Thursday, April 23, 2020

जावेद अख्तर साहब का इंटरव्यू लेते हुए आदर्श नंदन गुप्त 



                         जावेद अख्तर साहब  - विश्व विख्यात गीतकार 


विख्यात फिल्मी गीतकार शायर जावेद अख़्तर से साक्षात्कार लेते हुए
जावेद अख्तर कवि और हिन्दी फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक हैं। वह सीता और गीता, ज़ंजीर, दीवार और शोले की कहानी, पटकथा और संवाद लिखने के लिये प्रसिद्ध है। ऐसा वो सलीम खान के साथ सलीम-जावेद की जोड़ी के रूप में करते थे। इसके बाद उन्होंने गीत लिखना जारी किया जिसमें तेज़ाब, 1942: अ लव स्टोरी, बॉर्डर और लगान शामिल हैं।
आगरा में वे कई बार आए और उनके साक्षात्कार लेने का अवसर मिला
एम.  एफ.  हुसैन साहब का साक्षात्कार व औटोग्राफ लेते हुए 


                                   एम. एफ. हुसैन साहब - एक महान चित्रकार 


विश्व विख्यात चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन से ऑटोग्राफ व इंटरव्यू लेने का गौरवशाली क्षण, 8 जुलाई 2001, होटल होली डे इन।

सम्मान: पद्म श्री (1955), पद्म भूषण (1973), पद्म विभूषण (1991)
मक़बूल फ़िदा हुसैन, जिन्हें एम एफ़ हुसैन के नाम से भी जाना जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय चित्रकार थे। वे मशहूर ‘द प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। ‘भारत का पिकासो’ कहे जाने वाले हुसैन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 20वीं शदी के सबसे प्रख्यात और अभिज्ञात भारतीय चित्रकार थे। हुसैन को मुख्यतः उनकी चित्रकारी के लिए जाना जाता है पर वे कला की दूसरी विधाओं जैसे फिल्मों, रेख-चित्रण, फोटोग्रफी इत्यादि में भी पारंगत थे।
उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया। सन 1967 में उन्हें ‘थ्रू द आईज ऑफ़ अ पेंटर’ के लिए ‘नेशनल फिल्म अवार्ड फॉर बेस्ट एक्सपेरिमेंटल फिल्म’ मिला। सन 2004 में उन्होंने ‘मिनाक्षी: अ टेल ऑफ़ थ्री सिटीज’ नामक फिल्म भी बनायी जिसे ‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ में प्रदर्शित किया गया।
बम्बई गये और जे. जे. स्कूल ऑफ़ आअपने करियर के शुरूआती दौर में पैसा कमाने के लिए हुसैन सिनेमा के पोस्टर बनाते थे। पैसे की तंगी के कारण वे दूसरे काम भी करते थे जैसे खिलौने की फ़ैक्टरी में काम जहाँ उन्हे अच्छे पैसे मिल जाते थे। जब भी उन्हें समय मिलता वे गुजरात जाकर प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बनाते थे।
एक युवा पेंटर के तौर पर मकबूल फ़िदा हुसैन ‘बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स’ की राष्ट्रवादी परंपरा को तोड़कर कुछ नया करना चाहते थे इसलिए कुछ और चित्रकारों और कलाकारों के साथ मिलकर उन्होंने वर्ष 1947 में ‘द प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ की स्थापना की।
मकबूल फ़िदा हुसैन के कला कृतियों की पहली प्रदर्शनी सन 1952 में ज्यूरिख में लगायी गई। अमेरिका में उनके कला की प्रदर्शनी पहली बार सन 1964 में न्यू यॉर्क के ‘इंडिया हाउस’ में लगायी गई।
सन 1967 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘थ्रू द आईज ऑफ़ अ पेंटर’ बनाई जिसे ‘बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में प्रदर्शित किया गया और ‘गोल्डन बेयर शॉर्ट फिल्म’ का पुरस्कार भी मिला। सन 1971 में ‘साओ पावलो बाईएन्निअल’ में पाब्लो पिकासो के साथ-साथ वे भी विशिष्ट अतिथि थे।
1990 के दशक में हुसैन को हिन्दू देवी-देवताओं को गैर-पारंपरिक तरीके से दर्शाने के कारण कुछ हिन्दू संगठनों का विरोध झेलना पड़ा। उनके खिलाफ अदालत में कई मुकदमे दाखिल किये गए और सन 1998 में कुछ अतिवादी तत्वों ने उनके घर पर हमला कर तोड़-फोड़ भी किया। विरोध-प्रदर्शन के कारण उनकी एक प्रदर्शनी को लन्दन में भी बंद करना पड़ा।
सन 2000 मेंउन्होंने प्रसिद्ध अदाकारा माधुरी दीक्षित को लेकर ‘गजगामिनी’ नामक फिल्म बनायी। सन 2004 में उन्होंने अदाकारा तब्बू के साथ एक और फिल्म ‘मिनाक्षी: अ टेल ऑफ़ थ्री सिटीज’ बनायी पर कुछ मुस्लिम संगठनों के विरोध के बाद हुसैन ने फिल्म को सिनेमाघरों से उतार लिया।
सन 2006 में हुसैन पर हिन्दू देवी-देवताओं के नग्न चित्रों के द्वारा ‘लोगों की भावना को ठेस पहुँचाने’ का आरोप लगाया गया। हालाँकि फिल्म सिनेमा घरों में ज्यादा समय तक प्रदर्शित नहीं हो पाई पर फिल्म समीक्षकों ने फिल्म को सराहा और इसे कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए। इस फिल्म को ‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ में भी प्रदर्शित किया गया।
सन 2008 में एम एफ हुसैन सबसे महंगे भारतीय चित्रकार बन गए जब क्रिस्टीज के नीलामी में उनकी एक चित्रकला लगभग 16 लाख अमेरिकी डॉलर में बिकी।
सन 2007 के आस-पास तक ‘लोगों की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने’ के मामले में हुसैन के खिलाफ 100 से भी ज्यादा मुकदमे दाखिल हो गए थे । और इन्ही में से एक मामले में ‘अदालत में हाजिर नहीं होने के लिए’ उनके खिलाफ वारंट भी जारी कर दिया गया। हालाँकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस वारंट को बाद में रद्द कर दिया था। हुसैन को मौत की धमकियाँ भी मिली जिसके बाद उन्होंने 2006 में स्वेच्छा से देश छोड दिया था और लंदन में प्रवास करने लगे

