पेमेंट लेने गया तो सिक्के भी देने थे। लोहे की पुरानी अटैची, जो बहुत दिन बाद देखी थी, उसे उन्होंने खोला, उसमें रजनीगंधा की खाली डिब्बी से सिक्के निकाले और मुझे दिये।

लगता है यह बैंक अपने जीर्णोद्धार के इंतजार में है। आसपास मल्टी स्टोरी बाजार बन गए हैं। बैंक को उसका पूरी तरह उपयोग करना चाहिए।

 जब मैं गया तो सारी पुरानी यादें सिलसिले बार ताजा हो गईं। मेरी यादों को पढ़ कर अन्य सुधी जन भी इस में अपनी राय व्यक्त करेंगे, यह मेरा पूरा विश्वास है।

सुखद स्मृति आकाशवाणी की

सुखद अनुभव रहे आकाशवाणी के

आकाशवाणी से मेरे बहुत पुराने संबंध रहे हैं। मेरे पूज्य पिताजी स्वाधीनता सेनानी स्व.रोशनलाल गुप्त करुणेश की आकाशवाणी मथुरा पर भेंट वार्ताएं हुआ करती थीं। क्योंकि पिताजी के मन मस्तिष्क में पूरा स्वाधीनता आंदोलन और विश्व की क्रांतियां समाहित थीं। इसलिए उन्हीं को आकाशवाणी मथुरा के अधिकारी बुलाया करते थे। वहां पर मैं पिताजी के साथ जाया करता था। वहां पर कई बार श्रद्धेय अचला नागर जी से भी मेरी भेंट हुई, लेकिन व्यस्तता उनकी बहुत हुआ करती थी। 
उन दिनों ज्यादातर रिकार्डिंग, इंटरव्यू श्री सत्यदेव आजाद जी और श्री श्रीकृष्ण शरद जी लिया करते थे। ये दोनों ही समय-समय पर आगरा आकर भी अलग-अलग लोगों के साक्षात्कार लेकर रूपक आदि तैयार करते थे। और भी अधिकारी थे, लेकिन नाम अब याद नहीं रहे।
पिताजी और मैं बस से जाते। नाम मात्र को पारश्रमिक मिलता था, जो बस यात्रा, द्वारिकाधीश जी के दर्शन, भोग और वहां से पेड़े खरीदने आदि में ही व्यय हो जाता था। लेकिन उस समय तो केवल आकाशवाणी ही जन-जन का प्रिय था। प्रचार, समाचार और मनोरंजन का एक मात्र यह माध्यम था। कभी-कभी आकाशवाणी से लौटते समय गायत्री तपोभूमि भी हम लोग जाते थे, जहां क्रांतिकारी श्री सत्यभक्त जी से मुलाकात होती थी। वे गायत्री तपोभूमि के लिए देशभक्तों पर ट्रेक्ट (छोटी-छोटी पुस्तकें) लिखा करते थे। 
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मेरी भी वार्ताएं
पिताजी के साथ जाते-जाते मुझे भी आकाशवाणी पर युव वाणी में वार्ता करने का मौका मिल गया। जहां तक मुझे याद है, मेरी पहली वार्ता 16 मार्च 1986 को थी, जिसका विषय था स्वाधीनता संग्राम में आगरा के बलिदानी वीर। इसमें सफलता मिलने लगी तो अन्य विषयों पर भी अवसर मिला। 22 सितंबर 1986 को धरती का क्षेत्रफल और आबादी का भार पर वार्ता रही। उन दिनों हम लोगों ने आगरा में नेत्रदान अभियान चलाया था। जो टाइम्स आई रिसर्च फाउंडेशन, दिल्ली के सहयोग से संचालित था। 14 जून 1987 को नेत्रदान महादान पर आकाशवाणी मथुरा से वार्ता प्रसारित हुई। भारतीय साहित्यकारों के आदर्श टैगोर, (9-6-1988), आयुर्वेद का विकास, समाचार साप्ताहिकी (18-1-1997) सहित अनेक अन्य वार्ताएं प्रसारित हुई। समाचार साप्ताहिकी भी कई बार प्रसारित हुई। आगरा में आकाशवाणी केंद्र शुरू होने के बाद अभी तक वहां से निरंतर मेरी वार्ताएं प्रसारित हो रही हैं। 
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आगरा में आकाशवाणी
आगरा में लंबे समय से आकाशवाणी केंद्र खोले जाने की मांग चल रही थी। उसे पूरा करते हुए विभव नगर में केंद्र का सन् 1989 में शुभारंभ हुआ। उद्घाटन के समय पत्रकारों के लिए सम्मानजनक व्यवस्था न होने पर पत्रकारों ने उसका बहिष्कार कर दिया था। तब मुख्य अतिथि एवं तत्कालीन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री हरीकिशन भगत एवं प्रदेश मंत्री डा.कृष्णवीर सिंह कौशल भी पत्रकारों के साथ धरने पर बैठ गए और उन्हें मना लिया था। 

