Thursday, June 15, 2023

भेरों बाजार की सेंट्रल बैक से था पुराना नाता

भेरों बाजार की सेंट्रल बैक से था पुराना नाता

हमारे परिवार का संबंध केनरा बैंक, स्टेट बैंक, ग्रामीण बैंक से सीधा-सीधा रहा, क्योंकि हमारे भाई यहां सेवारत रहे, लेकिन बेलनगंज के भैरों बाजार स्थित सेंट्रल बैंक से हमारा सबसे अच्छा और सबसे लंबा नाता रहा। जो दिल से जुड़ा रहा।

सेंट्रल बैंक को लेकर मेरी सबसे पहली एक तस्वीर जो बनती है, वह उसके गेट पर खड़ा बूढ़ा छोले वाला। जब हम तीन, चार साल के रहे होंगे, तब हम लोग अपने आवास (तब तिकोनिया बेलनगंज में, भीकमपान वाले के बराबर) से यह छोले लेने जाते थे। पत्ते पर रखे वे 10-5 पैसे के छोले का स्वाद निराला था। खुब चटखारे लेकर खाते था। उसका स्वाद आज भी मेरी जीभ पर है।

बेलनगंज में उस समय एक दर्जन से अधिक बैंक थी। जिनमें से ज्यादातर भैरों बाजार के आसपास थीं। लंच टाइम में सभी कर्मचारी इस पतले-दुबले, इकहरे बदन वाले बाबा के छोले के स्वाद लिया करते थे।

उसके बाद मुझे याद आती है, शहर के प्रमुख समाजसेवी और सांस्कृतिक सेवा समिति के अध्यक्ष स्व.श्री बीएन शुक्ला की। जो ड्यूटी के बाद या लंच टाइम में हमारे आवास पर पूज्य पिताजी (स्व.रोशनलाल गुप्त करुणेश जी से सलाह-मशवरा करने आया करते थे। उन्होंने आगरा में प्रतिवर्ष पांच विभूतियों को आगरा रत्न की उपाधि देने की श्रंखला शुरू की थी। जब हमारे पिताजी को यह सम्मान मिला, उसी वह इस समारोह में सुंदरानी नेत्र चिकित्सालय के संस्थापक पद्म श्री जेएम पाहवा, होटल ग्रांड के स्वामी श्री रंजीत  राय डंग जी को भी सम्मानित किया गया था। मुख्य अतिथि से पूर्व सांसद एवं स्वाधीनता सेनानी स्व.शंभूनाथ चतुर्वेदी। सम्मान की यह श्रंखला उनके निधन के बाद ही बंद हो गया। उनके साथी स्व.धर्मपाल साहनी विशेष रूप से हुआ करते थे।

मेरे हिसाब से बेलनगंज की जितनी भी बैंक थीं या अब है, सबसे ज्यादा जगह इसी बैंक पर है। शायद 1200 वर्ग गज। इसी बिल्डिंग में आज भी डाकखाना संचालित है। इस बिल्डिंग सहित अनेक बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, जमीन जायदाद आगरा के प्रमुख उद्योगपति स्व.शिवराज भार्गव के पूर्वजों की हैं। बहुत सों पर मुकदमे चले, कहीं हार हुई तो कहीं जीत।

इस बैंक से अपनापन तब और बढ़ा, जब हमारे बड़े भाई श्री संजय गुप्ता कुछ दिनों के लिए यहां सेवारत रहे और बाद में आफर मिलने पर उन्होंने स्टेट बैंक ज्वाइन कर ली थी।

उसके बाद सिलसिला यहां चला बिजली के बिल जमा करने का। लंबी-लंबी लाइनों में हम लोग लगा करते थे। अन्य जो सरकारी फीस जमा होती थी, उसके लिए भी यहां कतार लगानी पड़ती थी।

पूज्य पिता जी की पेंशन यहां से ही मिलती थी। जब तक वह स्वस्थ रहे, तब मैं उनके साथ पैदल चला जाता था। अशक्त और अस्वस्थ होने पर उन्हें मैं रिक्शा या कभी कभार व्हील चेयर पर ले जाता था। उनके विछोह के बाद पूज्यमाता जी स्व.श्रीमती रामलता गुप्ता को पेंशन मिलने लगी, तब मैं कभी मेरी धर्मपत्नी आदीपिका गुप्ता भी उनके साथ जाती थी।

जब मैंने अमर उजाला के बाद दैनिक जागरण ज्वाइन किया तो यहां हमारा वेतन आने लगा तो यहीं पर अपना एकाउंट खुलावाया। जो अभी इस सप्ताह पहले बंद करा दिया। यहां हर बार हमारी मदद कवि एवं पंचमुखी महादेव मंदिर के महंत श्री गिरीश अश्क जी करते रहे। जो बहुत ही मृदुभाषी एवं सहयोगी भावना के हैं।

कई सालों बाद जब मैं पिछले हफ्ते बैंक गया। देखा कि पूरी बिल्डिंग जर्जर हो गई है। जिस भाग में बैंक अब भी संचालित है, वहां अभी भी पुराना ढर्रा था। कर्मचारियों में अभी भी काम टालने की आदत दिखी। कैशियर अभी भी खजांची बने हुए हैं । जब आखिरी पेमेंट लेने गया तो सिक्के भी देने थे। लोहे की पुरानी अटैची, जो बहुत दिन बाद देखी थी, उसे उन्होंने खोला, उसमें रजनीगंधा की खाली डिब्बी से सिक्के निकाले और मुझे दिये।

लगता है यह बैंक अपने जीर्णोद्धार के इंतजार में है। आसपास मल्टी स्टोरी बाजार बन गए हैं। बैंक को उसका पूरी तरह उपयोग करना चाहिए।

 जब मैं गया तो सारी पुरानी यादें सिलसिले बार ताजा हो गईं। मेरी यादों को पढ़ कर अन्य सुधी जन भी इस में अपनी राय व्यक्त करेंगे, यह मेरा पूरा विश्वास है।

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