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एक विधायक, जो त्यागपत्र देकर बन गए थे मुनि
इन्हीं के आमंत्रण पर कई बार आगरा आए थे श्री हरिवंशराय बच्चन
पूरे देश में शायद ही कोई एसा उदाहरण होगा कि विधान सभा से त्यागपत्र देकर कोई विधायक मुनि बन जाए। राजनीतिक सुखों को तिलांजलि देकर समाजसेवा को समर्पित हो जाएं। आगरा के विधायक बाबूलाल मीतल ने एसा उदाहरण पेश किया था।
चित्तीखाना निवासी श्री बाबूलाल मीतल का परिवार व्यावसायिक था, लेकिन उनकी रुचि व्यवसाय में नहीं थी। वे उन्होंने अधिवक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। इसके साथ ही सन् 1915 में महात्मा गांधी के संपर्क में आकर स्वाधीनता आंदोलन में कूद गए। सभी आंदोलनों में भाग लेने लगे थे और व्यक्तिगत सत्याग्रह में सन् 1941 में पहली बार जेल गए थे।
9 अगस्त 1942 को देश भर में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ। 10 अगस्त को चुंगी के मैदान में जो विशाल सभा हुई, उसकी अध्यक्षता भी मीतल जी ने की थी। इस आंदोलन में एक युवक परशुराम शहीद हुए थे। अन्य स्वाधीनता सेनानियों के साथ मीतल जी भी इस आंदोलन में जेल गए थे। उनके साथ जेल में जो अन्य कैदी थे, उनमें श्री शंभूनाथ चतुर्वेदी, श्री गणपति चंद्र केला, बटेश्वर के श्री लीलाधर वाजपेई प्रमुख थे। मीतल जी जेल में ही गीता प्रेस के कल्याण का अध्ययन करते थे।
आजादी के बाद सन् 1952 में भी प्रथम विधानसभा के चुनाव हुए। उसमें कांग्रेस ने उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ाया। चुनाव में उनके प्रचार का तरीका अलग ही रहता था। अपने विरोधियों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलते। उन्होंने किसी से चंदा नहीं लिया, जो खर्च करना चाहते थे, उन्हीं से प्रचार आदि में खर्चा करा लिया करते थे। चुनाव में किसी वाहन का प्रयोग नहीं किया, केवल पदयात्रा ही की।
चुनाव में वे भारी मतों से विजयी हुए थे। विधानसभा में 431 विधायकों में से केवल पचास ही गैर कांग्रेसी थे। मुख्यमंत्री श्री गोविंद बल्लभ पंत थे। विधानसभा की पब्लिक एकाउंटस कमेटी और जनरल एडिमिनिस्ट्रेशन कमेटी का सदस्य मीत्तल जी को बनाया गया था।
सब सुख थे, लेकिन उन्हें कोई रास नहीं आ रहा था। वे
चुनाव जीतने से पूर्व ही वे आचार्य विनोबा भावे और उनके आंदोलन से प्रभावित हो चुके थे। उनकी पुस्तकें पढ़ते। 27 अक्टूबर सन् 1951 को जब भूदान आंदोलन की यात्रा ने आगरा जिला में प्रवेश किया, तब पहला पड़ाव जाजऊ गांव था। यहीं पर श्री बाबूलाल मीतल ने उनके पहली बार दर्शन किए थे। यही वजह थी कि राजनीति में अरुचिकर लगने लगी।
30 जनवरी 1955 को जीवनदान पत्र लिखा और विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया। विनोबा जी की शरण में चले गए। विनोबा जी ने उन्हें आदिवासियों की सेवा में उड़ीसा भेज दिया। सन् 1960 में जब बागियों ने समर्पण किया था, तब विनोबा जी के आदेश पर मीतल जी ने बागियों की कानूनी सहायता भी की। 1980 में ब्रह्मविद्या मंदिर, पवनार आश्रम में विनोबा जी के साथ उनके परम शिष्य के रूप में रहने लगे। 24 जून 1988 को उनका निधन हो गया था।
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जीवन में कोई पेंशन ग्रहण नहीं की
गांधीवादी श्री शशि शिरोमणि जी के अनुसार मित्तल जी का जन्म सन् 1900 में रोशन मोहल्ला में लाला केदारनाथ के घर हुआ था। पिताजी जी की जौहरी बाजार में कपड़े की दुकान थी। जब बाबूलाल जी तीन साल के थे, तभी पिताजी का निधन हो गया। पालन पोषण बाबा लाला बांकेलाल ने किया। सन् 1918 में विक्टोरिया स्कूल से इन्होंने हाईस्कूल पास किया। इलाहाबाद से बीए करने के बाद आगरा कालेज में 1926 में विधि स्नातक की डिग्री ली और फिर अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस करने लगे थे। इन्हीं दिनों वे यूनाइटेड प्रेस आफ इंडिया के स्थाई प्रतिनिधि बन गए और आगरा के समाचार इस न्यूज एजेंसी को भेजने लगे थे।
1919 में मित्तल जी कि विवाह कस्तूरी देवी से हुआ, लेकिन आठ साल बाद ही पत्नी का विछोह हो गया। इनके आमंत्रण पर हरिवंश राय बच्चन कई बार आगरा आए थे और मधुशाला सहित कई रचनाएं सुनाई थीं। बांकेबिहारी के भक्त थे और नियमित दर्शन करने जाते थे। स्वाधीनता संग्राम सेनानी व विधायक पद की कोई पेंशन नहीं ली।
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