Wednesday, August 2, 2023
अमर उजाला, आगरा में शुरु हुई मेरी आलेख श्रंखला, गुमनाम क्रांतिकारी,,,,आज प्रथम आलेख।श्रंखला---स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम क्रांतिकारीहर लाठी के बाद मुख से निकलता था “इंकलाब-जिंदाबाद”अंग्रेजों की पिटाई से जेल में शहीद हुए थे इंद्रचंद्र पैगोरियाप्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकारआगराः फिदा वतन पर हो जो, आदमी दिलेर है वह,जो यह नहीं तो फकत हड्डियों का ढेर है वह ।भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इस महायज्ञ में जो आहुतियां दी गईं, उनमें अधिकांश नौजवान ही थे। जिन्होंने न अपने परिवार की चिंता की, न भविष्य की। फांसी के फंदों को चूम लिया, गोलियां खाईं या फिर ब्रिटिश पुलिस के अत्याचारों से तिल-तिल कर, जेलों में घुट-घुट कर अपने प्राणोत्सर्ग कर दिए। अमर शहीद इंद्रचंद्र पैगोरिया भी एक एसे 32 वर्षीय देशभक्त थे, जो हर सुबह “इंकलाब-जिंदाबाद” बोलते, जिससे आक्रोशित अंग्रेज सिपाही लाठियों से मारते। यह क्रम प्रतिदिन चलता था। इस अमानुषिक उत्पीड़न से इंद्र बीमार हो गए और जेल में ही उनकी शहादत हो गई थी। 1942 की अगस्त क्रांति में पूरा देश आंदोलित हो उठा था। क्योंकि इसे महात्मा गांधी ने अंतिम क्रांति घोषित कर दिया था और मंत्र दिया था “अंग्रेजो भारत छोड़ो”, “करो या मरो”। आगरा शहर में भी यह जन क्रांति पूरी तरह से बेकाबू हो गई थी। सरकारी कार्यालयों को आग लगाई गई। रेल की पटरियां उखाड़ी गईं। हर तरफ आंदोलन ही आंदोलन थे।इसी आंदोलन के तहत राया (मथुरा) के स्टेशन को फूंकने के लिए आगरा और मथुरा के युवकों का एक दल पहुंचा, इनमें इंद्रचंद्र पैगोरिया, नेकराम शर्मा,बाबूलाल शर्मा, बंगालीमल अग्रवाल, ओमप्रकाश तिवारी, कुंवर बहादुर सिंह, गुरु प्रसाद, ओंकारनाथ,रामबाबू, भगवानदास शामिल थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस पहले ही सतर्क हो गई थी। उसने सभी को गिरफ्तार कर लिया। उनमें शामिल इंद्रचंद्र पैगोरिया को भारत रक्षा कानून की धारा 35 और 38 के तहत दो वर्ष की सजा दी गई और मथुरा की जिला जेल में भेज दिया। उसके बाद आगरा जिला कारागार में रखने के बाद कोलकाता की अलीपुर जेल में पहुंचा दिया। इस जेल में पहुंच कर उन्होंने एक नया क्रम बना लिया, सुबह उठते ही पूरे जोश के साथ “इंकलाब-जिंदाबाद” का घोष करते थे। यह सुनकर वहां के जेलर का पारा हाई हो जाता था और उन्हें बेरहमी से पिटवाता था। लेकिन उनके जोश में कोई कमी नहीं आती थी। हार कर अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें सुल्तानपुर भेज दिया। तब तक उनका शरीर जर्जर और बीमार हो चुका था और वहां वे एक जनवरी 1943 को उन्होंने अंतिम सांस ली। आगरा का यह लाड़ला शहीद हो गया। -------------नेताजी सुभाषचंद बोस से था परिचयइंद्रचंद्र पैगोरिया का जन्म सन् 1911 में आगरा की फतेहाबाद तहसील के गांव जयनगर में चिकित्सक पिता विधिचंद व माता भाग्यवती के यहां हुआ था। इनकी मां भाग्यवती देवी महान क्रांतिकारी लाला लाजपतराय की छोटी बहन थीं। इंद्रचंद्र के भाई डा.हरिश्चंद्र पैगोरिया भी कई बार जेल हो आए थे। 1939 में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इंद्रचंद्र स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। इनका नेताजी सुभाषचंद बोस से भी परिचय था। इन्हीं के कहने पर सन् 1940 में आगरा आए थे और मोतीगंज की चुंगी के मैदान में सभा की थी। इंद्रचंद्र पैगोरिया को उनकी शहादत के बाद जो मान-सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। न शासन ने उनकी सुध ली न प्रशासन ने। माथुर वैश्य समाज ने अभी अपनी एक पुस्तक स्वाधीनता सेनानियों पर प्रकाशित की है। उसमें भी उनका कोई उल्लेख नहीं है। आदर्श नंदन गुप्ता, ए-3, सीताराम कालोनी, फेस-1, बल्केश्वर, आगरा। मोबाइल नंबर-9837069255
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