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एम. एफ. हुसैन साहब का साक्षात्कार व औटोग्राफ लेते हुए |
एम. एफ. हुसैन साहब - एक महान चित्रकार
विश्व विख्यात चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन से ऑटोग्राफ व इंटरव्यू लेने का गौरवशाली क्षण, 8 जुलाई 2001, होटल होली डे इन।
सम्मान: पद्म श्री (1955), पद्म भूषण (1973), पद्म विभूषण (1991)
मक़बूल फ़िदा हुसैन, जिन्हें एम एफ़ हुसैन के नाम से भी जाना जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय चित्रकार थे। वे मशहूर ‘द प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। ‘भारत का पिकासो’ कहे जाने वाले हुसैन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 20वीं शदी के सबसे प्रख्यात और अभिज्ञात भारतीय चित्रकार थे। हुसैन को मुख्यतः उनकी चित्रकारी के लिए जाना जाता है पर वे कला की दूसरी विधाओं जैसे फिल्मों, रेख-चित्रण, फोटोग्रफी इत्यादि में भी पारंगत थे।
उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया। सन 1967 में उन्हें ‘थ्रू द आईज ऑफ़ अ पेंटर’ के लिए ‘नेशनल फिल्म अवार्ड फॉर बेस्ट एक्सपेरिमेंटल फिल्म’ मिला। सन 2004 में उन्होंने ‘मिनाक्षी: अ टेल ऑफ़ थ्री सिटीज’ नामक फिल्म भी बनायी जिसे ‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ में प्रदर्शित किया गया।
बम्बई गये और जे. जे. स्कूल ऑफ़ आअपने करियर के शुरूआती दौर में पैसा कमाने के लिए हुसैन सिनेमा के पोस्टर बनाते थे। पैसे की तंगी के कारण वे दूसरे काम भी करते थे जैसे खिलौने की फ़ैक्टरी में काम जहाँ उन्हे अच्छे पैसे मिल जाते थे। जब भी उन्हें समय मिलता वे गुजरात जाकर प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बनाते थे।
एक युवा पेंटर के तौर पर मकबूल फ़िदा हुसैन ‘बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स’ की राष्ट्रवादी परंपरा को तोड़कर कुछ नया करना चाहते थे इसलिए कुछ और चित्रकारों और कलाकारों के साथ मिलकर उन्होंने वर्ष 1947 में ‘द प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ की स्थापना की।
मकबूल फ़िदा हुसैन के कला कृतियों की पहली प्रदर्शनी सन 1952 में ज्यूरिख में लगायी गई। अमेरिका में उनके कला की प्रदर्शनी पहली बार सन 1964 में न्यू यॉर्क के ‘इंडिया हाउस’ में लगायी गई।
सन 1967 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘थ्रू द आईज ऑफ़ अ पेंटर’ बनाई जिसे ‘बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में प्रदर्शित किया गया और ‘गोल्डन बेयर शॉर्ट फिल्म’ का पुरस्कार भी मिला। सन 1971 में ‘साओ पावलो बाईएन्निअल’ में पाब्लो पिकासो के साथ-साथ वे भी विशिष्ट अतिथि थे।
1990 के दशक में हुसैन को हिन्दू देवी-देवताओं को गैर-पारंपरिक तरीके से दर्शाने के कारण कुछ हिन्दू संगठनों का विरोध झेलना पड़ा। उनके खिलाफ अदालत में कई मुकदमे दाखिल किये गए और सन 1998 में कुछ अतिवादी तत्वों ने उनके घर पर हमला कर तोड़-फोड़ भी किया। विरोध-प्रदर्शन के कारण उनकी एक प्रदर्शनी को लन्दन में भी बंद करना पड़ा।
सन 2000 मेंउन्होंने प्रसिद्ध अदाकारा माधुरी दीक्षित को लेकर ‘गजगामिनी’ नामक फिल्म बनायी। सन 2004 में उन्होंने अदाकारा तब्बू के साथ एक और फिल्म ‘मिनाक्षी: अ टेल ऑफ़ थ्री सिटीज’ बनायी पर कुछ मुस्लिम संगठनों के विरोध के बाद हुसैन ने फिल्म को सिनेमाघरों से उतार लिया।
सन 2006 में हुसैन पर हिन्दू देवी-देवताओं के नग्न चित्रों के द्वारा ‘लोगों की भावना को ठेस पहुँचाने’ का आरोप लगाया गया। हालाँकि फिल्म सिनेमा घरों में ज्यादा समय तक प्रदर्शित नहीं हो पाई पर फिल्म समीक्षकों ने फिल्म को सराहा और इसे कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए। इस फिल्म को ‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ में भी प्रदर्शित किया गया।
सन 2008 में एम एफ हुसैन सबसे महंगे भारतीय चित्रकार बन गए जब क्रिस्टीज के नीलामी में उनकी एक चित्रकला लगभग 16 लाख अमेरिकी डॉलर में बिकी।
सन 2007 के आस-पास तक ‘लोगों की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने’ के मामले में हुसैन के खिलाफ 100 से भी ज्यादा मुकदमे दाखिल हो गए थे । और इन्ही में से एक मामले में ‘अदालत में हाजिर नहीं होने के लिए’ उनके खिलाफ वारंट भी जारी कर दिया गया। हालाँकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस वारंट को बाद में रद्द कर दिया था। हुसैन को मौत की धमकियाँ भी मिली जिसके बाद उन्होंने 2006 में स्वेच्छा से देश छोड दिया था और लंदन में प्रवास करने लगे
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