स्व श्री रवींद्र जैन जी की का साक्षात्कार लेते हुए 

                                       रवींद्र जैन - एक महान गायक व संगीतकार 


दूरदर्शन के tv सीरियल रामायण में जैसे ही चौपाइयां सुनाई देती है मन श्रद्धा से उमड़ पड़ता हैं। उन्ही रविन्द्र जैन से एक गौरवशाली मुलाकात व साक्षात्कार।साथ हैं पत्रकार साथी डॉ महेश धाकड़, मोहन शर्मा,मनोज मिश्रा।
जन्मजात नेत्रहीन संगीतकार रविन्द्र जैन, जिन्होंने दूरदर्शन पर रामानंद सागर की रामायण को सुर और संगीत दिया।
जन्मजात नेत्रहीन संगीतकार , जिन्होंने रामायण की चौपाईयों को जीवंत किय।

रविन्द्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ था |
1960 में प्रतिभूषण भट्टाचार्य उनको मुंबई लेकर गए और उनको फिल्मों में काम दिलाया | उन्होंने सौदागर ,चोर मचाये शोर , गीत गाता चल , चितचोर , दुल्हन वही जो पिया मन भाये , पहेली , अंखियों के झरोखे से और नदिया से पार जैसी मशहूर फिल्मों के लिए संगीत दिया | संगीत के साथ साथ उन्होंने कई गीत लिखना भी शुरू कर दिया था। रविन्द्र जैन ने मो.रफी , किशोर कुमार और येसुदास जैसे महान गायकों के साथ काम किया | उन्होंने फिल्मों से काफी नाम कमाया, लेकिन उनको असली शोहरत टीवी से मिली | उन्होंने 80 के दशक से लेकर तीन दशकों तक टीवी जगत के लिए ना केवल संगीत दिया बल्कि कई गाने भी गाये | रामानदं सागर की रामायण से सबसे पहले उन्होंने अपने टीवी करियर की शरुआत की, जिसमें उन्हों संगीत भी दिया और रामायण का शीर्षक गीत और चौपाइया भी गायीं।| आज भी आपको उनकी चौपाई “मंगल भवन अमंगल हारी ” याद होगी जिसे हम उन्ही के संगीत और स्वरों में आज गाते है | बचपन से ही भजनों का शौक रखने वाले रविन्द्र जैन ने पूरे दिल से रामायण के लिए संगीत दिया |
इसके बाद दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों अलिफ़ लैला ,श्री कृष्णा , जय गंगा मैया , साईं बाबा और माँ दुर्गा जैसे पौराणिक धारावाहिकों में रामानन्द सागर के साथ काम किया | 9 अक्टूबर 2015 को 71 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

