Tuesday, August 29, 2023

अमर उजाला,आगरा में कान्हा के मंदिर सीरीज की आज पहली किस्त।

Thursday, August 3, 2023

ब्रज वाणी कम्युनिकेशन में शहीद इंद्र चंद पेंगोरिया की दास्तान।

https://youtu.be/-6m2VqdSN20

गुमनाम क्रांतिकारी,,,पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

श्रंखला---- गुमनाम क्रांतिकारी 
डंडे पड़ते रहे, पर झंडा नहीं झुकने दिया
पं.श्रीराम शर्मा आचार्य विचार क्रांति अभियान से पहले थे स्वातन्त्र्य वीर सेनानी
गायत्री परिवार में हैं इनके करोड़ों अनुयायी 
प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
आगराः युग ऋषि पं.श्रीराम शर्मा आचार्य ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में क्रांति की, उसके बाद वे विचार क्रांति अभियान के संवाहक बने। अनगिनत पुस्तकें लिखीं। उनके गायत्री परिवार में करोड़ों अनुयायी हैं। 
20 सितंबर 1911 को आंवलखेड़ा में पं.रूपकिशोर शर्मा के यहां जन्मे पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी में बचपन से ही देशभक्ति और ईश्वर भक्ति की भावना थी। 15 वर्ष की अवस्था से ही आचार्य जी स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। सन् 1927 से 1933 स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रहे। 23 मार्च 1931 को सरदार भगतसिंह को फांसी पर लटकाये जाने के विरोध में निषेधाज्ञा तोड़ी और जुलूस आदि में भाग लिया, फलस्वरूप वे गिरफ्तार कर लिए गए। आंवलखेड़ा के खेड़ा गांव के निकट पारखी गांव में झंडा जुलूस निकाल रहे थे कि पुलिस पहुंच गई और जम कर डंडों से पिटाई की। जिससे अर्ध मूर्छित होकर जमीन पर गिर गए, लेकिन तिरंगे झंडे को अपने हाथ से नहीं छोड़ा था। 
सन् 1933 में कांग्रेस का कोलकाता में अधिवेशन  था। जिसमें आगरा से कई जत्थे वहां जा चुके थे। आखिरी जत्था पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के नेतृत्व में वहां जाने को निकाला। अंग्रेज सरकार उस अधिवेशन को असफल करना चाहती थी। सब-इंस्पेक्टर अनंतराम ने उन्हें पहचान लिया और उनकी घेराबंदी कर ली। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, जगन प्रसाद रावत व गोपाल नारायण शिरोमणि आदि को गिरफ्तार कर कारागार भेज दिया। कोलकाता अधिवेशन की अवधि समाप्त होने के बाद ही सभी को रिहा किया गया। 
25 वर्ष की आयु में आचार्य जी ने एक सरकारी इमारत पर तिरंगा फहरा दिया, वे तत्काल गिरफ्तार कर लिए गए और  लगभग एक साल तक कारागार में रहना पड़ा। उसके बाद सावरमती आश्रम में कुछ दिनों गांधी जी का सानिध्य प्राप्त किया। 
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 सैनिक में पत्रकारिता की
आगरा से प्रकाशित स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी समाचार पत्र सैनिक में आचार्य पंडित श्री राम शर्मा जी ने पत्रकारिता की। प्रधान संपादक पं.श्रीकृष्णदत्त पालीवाल जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। यहां “मत्त”नाम से राष्ट्रभक्ति की कविताएं भी लिखीं। इसके अलावा प्रताप अखबार में भी कार्य किया। 
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2400 प्रज्ञा पीठ स्थापित
आचार्य जी शुरू से ही उदार प्रवृत्ति के रहे। उन्होंने आंवलखेड़ा में अपनी भूमि गायत्री मंदिर के लिए दान में दी। छोटे से भूखंड पर अपनी माताजी दानकुंवरि जी के नाम पर इंटर कालेज की स्थापना की। देश-विदेश में संख्या 2400 शक्तिपीठ स्थापित कीं। छह संस्थान प्रमुख हैं,  गायत्री तपोभूमि, मथुरा,  अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा, गायत्री शक्तिपीठ, आंवलखेड़ा आगरा, शन्तिकुंज, हरिद्वार एवं  ब्रह्मवर्चस्व, हरिद्वार, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार। विश्व के 120 देशों में इनके केन्द्र स्थापित हैं। शान्तिकुंज हरिद्वार, एक विशाल आश्रम हैं, जहां 95 वर्षों से अखण्डदीप प्रज्वल्लित है, जिसे आचार्य जी ने ही प्रज्ज्वलित किया था। आचार्यजी ने हजारों ग्रंथों की रचना की है।

