यादें- 1978 की बाढ़ के दहशत भरे दिन
चारों ओर पानी का सैलाब
पलट गई थी नाव, तीन लोगों की ली थी बलि
प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
आगराः सन् 1978 की बाढ़ की याद आते ही हृदय प्रकंपित होने लगता है। भयावह दृश्य सामने आते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। लगता था कि कब मकान ढह जाएं। न जाने कब क्या हो जाए।
सितंबर 1978 में जैसे ही यमुना का जल स्तर तेजी से बढ़ना शुरू हुआ, प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में जाने के लिए मुनादी करा दी थी, लेकिन कोई भी अपना घर छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं था। बहुत ही कम एसे लोग थे, जिन्होंने प्रशासन के आश्रय स्थलों में शरण ली हो।
उन दिनों तिकोनिया बेलनगंज में हमारा घर था। सभी लोगों ने अपनी-अपनी छतों पर बसेरा कर लिया था। यमुना किनारे की सड़क पर पानी आ गया, तब सबसे पहले सेकसरिया इंटर कालेज वाले रास्ते पर सबसे पहले पानी आया। उसके बाद नाले-नालियों का पानी लौटकर बस्तियों में भरने लगा था। धीरे-धीरे नालों को पानी और यमुना का जल एक ही हो गया। पूरी यमुना एक जैसी हो गई और धूलियागंज में बसंत टाकीज तक पानी पहुंच गया।
फ्रीगंज, दरेसी, सिंगी गली, कृष्णा कालोनी, कचहरी घाट सहित अन्य क्षेत्रों में चार फुट से अधिक पानी था। इन सड़कों पर मिलट्री की नावें चलने लगीं। उनके द्वारा राहत कार्य किये जाने लगे थे। घिरे हुए लोगों को प्रशासनिक आश्रय स्थलों तक पहुंचाने की व्यवस्ता नावों द्वारा की जा रही थी।
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पलट गई थी नाव,हुआ था हादसा
यमुना के किनारे तो हाथी डूबा पानी था। 11 सितंबर 1978 का दिनथा। मथुराधीश मंदिर के समीप दाऊजी मंदिर (गोपाल भवन) निवासी सुरक्षित स्थानों पर जाना चाहते थे। पंचमुखी महादेव मंदिर के महंत पं.गिरीश अश्क ने बताया कि एक प्राइवेट नाव में करीब 19 लोग बैठ गए थे। सेकसरिया कन्या इंटर कालेज के मोड़ पर अचानक नाव पलट गई, सभी लोग तेज बहाव में बह गए। इनमें कुछ लोग तैराक थे जो तैरते हुए आसपास निकल गए। कुछ बाबाजी की बुर्जी पर पहुंच गए। श्याम लाल शर्मा की पत्नी लीलावती, (डा.राम नारायन शर्मा (एक्स-रे वाले),वैद्य रामधन शर्मा की बहन), जगदीश प्रसाद की पत्नी मिथलेश और उनका नवजात शिशु को नहीं बचाया जा सका। उनके शव का पंचनामा करके जलदाह करना पड़ा था, क्योंकि उन दिनों सभी श्मशानघाटों पर पानी भरा हुआ था। मथुराधीश मंदिर के महंत नंदन श्रोत्रिय का कहना है कि उनके पिताजी हरीमोहन श्रोत्रिय (मोहन गुरु) व कौशल शर्मा ने जब नाव पलटती देखी तो वे सभी को डूबने से बचाने के लिए पानी में कूद पड़े और कुछ लोगों को बचा लिया था। डूबे हुए लोगों में से कुछ लोग बहते हुए आगरा किला के पास पहुंच कर वहां रैलिंग के पास अटक गए थे, जिन्हें मिलट्री के जवानों ने बचा लिया था।
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समाजसेवी भी रहे सक्रिय
समाजसेवी संगठन भी सक्रिय हो गये थे। सिविल डिफेंस के अधिकारी व स्वयंसेवकों के अलावा नैतिक विकास संगठन के डा.रामबाबू अग्रवाल, नैतिक नागरिक संघ के प्रतापचंद जैसवाल के अलावा बालोजी अग्रवाल, मदन पटेल, हरीओम भारद्वाज, पुरुषोत्तम खंडेलवाल (वर्तमान विधायक), दीपक खरे, जेपी युवक आदि नावों के माध्यम से भोजन आदि पहुंचाने का काम कर रहे थे।
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हैलीकाप्टर से भोजन वितरण
कई दिन तक बाढ़ का पानी नहीं उतरा तो प्रशासन की ओर से हेलीकाप्टर द्वारा भोजन के पैकेट छतों पर रह रहे लोगों को डाले गए थे।
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चीनी का बन गया शर्बत
बारहभाई गली में चीनी का बड़ा व्यापार होता था। वहां चीनी के बड़े-बड़े गोदाम थे। पूर्व पार्षद दीपक खरे ने बताया कि एक व्यापारी ने चीनी की गोदाम के बाहर ईंटों की मजबूत दीवार चिनवा दी। लेकिन पानी किसी छेद से घुस गया और सारी चीनी शर्बत बन कर बह गई। बाद में केवल खाली बोरियां रह गई थीं।
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बाढ़ के बाद मिट्टी के टीले और कीचड़
जब बाढ़ का पानी चला गया तो सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की मोटी पर्त, कीचड़ आदि को हटाने की थी। जो कई सप्ताह बाद हट पाई थी। मकानों में सीलन से दरारें भी आ गई थीं।