Wednesday, April 22, 2020

                         
उस्ताद बिस्मिल्ला खान का इंटरव्यू लेते हुए 
     
                               वाह उस्ताद बिस्मिल्ला खां

19 फरवरी 2000 को वरिष्ठ पत्रकार श्री विवेक जैन द्वारा मेरे साथ शहनाई सम्राट भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहिब का लिया इंटरव्यू ,
पढियेगा जरूर, कई प्रश्नों के बहुत रोचक जवाब दिए थे खान साहिब ने
प्रश्न: 1- पॉप संगीत के तूफान में भारतीय संगीत की वर्तमान समय में क्या स्थिति है?
जवाब- पॉप संगीत भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है क्योंकि भारतीय संगीत एक साधना है उसे वर्षों तक परिश्रम करके सीखना पड़ता है और जो वर्षों तक रियाज करने के पश्चात आता है।पाश्चात्य नृत्य इससे बिल्कुल उल्टा है उसे सीखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। मेरा यह मानना है कि प्रत्येक भारतवासी अपने बच्चों को भारतीय संगीत अवश्य सिखाएं। यदि 10 में से 4 बच्चे भी इस संगीत को सीख गए तो हमारी संस्कृति बनी रहेगी। हम बड़ी मुश्किल से इस मुकाम पर अपनी संस्कृति को बचाकर लाए हैं। क्या हमारे यहां नृत्य नहीं है लेकिन इसमें फर्क है कि भारतीय नृत्य सिखाया जाता है, तब भी आसानी से नहीं आता जबकि विदेशी नृत्य बिना सिखाये आ जाता है। ऐसा प्रयास करें कि शास्त्रीय संगीत मर नहीं जाए।
2- वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर आपका क्या कहना है ?
जवाब - आजादी के बाद हम एक हैं। हिंदू मुसलमान सभी एक हैं ।अब क्यों लड़ते हो ? एक बार नीति बनाकर सभी नेता अमल करें लेकिन सब आपस में लड़ रहे हैं। मेरी सभी राजनीतिक को सलाह है कि संगीत सीखे लड़ाई खत्म हो जाएगी।
3- आज संगीत में रीमिक्स हो रहा है, पाश्चात्य संगीत के साथ शास्त्रीय संगीत के साथ नए नए प्रयोग हो रहे हैं।क्या आप भी ऐसा कोई प्रयोग कर रहे हैं ?
जवाब - पहले सुनिए, गौर कीजिए ,हमारे यहां इतने राग हैं, पांच राग ,तीस रागनियां, छह राग, छत्तीस रागनियां, एक राग के पांच और उसके पुत्र और भांजे आठ आठ हैं ।कुल मिलाकर देखिए कितने हुए ? बिलावल, तोड़ी ,भैरव कितने हैं ? हमें प्योर राग लेकर चलना है मिक्स नहीं करना है।
4- युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
जवाब- पढ़ना जरूर है, लेकिन कामकाज के साथ। संगीत अवश्य आना चाहिए। भजन गाये, रियाज करें। संगीत से पीछे नहीं हटना है तभी हमारी संस्कृति कायम रह सकेगी।
5- टीवी व मीडिया ने जो हमारी संस्कृति को दूषित कर दिया है तो हम किस तरह पुरानी संस्कृति में लौट सकते हैं ?