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-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार, आगरा
मोबाइल नंबर 9837069255
(पं.श्रीराम शर्मा आचार्य स्वाधीनता सेनानी थे, ये लोगों को जानकारी नहीं है,इसलिए यह आलेख लिखा गया है।)

Wednesday, August 2, 2023

अमर उजाला, आगरा में शुरु हुई मेरी आलेख श्रंखला, गुमनाम क्रांतिकारी,,,,आज प्रथम आलेख।श्रंखला---स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम क्रांतिकारीहर लाठी के बाद मुख से निकलता था “इंकलाब-जिंदाबाद”अंग्रेजों की पिटाई से जेल में शहीद हुए थे इंद्रचंद्र पैगोरियाप्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकारआगराः फिदा वतन पर हो जो, आदमी दिलेर है वह,जो यह नहीं तो फकत हड्डियों का ढेर है वह ।भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इस महायज्ञ में जो आहुतियां दी गईं, उनमें अधिकांश नौजवान ही थे। जिन्होंने न अपने परिवार की चिंता की, न भविष्य की। फांसी के फंदों को चूम लिया, गोलियां खाईं या फिर ब्रिटिश पुलिस के अत्याचारों से तिल-तिल कर, जेलों में घुट-घुट कर अपने प्राणोत्सर्ग कर दिए। अमर शहीद इंद्रचंद्र पैगोरिया भी एक एसे 32 वर्षीय देशभक्त थे, जो हर सुबह “इंकलाब-जिंदाबाद” बोलते, जिससे आक्रोशित अंग्रेज सिपाही लाठियों से मारते। यह क्रम प्रतिदिन चलता था। इस अमानुषिक उत्पीड़न से इंद्र बीमार हो गए और जेल में ही उनकी शहादत हो गई थी। 1942 की अगस्त क्रांति में पूरा देश आंदोलित हो उठा था। क्योंकि इसे महात्मा गांधी ने अंतिम क्रांति घोषित कर दिया था और मंत्र दिया था “अंग्रेजो भारत छोड़ो”, “करो या मरो”। आगरा शहर में भी यह जन क्रांति पूरी तरह से बेकाबू हो गई थी। सरकारी कार्यालयों को आग लगाई गई। रेल की पटरियां उखाड़ी गईं। हर तरफ आंदोलन ही आंदोलन थे।इसी आंदोलन के तहत राया (मथुरा) के स्टेशन को फूंकने के लिए आगरा और मथुरा के युवकों का एक दल पहुंचा, इनमें इंद्रचंद्र पैगोरिया, नेकराम शर्मा,बाबूलाल शर्मा, बंगालीमल अग्रवाल, ओमप्रकाश तिवारी, कुंवर बहादुर सिंह, गुरु प्रसाद, ओंकारनाथ,रामबाबू, भगवानदास शामिल थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस पहले ही सतर्क हो गई थी। उसने सभी को गिरफ्तार कर लिया। उनमें शामिल इंद्रचंद्र पैगोरिया को भारत रक्षा कानून की धारा 35 और 38 के तहत दो वर्ष की सजा दी गई और मथुरा की जिला जेल में भेज दिया। उसके बाद आगरा जिला कारागार में रखने के बाद कोलकाता की अलीपुर जेल में पहुंचा दिया। इस जेल में पहुंच कर उन्होंने एक नया क्रम बना लिया, सुबह उठते ही पूरे जोश के साथ “इंकलाब-जिंदाबाद” का घोष करते थे। यह सुनकर वहां के जेलर का पारा हाई हो जाता था और उन्हें बेरहमी से पिटवाता था। लेकिन उनके जोश में कोई कमी नहीं आती थी। हार कर अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें सुल्तानपुर भेज दिया। तब तक उनका शरीर जर्जर और बीमार हो चुका था और वहां वे एक जनवरी 1943 को उन्होंने अंतिम सांस ली। आगरा का यह लाड़ला शहीद हो गया। -------------नेताजी सुभाषचंद बोस से था परिचयइंद्रचंद्र पैगोरिया का जन्म सन् 1911 में आगरा की फतेहाबाद तहसील के गांव जयनगर में चिकित्सक पिता विधिचंद व माता भाग्यवती के यहां हुआ था। इनकी मां भाग्यवती देवी महान क्रांतिकारी लाला लाजपतराय की छोटी बहन थीं। इंद्रचंद्र के भाई डा.हरिश्चंद्र पैगोरिया भी कई बार जेल हो आए थे। 1939 में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इंद्रचंद्र स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। इनका नेताजी सुभाषचंद बोस से भी परिचय था। इन्हीं के कहने पर सन् 1940 में आगरा आए थे और मोतीगंज की चुंगी के मैदान में सभा की थी। इंद्रचंद्र पैगोरिया को उनकी शहादत के बाद जो मान-सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। न शासन ने उनकी सुध ली न प्रशासन ने। माथुर वैश्य समाज ने अभी अपनी एक पुस्तक स्वाधीनता सेनानियों पर प्रकाशित की है। उसमें भी उनका कोई उल्लेख नहीं है। आदर्श नंदन गुप्ता, ए-3, सीताराम कालोनी, फेस-1, बल्केश्वर, आगरा। मोबाइल नंबर-9837069255