आकाशवाणी आगरा पर भी पूज्य पिताजी के इंटरव्यू लगातार होते रहे। एक लंबी भेंट वार्ता सुश्री ऋतु राजपूत जी ने की थी। श्रीकृष्ण शरद जी भी मथुरा आकाशवाणी से आगरा ही आ गए थे। वे व अन्य अधिकारी पिताजी का साक्षात्कार समय-समय पर लेते रहे। मैं अभी भी विभिन्न विषयों पर वार्ता तक दे रहा हैं। वहां तब श्री दुर्ग विजय सिंह दीप भी थे। मैंने उनके साथ दैनिक स्वराज्य टाइम्स में कार्य किया था। वे भी हमारा सहयोग करते थे। उनके अलावा बहुत सारे अधिकारी आए और चले गए। जब दैनिक जागरण ज्वाइन किया तो कई बार वहां की वीट भी देखी और आकाशवाणी द्वारा आयोजित कई संगीत सम्मेलनों का कवरेज किया। 
इन दिनों भी श्री पृथ्वीराज चौहान जी, महेंद्र सिंह जैमिनी, कुंदन सिंह जी, नीरज जैन जी, सर्वेश जी, श्रीकृष्ण जी, अजय प्रकाश जी, मुकेश वर्मा जी, विनोद शर्मा जी, देव प्रकाश शर्मा जी, राजेश शर्मा जी, मोहित कुमार जी सहित कई नाम एसे हैं, जिनका हमेशा सहयोग ही नहीं मिला, बल्कि आत्मीयता रही। अशोक धवन जी का भले ही कार्यक्रम या प्रसारण में कोई योगदान नहीं रहता, लेकिन उनसे लगातार संपर्क रहा। कई साल तक वे आगरा दूरदर्शन पर तैनात रहे, फिर से आकाशवाणी पर स्थानांतरित हो गए हैं। 
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तब बहुत बड़ी बात थी रेडियो पर बोलना
जब तक दूरदर्शन शुरू नहीं हुआ, तब तक आकाशवाणी का विशेष महत्व रहा। उस पर अपनी वार्ता प्रसारित करना बड़ा गौरवशाली माना जाता था। पूरे मौहल्ले में चर्चा हो जाती थी, सभी रेडियो और ट्रांजिस्टर पर सुना कर थे। अखबारों में भी छपता था-“आदर्श नंदन आज आकाशवाणी” पर। 
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बांसुरी वादक करते हैं रिकार्डिंग
आकाशवाणी आगरा पर व्यवस्था कभी भी बहुत अच्छी नहीं रहीं। मैंने जब दैनिक जागरण से आकाशवाणी की वीट देखी, तभी मुझे पता चला कि बहुत दिनों से आकाशवाणी पर रिकार्डिस्ट की नियुक्ति नहीं हुई है। वहां जो रिकार्डिंग करते थे वे थे बांसुरी वादक संगीतज्ञ रामकृष्ण जी। मैंने यह समाचार प्रमुखता से लिख दिया। उसके बाद मुझे लगा कि रामकृष्ण जी कहीं बुरा नहीं मान गए हों, लेकिन वे बहुत ही सरल, सहज व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने इसे अपनी आलोचना नहीं समझा। मुझे पता चला है कि उनका निधन हो चुका है, अब उनके सुपुत्र प्रियंक कुमार सैक्सोफोन के अंतरराष्ट्रीय स्तर के वादक है। 
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5.50 लाख रुपया सरकार लेकर पैर बनवाया 
तभी मैंने एक खबर और लिखी थी। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी मुकेश वर्मा जी के पैर में कोई दिक्कत हो गई थी। तब उन्होंने बड़ी जद्दोजहद करके सरकार से 5.50 लाख रुपये की मदद ली और अपना कृत्रिम पैर बनवाया था। 
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आकाशवाणी का संघर्ष 
अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। अभी भी साहित्यकारों, कवियों और संस्कृति कर्मियों को वहां प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए बुलाया जाता है। जरूरत है उसके परिमार्जन की। नई तकनीकी के साथ, नई युग में कदम से कदम मिला कर चलने की। लेकिन आकाशवाणी का संघर्ष बढ़ता जा रहा है। अधिकारी व कर्मचारी तेजी से सेवानिवृत हो रहे हैं, उनकी जगह नई नियुक्ति भी नहीं हो रही है।