Monday, July 17, 2023

लता मंगेशकर,,,, मेरा सुंदर सपना टूट गया

लता मंगेशकरः मेरा सुंदर सपना टूट गया...

35 वर्षीय हिंदी पत्रकारिता में मैंने अनगिनत शख्सियतों के दर्शन किए, साक्षात्कार लिए, पर मेरी इच्छा थी कि एक बार आदरणीय लता मंगेशकर जी के भी दर्शन हो जाएं,  क्योंकि आदरणीय आशा भोसले जी से मेरी मुलाकात तो आगरा आगमन पर हो चुकी थी।मेरी मुख्य धारा की पत्रकारिता यानि 1991 के बाद उनका शुभागमन आगरा में नहीं हुआ, इसलिए उनसे मेरा मिलना नहीं हो पाया। 30 अगस्त सन् 2014 में मुझे संपत्ति ग्रुप राजकोट व एमफारयू के अश्वमेधा सम्मान के लिए भाई  श्री दुष्यंत प्रताप सिंह ने मुंबई आमंत्रित किया। तब मैंने काफी प्रयास किए उनसे मिलने के लिए। अपने राजश्री प्रोडक्शन के अपने मित्र के माध्यम से उन्हें पत्र भिजवाया। मुलाकात की बात भी हो गई। फिल्म कलाकार राजन यानि चार्ली चैप्लिन मेरे साथ थे। जब मैंने उनके आवास  पर फोन किया तो उसे लता मंगेशकर जी की बहन उषा मंगेशकर जी ने रिसीव किया। उन्होंने तब बताया कि उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया है। वे एक सप्ताह तक नहीं मिल सकती हैं। अतः भारी मन से हम उनसे बिना मिले, मुंबई से वापस लौट आए थे। 
उसके बाद से लगातार मेरा प्रयास रहा कि किसी तरह से उनसे मुलाकात हो जाए, लेकिन सफलता नहीं मिली। आज जब उनके निधन का समाचार मिला तो बहुत दुख हुआ। भगवान उनकी आत्मा को परम शांति प्रदान करें। बस उनका गाए गीत की यह पंक्तियां बार-बार याद आ रही हैं-जाने वाले से मुलाकात ना होने पाई...। 
आदर्श नंदन गुप्ता

