Tuesday, August 29, 2023
Thursday, August 3, 2023
गुमनाम क्रांतिकारी,,,पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
श्रंखला---- गुमनाम क्रांतिकारी
डंडे पड़ते रहे, पर झंडा नहीं झुकने दिया
पं.श्रीराम शर्मा आचार्य विचार क्रांति अभियान से पहले थे स्वातन्त्र्य वीर सेनानी
गायत्री परिवार में हैं इनके करोड़ों अनुयायी
प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
आगराः युग ऋषि पं.श्रीराम शर्मा आचार्य ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में क्रांति की, उसके बाद वे विचार क्रांति अभियान के संवाहक बने। अनगिनत पुस्तकें लिखीं। उनके गायत्री परिवार में करोड़ों अनुयायी हैं।
20 सितंबर 1911 को आंवलखेड़ा में पं.रूपकिशोर शर्मा के यहां जन्मे पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी में बचपन से ही देशभक्ति और ईश्वर भक्ति की भावना थी। 15 वर्ष की अवस्था से ही आचार्य जी स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। सन् 1927 से 1933 स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रहे। 23 मार्च 1931 को सरदार भगतसिंह को फांसी पर लटकाये जाने के विरोध में निषेधाज्ञा तोड़ी और जुलूस आदि में भाग लिया, फलस्वरूप वे गिरफ्तार कर लिए गए। आंवलखेड़ा के खेड़ा गांव के निकट पारखी गांव में झंडा जुलूस निकाल रहे थे कि पुलिस पहुंच गई और जम कर डंडों से पिटाई की। जिससे अर्ध मूर्छित होकर जमीन पर गिर गए, लेकिन तिरंगे झंडे को अपने हाथ से नहीं छोड़ा था।
सन् 1933 में कांग्रेस का कोलकाता में अधिवेशन था। जिसमें आगरा से कई जत्थे वहां जा चुके थे। आखिरी जत्था पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के नेतृत्व में वहां जाने को निकाला। अंग्रेज सरकार उस अधिवेशन को असफल करना चाहती थी। सब-इंस्पेक्टर अनंतराम ने उन्हें पहचान लिया और उनकी घेराबंदी कर ली। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, जगन प्रसाद रावत व गोपाल नारायण शिरोमणि आदि को गिरफ्तार कर कारागार भेज दिया। कोलकाता अधिवेशन की अवधि समाप्त होने के बाद ही सभी को रिहा किया गया।
25 वर्ष की आयु में आचार्य जी ने एक सरकारी इमारत पर तिरंगा फहरा दिया, वे तत्काल गिरफ्तार कर लिए गए और लगभग एक साल तक कारागार में रहना पड़ा। उसके बाद सावरमती आश्रम में कुछ दिनों गांधी जी का सानिध्य प्राप्त किया।
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सैनिक में पत्रकारिता की
आगरा से प्रकाशित स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी समाचार पत्र सैनिक में आचार्य पंडित श्री राम शर्मा जी ने पत्रकारिता की। प्रधान संपादक पं.श्रीकृष्णदत्त पालीवाल जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। यहां “मत्त”नाम से राष्ट्रभक्ति की कविताएं भी लिखीं। इसके अलावा प्रताप अखबार में भी कार्य किया।
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2400 प्रज्ञा पीठ स्थापित
आचार्य जी शुरू से ही उदार प्रवृत्ति के रहे। उन्होंने आंवलखेड़ा में अपनी भूमि गायत्री मंदिर के लिए दान में दी। छोटे से भूखंड पर अपनी माताजी दानकुंवरि जी के नाम पर इंटर कालेज की स्थापना की। देश-विदेश में संख्या 2400 शक्तिपीठ स्थापित कीं। छह संस्थान प्रमुख हैं, गायत्री तपोभूमि, मथुरा, अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा, गायत्री शक्तिपीठ, आंवलखेड़ा आगरा, शन्तिकुंज, हरिद्वार एवं ब्रह्मवर्चस्व, हरिद्वार, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार। विश्व के 120 देशों में इनके केन्द्र स्थापित हैं। शान्तिकुंज हरिद्वार, एक विशाल आश्रम हैं, जहां 95 वर्षों से अखण्डदीप प्रज्वल्लित है, जिसे आचार्य जी ने ही प्रज्ज्वलित किया था। आचार्यजी ने हजारों ग्रंथों की रचना की है।
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-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार, आगरा