जवाब - अब वह समय लौटकर नहीं आएगा। जो बिना सिखाए आ रहा है, वही बढ़ेगा। जो सिखाने पर भी नहीं आ रहा उसका क्या भविष्य है ?
6- किसी राष्ट्रीय नेता ने आपके शहनाई सुनी हो तब का कोई प्रसंग या संस्मरण वो तो है वह सुनाएं ?
जवाब - पंडित जी और इंदिरा जी मुझे बहुत मानते थे। एक बार 15-20 कलाकारों का एक कार्यक्रम था, इंदिरा जी भी आई थी ।कार्यक्रम की शुरुआत मेरी शहनाई से हुई ।जैसे ही हमने "रघुपति राघव राजा राम" की धुन बजाई वे मस्त हो गई और एकाग्र चित्त होकर सुनती रही। मेरी शहनाई वादन के बाद वह चली गई।
7- ताज महल के बारे में बताएं ।क्या कभी ताजमहल के चबूतरे पर बैठकर शहनाई बजाने का मन नहीं हुआ ?
जवाब - बेमिसाल है, चीज़ ऐसी है कि जवाब नहीं। दुनिया वाले इसकी नकल करके ले जाते हैं ।हम जब भी आए हैं ताजमहल खूब घूमे हैं ।अभी ज़ी टीवी के एक कार्यक्रम में आए थे। तब ताजमहल के पीछे एक 5 मिनट का कार्यक्रम दिया था।
8 - अगर आपको देश का मुखिया बना दिया जाए तब ?
जवाब- इस लायक नहीं है। लेकिन अगर हमको बना दिया गया बाबू ,तो यकीन मानिए राष्ट्रपति 10 राग 5 ताल याद हो तब, वजीर ए आजम 8 राग चार ताल याद हो तब। यह सब होगा तब जगह देंगे।
9- नई पीढ़ी से उम्मीदें ?
जवाब - किसी भी विद्यालय ने पंडित रविशंकर,उस्ताद अमजद अली खान नहीं दिए।क्योंकि वहां शिक्षा दी जाती है लेकिन रियाज नहीं कराते।
10- शहनाई का क्या भविष्य है ?
जवाब - रहेगी, हमारे मामू, परनाना, दादा, परदादा ने बजाया ।एक दो अवश्य से निकलेंगे,जो बजाएंगे।हमने एक रुपए का सवा सेर घी खाया है जो अब नहीं मिलता। दम का काम है फूंक मारनी पड़ती है, अब वह ग़िज़ा कहां से दें।रियाज ही रह गई है। कौन आएगा हम नहीं जानते ? मालिक शहनाई को सुर देगा तो आदमी भी देगा।
11- सबसे अच्छा जीवन का कार्यक्रम ?
जवाब- अब्दुल करीम खान तोड़ी अच्छा गाते थे।मुंबई के राज महल बिल्डिंग में ठहरे थे ।अब्दुल करीम कुछ साल पहले गुजर गए थे,उनकी याद में एक कार्यक्रम था। लोग लिवाने आ गए ,वहां चले गए। करीम खान के चित्र के पास शहनाई बजाई।तोड़ी बजाई तो देखा लोगों की आंखों में आंसू थे,हिचकी बंध गई। एक बुढ़िया बोली, कौन कहता है कि अब्दुल करीम खा नहीं रहे ।ऐसी तोड़ी जीवन में फिर नहीं बजा पाया।
12- आपकी जवानी व जिंदादिली का राज ?
जवाब- (हंसते हुए) जवानी का राज कुछ भी नहीं है। केवल संगीत व संगीत से लगाव है।हमें दुनियादारी से ज्यादा वास्ता नहीं है। आज भी पांचों वक्त की नमाज व अल्लाह का करम है।