1978 के बाढ़ वाले दहशत भरे दिन

यादें- 1978 की बाढ़ के दहशत भरे दिन

चारों ओर पानी का सैलाब 
पलट गई थी नाव, तीन लोगों की ली थी बलि

प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
आगराः सन् 1978 की बाढ़ की याद आते ही हृदय प्रकंपित होने लगता है। भयावह दृश्य सामने आते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। लगता था कि कब मकान ढह जाएं। न जाने कब क्या हो जाए।
सितंबर 1978 में जैसे ही यमुना का जल स्तर तेजी से बढ़ना शुरू हुआ,  प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में जाने के लिए मुनादी करा दी थी, लेकिन कोई भी अपना घर छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं था। बहुत ही कम एसे लोग थे, जिन्होंने प्रशासन के आश्रय स्थलों में शरण ली हो। 
उन दिनों तिकोनिया बेलनगंज में हमारा घर था। सभी लोगों ने अपनी-अपनी छतों पर बसेरा कर लिया था। यमुना किनारे की सड़क पर पानी आ गया, तब सबसे पहले सेकसरिया इंटर कालेज वाले रास्ते पर सबसे पहले पानी आया। उसके बाद नाले-नालियों का पानी लौटकर बस्तियों में भरने लगा था। धीरे-धीरे नालों को पानी और यमुना का जल एक ही हो गया। पूरी यमुना एक जैसी हो गई और धूलियागंज में बसंत टाकीज तक पानी पहुंच गया।  
फ्रीगंज, दरेसी, सिंगी गली, कृष्णा कालोनी, कचहरी घाट सहित अन्य क्षेत्रों में चार फुट से अधिक पानी था। इन सड़कों पर मिलट्री की नावें चलने लगीं। उनके द्वारा राहत कार्य किये जाने  लगे थे। घिरे हुए लोगों को प्रशासनिक आश्रय स्थलों तक पहुंचाने की व्यवस्ता नावों द्वारा की जा रही थी। 
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पलट गई थी नाव,हुआ था हादसा
यमुना के किनारे तो हाथी डूबा पानी था। 11 सितंबर 1978 का दिनथा। मथुराधीश मंदिर के समीप दाऊजी मंदिर (गोपाल भवन) निवासी सुरक्षित स्थानों पर जाना चाहते थे। पंचमुखी महादेव मंदिर के महंत पं.गिरीश अश्क ने बताया कि एक प्राइवेट नाव में करीब 19 लोग बैठ गए थे। सेकसरिया कन्या इंटर कालेज के मोड़ पर अचानक नाव पलट गई, सभी लोग तेज बहाव में बह गए। इनमें कुछ लोग तैराक थे जो तैरते हुए आसपास निकल गए। कुछ बाबाजी की बुर्जी पर पहुंच गए। श्याम लाल शर्मा की पत्नी लीलावती, (डा.राम नारायन शर्मा (एक्स-रे वाले),वैद्य रामधन शर्मा की बहन), जगदीश प्रसाद की पत्नी मिथलेश और उनका नवजात शिशु को नहीं बचाया जा सका। उनके शव का पंचनामा करके जलदाह करना पड़ा था, क्योंकि उन दिनों सभी श्मशानघाटों पर पानी भरा हुआ था। मथुराधीश मंदिर के महंत नंदन श्रोत्रिय का कहना है कि उनके पिताजी हरीमोहन श्रोत्रिय (मोहन गुरु) व कौशल शर्मा ने जब नाव पलटती देखी तो वे सभी को डूबने से बचाने के लिए पानी में कूद पड़े और कुछ लोगों को बचा लिया था। डूबे हुए लोगों में से कुछ लोग बहते हुए आगरा किला के पास पहुंच कर वहां रैलिंग के पास अटक गए थे, जिन्हें मिलट्री के जवानों ने बचा लिया था।  
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समाजसेवी भी रहे सक्रिय 
समाजसेवी संगठन भी सक्रिय हो गये थे। सिविल डिफेंस के अधिकारी व स्वयंसेवकों के अलावा नैतिक विकास संगठन के डा.रामबाबू अग्रवाल, नैतिक नागरिक संघ के प्रतापचंद जैसवाल के अलावा बालोजी अग्रवाल, मदन पटेल, हरीओम भारद्वाज, पुरुषोत्तम खंडेलवाल (वर्तमान विधायक), दीपक खरे, जेपी युवक आदि नावों के माध्यम से भोजन आदि पहुंचाने का काम कर रहे थे।

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हैलीकाप्टर से भोजन वितरण
कई दिन तक बाढ़ का पानी नहीं उतरा तो प्रशासन की ओर से हेलीकाप्टर द्वारा भोजन के पैकेट छतों पर रह रहे लोगों को डाले गए थे। 
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चीनी का बन गया शर्बत
बारहभाई गली में चीनी का बड़ा व्यापार होता था। वहां चीनी के बड़े-बड़े गोदाम थे। पूर्व पार्षद दीपक खरे ने बताया कि एक व्यापारी ने चीनी की गोदाम के बाहर ईंटों की मजबूत दीवार चिनवा दी। लेकिन पानी किसी छेद से घुस गया और सारी चीनी शर्बत बन कर बह गई। बाद में केवल खाली बोरियां रह गई थीं। 
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बाढ़ के बाद मिट्टी के टीले और कीचड़
जब बाढ़ का पानी चला गया तो सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की मोटी पर्त, कीचड़ आदि को हटाने की थी। जो कई सप्ताह बाद हट पाई थी। मकानों में सीलन से दरारें भी आ गई थीं।