Monday, July 17, 2023

लता मंगेशकर,,,, मेरा सुंदर सपना टूट गया

लता मंगेशकरः मेरा सुंदर सपना टूट गया...

35 वर्षीय हिंदी पत्रकारिता में मैंने अनगिनत शख्सियतों के दर्शन किए, साक्षात्कार लिए, पर मेरी इच्छा थी कि एक बार आदरणीय लता मंगेशकर जी के भी दर्शन हो जाएं,  क्योंकि आदरणीय आशा भोसले जी से मेरी मुलाकात तो आगरा आगमन पर हो चुकी थी।मेरी मुख्य धारा की पत्रकारिता यानि 1991 के बाद उनका शुभागमन आगरा में नहीं हुआ, इसलिए उनसे मेरा मिलना नहीं हो पाया। 30 अगस्त सन् 2014 में मुझे संपत्ति ग्रुप राजकोट व एमफारयू के अश्वमेधा सम्मान के लिए भाई  श्री दुष्यंत प्रताप सिंह ने मुंबई आमंत्रित किया। तब मैंने काफी प्रयास किए उनसे मिलने के लिए। अपने राजश्री प्रोडक्शन के अपने मित्र के माध्यम से उन्हें पत्र भिजवाया। मुलाकात की बात भी हो गई। फिल्म कलाकार राजन यानि चार्ली चैप्लिन मेरे साथ थे। जब मैंने उनके आवास  पर फोन किया तो उसे लता मंगेशकर जी की बहन उषा मंगेशकर जी ने रिसीव किया। उन्होंने तब बताया कि उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया है। वे एक सप्ताह तक नहीं मिल सकती हैं। अतः भारी मन से हम उनसे बिना मिले, मुंबई से वापस लौट आए थे। 
उसके बाद से लगातार मेरा प्रयास रहा कि किसी तरह से उनसे मुलाकात हो जाए, लेकिन सफलता नहीं मिली। आज जब उनके निधन का समाचार मिला तो बहुत दुख हुआ। भगवान उनकी आत्मा को परम शांति प्रदान करें। बस उनका गाए गीत की यह पंक्तियां बार-बार याद आ रही हैं-जाने वाले से मुलाकात ना होने पाई...। 
आदर्श नंदन गुप्ता

