*संस्मरण 9*
ताजमहल से टकरा कर आ रही थी जगजीत सिंह की गजलें
अनुपम सौंदर्य का प्रतीक ताजमहल, उसके पास बसा शिल्पियों का एक गांव (शिल्पग्राम)। हर साल की तरह यहां ताजमहोत्सव का आयोजन हो रहा था। संभवतः वर्ष 1994 की बात है, अन्य कलाकारों के बाद मखमली आवाज के जादूगर गजल गायक जगजीत सिंह का कार्यक्रम रात 11 बजे करीब शुरू हुआ। उन्होंने अपनी गजलों से हर श्रोता का मन मोह लिया। प्रांरभिक दौर में उन्होंने अपनी हल्की-फुल्की गजलें सुनाईं। मध्यांतर करीब 12 बजे हुआ। उसके बाद जो लोग उनके नाम की वजह से आए थे वो तो चले गए, लेकिन जो वास्तव में गजल प्रेमी थे, वे वहां रुके रहे, उनकी संख्या भी काफी थी। मध्यांतर के बाद उन्होंने अपनी गजल पेश की, श्रोता झूम उठे। सुर माहौल में गुंज रहे थे। लग रहा था, जैसे आधा किलोमीटर दूर ताजमहल के गुंबद से उनके सुर लौट कर आ रहे हों। इस दौरान उन्होंने सुनाया था- *चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले*। इस गजल की दो लाइनों को उन्होंने अलाप लेकर गाया, जैसे कि वे मुमताज और शाहजहां की कब्रों तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हों-
*दिल ने एक ईंट सा तामीर किया ताजमहल*
*तूने एक बात कही, लाख फसाने निकले*
अपनी प्रस्तुति का समापन उन्होंने बात दूर तलक जाएगी गजल से किया था।
जगजीत सिंह को ताजमहल उसके इस शहर से बेपनाह मुहब्बत थी। कहते थे कि ताजमहल उन्हें खींच कर ले आता है। ताजमहल पर उनकी ये गजल बहुत लोकप्रिय रही।
*इतिहास की होठों पर मुहब्बत की गजल है,*
*ये ताजमहल है, ये ताजमहल है*
ताजमहल के इस नगर में उनकी पहली प्रस्तुति होटल क्लार्क शिराज में वर्ष 1980 में हुई थी। तब वे अपनी पत्नी चित्रा के साथ आए थे। उसके बाद तो ताजमहोत्सव में कई बार उनके कार्यक्रम हुए।
मियां नजीर और मिर्जा गालिब बहुत पसंद थे। वे अपनी कार्यक्रमों की प्रस्तुति से पहले उनका जरूर स्मरण करते थे। आज भी आगरा वासी उनके पुरानी यादों को ताजा करते हैं।
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*भड़क उठे थे व्यवधान पर*
जगजीत सिंह ही मेरी हर बार मुलाकात हुई, साक्षात्कार लिए, बहुत ही सजह और सरल हृदय थे। एक बार किसी क्लब ने जगजीत सिंह संध्या का आयोजन एक फाइव स्टार होटल में किया था। उन्होंने किसी को खबर तक नहीं की। हमें अचानक पता चला तो मैं और फोटो जर्नलिस्ट ब्रिजेश सिंह पहुंचे। रात भी बहुत हो चुकी थी, यह डर था कि कहीं उनका कार्यक्रम समाप्त ही न हो रहा हो। ब्रिजेश जी ने वहां पहुंच कर तड़ात़ड़ फोटो खींच डाले उनके सामने खड़े हो कर। वे भड़क उठे, गाना बंद कर दिया। बोले पहले तुम फोटो ले लो। जब उन्हें परिचय दिया और क्षमा याचना की, तब उन्होंने फिर से अपना कार्यक्रम शुरू किया था।
जगजीत सिंह जी की जगह आज तक कोई नहीं ले सका। उनकी गजलों का जो चयन होता था, वह गजब था। उनकी आवाज दिल में उतरती जाती थी। मैं उनकी पुण्यतिथि पर नमन करता हूं।
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