Sunday, July 9, 2023

तोरा गांव के मोगरा से महके बांके बिहारी मंदिर


तोरा गांव के मोगरा से महक रहा बांके बिहारी मंदिर
चार कुंतल प्रतिदिन आगरा से मथुरा-वृंदावन जाता है यह फूल
रोजाना सजाये जा रहे हैं आकर्षक फूल बंगला 

प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
आगराः वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में प्रवेश करते ही आनंद की फुहार तन-मन को प्रफुल्लित कर देती है। मंद-मंद बयार के साथ आनंदित कर देने वाली सुंगध भगवान की भक्ति में विभोर कर देती है। मोतियों की तरह लटकते फूलों की लड़ियां, उनकी डिजाइनर आकृतियां भी फूल बंगला की छटा को और अधिक मनोहारी कर देते हैं। इन्हीं फूलों की माला पूरे मथुरा-वृंदावन में विक्रय के लिए उपलब्ध रहती हैं, अपने आराध्य को अर्पित करने के लिए, अपने जीवन को सुवासित करने  के लिए। 
जिस मोगरा के फूल की यह सुगंध भक्ति में विभोर करती हैं, वह फूल आगरा में ताजगंज के गांव तोरा से जाता है।  इन  फूलों से वहां नियमित फूल बंगला सजाया जा रहा है, जिसकी सुगंध पूरे देश में फैल रही है। देशभर से आने वाले श्रद्धालु भी मोगरा की माला अपने साथ प्रसाद के रूप में ले जाते हैं। बांके बिहारी मंदिर के अतिरिक्त मथुरा और वृंदावन के अन्य मंदिरों में फूल बंगला जाने के लिए भी यह मोगरा भेजा रहा है। 
तोरा गांव फूलों की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यहां के 15 किसान लंबे समय से मोगरा की ही खेती करते हैं। यह मोगरा आगरा के आसपास के अन्य शहरों में नाममात्र का होता है। तोरा गांव में इसकी भरपूर खेती होती है, जिससे यह फूल अहमदाबाद, जयपुर, अजमेर सहित अन्य शहरों में भी आगरा से ही जाता है। मोगरा की खेती करने वाले हिमांशु पाराशऱ ने बताया कि यहां करीब सौ बीघा खेत में यह फसल होती है। एक बार खेत में इसकी पौध लगने के बाद 30-35 साल तक फिर से पौधारोपण की जरूरत नहीं पड़ती। हर साल नव दुर्गा के बाद यह फसल होने लगती है। और जन्माष्टमी के आसपास यह फूल आना खत्म हो जाता है। मोगरा की खेती मनीष पाराशर, हरीकांत दीक्षित, कुंवरपाल राजपूत, कालीचरन आदि करते हैं। 
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बांके बिहारी को पसंद है मोगरा की सुगंध 
भगवान  बांके बिहारी को मोगरा के फूल की सुंगध बहुत पसंद है। इन दिनों इनकी इसी फूल की माला भी उन्हें अर्पित की जाती है। मोगरा के फूल के इत्र से भी ठाकुरजी की सेवा की जाती है। मोगरे की खुशबू से शीतलता का आभास होता है। 
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(वर्जन)
तोरा गांव से प्रतिदिन बांकेबिहारी जी मंदिर व अन्य मंदिरों के लिए मथुरा और वृंदावन प्रतिदिन 3 से 4 कुंतल प्रतिदिन मोगरा का फूल जाता है। यह गांव के लिए नहीं, आगरा जनपद के लिए गौरव की बात है। पहले गोकुल और अब गोवर्धन में भी इस फूल की खेती होनी लगी है, लेकिन नाममात्र को होती है। तोरा गांव में फूल की जो फसल होती हैं, उसका मुकाबला कहीं नहीं है। 
-नवीन पाराशर, अध्यक्ष-आगरा फूल व्यवसाय एसोसिएशन

अमर उजाला में प्रकाशित मेरा आलेख।