मोबाइल नंबर 9837069255
Wednesday, August 2, 2023
अमर उजाला, आगरा में शुरु हुई मेरी आलेख श्रंखला, गुमनाम क्रांतिकारी,,,,आज प्रथम आलेख।श्रंखला---स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम क्रांतिकारीहर लाठी के बाद मुख से निकलता था “इंकलाब-जिंदाबाद”अंग्रेजों की पिटाई से जेल में शहीद हुए थे इंद्रचंद्र पैगोरियाप्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकारआगराः फिदा वतन पर हो जो, आदमी दिलेर है वह,जो यह नहीं तो फकत हड्डियों का ढेर है वह ।भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इस महायज्ञ में जो आहुतियां दी गईं, उनमें अधिकांश नौजवान ही थे। जिन्होंने न अपने परिवार की चिंता की, न भविष्य की। फांसी के फंदों को चूम लिया, गोलियां खाईं या फिर ब्रिटिश पुलिस के अत्याचारों से तिल-तिल कर, जेलों में घुट-घुट कर अपने प्राणोत्सर्ग कर दिए। अमर शहीद इंद्रचंद्र पैगोरिया भी एक एसे 32 वर्षीय देशभक्त थे, जो हर सुबह “इंकलाब-जिंदाबाद” बोलते, जिससे आक्रोशित अंग्रेज सिपाही लाठियों से मारते। यह क्रम प्रतिदिन चलता था। इस अमानुषिक उत्पीड़न से इंद्र बीमार हो गए और जेल में ही उनकी शहादत हो गई थी। 1942 की अगस्त क्रांति में पूरा देश आंदोलित हो उठा था। क्योंकि इसे महात्मा गांधी ने अंतिम क्रांति घोषित कर दिया था और मंत्र दिया था “अंग्रेजो भारत छोड़ो”, “करो या मरो”। आगरा शहर में भी यह जन क्रांति पूरी तरह से बेकाबू हो गई थी। सरकारी कार्यालयों को आग लगाई गई। रेल की पटरियां उखाड़ी गईं। हर तरफ आंदोलन ही आंदोलन थे।इसी आंदोलन के तहत राया (मथुरा) के स्टेशन को फूंकने के लिए आगरा और मथुरा के युवकों का एक दल पहुंचा, इनमें इंद्रचंद्र पैगोरिया, नेकराम शर्मा,बाबूलाल शर्मा, बंगालीमल अग्रवाल, ओमप्रकाश तिवारी, कुंवर बहादुर सिंह, गुरु प्रसाद, ओंकारनाथ,रामबाबू, भगवानदास शामिल थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस पहले ही सतर्क हो गई थी। उसने सभी को गिरफ्तार कर लिया। उनमें शामिल इंद्रचंद्र पैगोरिया को भारत रक्षा कानून की धारा 35 और 38 के तहत दो वर्ष की सजा दी गई और मथुरा की जिला जेल में भेज दिया। उसके बाद आगरा जिला कारागार में रखने के बाद कोलकाता की अलीपुर जेल में पहुंचा दिया। इस जेल में पहुंच कर उन्होंने एक नया क्रम बना लिया, सुबह उठते ही पूरे जोश के साथ “इंकलाब-जिंदाबाद” का घोष करते थे। यह सुनकर वहां के जेलर का पारा हाई हो जाता था और उन्हें बेरहमी से पिटवाता था। लेकिन उनके जोश में कोई कमी नहीं आती थी। हार कर अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें सुल्तानपुर भेज दिया। तब तक उनका शरीर जर्जर और बीमार हो चुका था और वहां वे एक जनवरी 1943 को उन्होंने अंतिम सांस ली। आगरा का यह लाड़ला शहीद हो गया। -------------नेताजी सुभाषचंद बोस से था परिचयइंद्रचंद्र पैगोरिया का जन्म सन् 1911 में आगरा की फतेहाबाद तहसील के गांव जयनगर में चिकित्सक पिता विधिचंद व माता भाग्यवती के यहां हुआ था। इनकी मां भाग्यवती देवी महान क्रांतिकारी लाला लाजपतराय की छोटी बहन थीं। इंद्रचंद्र के भाई डा.हरिश्चंद्र पैगोरिया भी कई बार जेल हो आए थे। 1939 में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इंद्रचंद्र स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। इनका नेताजी सुभाषचंद बोस से भी परिचय था। इन्हीं के कहने पर सन् 1940 में आगरा आए थे और मोतीगंज की चुंगी के मैदान में सभा की थी। इंद्रचंद्र पैगोरिया को उनकी शहादत के बाद जो मान-सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। न शासन ने उनकी सुध ली न प्रशासन ने। माथुर वैश्य समाज ने अभी अपनी एक पुस्तक स्वाधीनता सेनानियों पर प्रकाशित की है। उसमें भी उनका कोई उल्लेख नहीं है। आदर्श नंदन गुप्ता, ए-3, सीताराम कालोनी, फेस-1, बल्केश्वर, आगरा। मोबाइल नंबर-9837069255
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