1978 के बाढ़ वाले दहशत भरे दिन

यादें- 1978 की बाढ़ के दहशत भरे दिन

चारों ओर पानी का सैलाब 
पलट गई थी नाव, तीन लोगों की ली थी बलि

प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
आगराः सन् 1978 की बाढ़ की याद आते ही हृदय प्रकंपित होने लगता है। भयावह दृश्य सामने आते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। लगता था कि कब मकान ढह जाएं। न जाने कब क्या हो जाए।
सितंबर 1978 में जैसे ही यमुना का जल स्तर तेजी से बढ़ना शुरू हुआ,  प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में जाने के लिए मुनादी करा दी थी, लेकिन कोई भी अपना घर छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं था। बहुत ही कम एसे लोग थे, जिन्होंने प्रशासन के आश्रय स्थलों में शरण ली हो। 
उन दिनों तिकोनिया बेलनगंज में हमारा घर था। सभी लोगों ने अपनी-अपनी छतों पर बसेरा कर लिया था। यमुना किनारे की सड़क पर पानी आ गया, तब सबसे पहले सेकसरिया इंटर कालेज वाले रास्ते पर सबसे पहले पानी आया। उसके बाद नाले-नालियों का पानी लौटकर बस्तियों में भरने लगा था। धीरे-धीरे नालों को पानी और यमुना का जल एक ही हो गया। पूरी यमुना एक जैसी हो गई और धूलियागंज में बसंत टाकीज तक पानी पहुंच गया।  
फ्रीगंज, दरेसी, सिंगी गली, कृष्णा कालोनी, कचहरी घाट सहित अन्य क्षेत्रों में चार फुट से अधिक पानी था। इन सड़कों पर मिलट्री की नावें चलने लगीं। उनके द्वारा राहत कार्य किये जाने  लगे थे। घिरे हुए लोगों को प्रशासनिक आश्रय स्थलों तक पहुंचाने की व्यवस्ता नावों द्वारा की जा रही थी। 
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पलट गई थी नाव,हुआ था हादसा
यमुना के किनारे तो हाथी डूबा पानी था। 11 सितंबर 1978 का दिनथा। मथुराधीश मंदिर के समीप दाऊजी मंदिर (गोपाल भवन) निवासी सुरक्षित स्थानों पर जाना चाहते थे। पंचमुखी महादेव मंदिर के महंत पं.गिरीश अश्क ने बताया कि एक प्राइवेट नाव में करीब 19 लोग बैठ गए थे। सेकसरिया कन्या इंटर कालेज के मोड़ पर अचानक नाव पलट गई, सभी लोग तेज बहाव में बह गए। इनमें कुछ लोग तैराक थे जो तैरते हुए आसपास निकल गए। कुछ बाबाजी की बुर्जी पर पहुंच गए। श्याम लाल शर्मा की पत्नी लीलावती, (डा.राम नारायन शर्मा (एक्स-रे वाले),वैद्य रामधन शर्मा की बहन), जगदीश प्रसाद की पत्नी मिथलेश और उनका नवजात शिशु को नहीं बचाया जा सका। उनके शव का पंचनामा करके जलदाह करना पड़ा था, क्योंकि उन दिनों सभी श्मशानघाटों पर पानी भरा हुआ था। मथुराधीश मंदिर के महंत नंदन श्रोत्रिय का कहना है कि उनके पिताजी हरीमोहन श्रोत्रिय (मोहन गुरु) व कौशल शर्मा ने जब नाव पलटती देखी तो वे सभी को डूबने से बचाने के लिए पानी में कूद पड़े और कुछ लोगों को बचा लिया था। डूबे हुए लोगों में से कुछ लोग बहते हुए आगरा किला के पास पहुंच कर वहां रैलिंग के पास अटक गए थे, जिन्हें मिलट्री के जवानों ने बचा लिया था।  
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समाजसेवी भी रहे सक्रिय 
समाजसेवी संगठन भी सक्रिय हो गये थे। सिविल डिफेंस के अधिकारी व स्वयंसेवकों के अलावा नैतिक विकास संगठन के डा.रामबाबू अग्रवाल, नैतिक नागरिक संघ के प्रतापचंद जैसवाल के अलावा बालोजी अग्रवाल, मदन पटेल, हरीओम भारद्वाज, पुरुषोत्तम खंडेलवाल (वर्तमान विधायक), दीपक खरे, जेपी युवक आदि नावों के माध्यम से भोजन आदि पहुंचाने का काम कर रहे थे।

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हैलीकाप्टर से भोजन वितरण
कई दिन तक बाढ़ का पानी नहीं उतरा तो प्रशासन की ओर से हेलीकाप्टर द्वारा भोजन के पैकेट छतों पर रह रहे लोगों को डाले गए थे। 
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चीनी का बन गया शर्बत
बारहभाई गली में चीनी का बड़ा व्यापार होता था। वहां चीनी के बड़े-बड़े गोदाम थे। पूर्व पार्षद दीपक खरे ने बताया कि एक व्यापारी ने चीनी की गोदाम के बाहर ईंटों की मजबूत दीवार चिनवा दी। लेकिन पानी किसी छेद से घुस गया और सारी चीनी शर्बत बन कर बह गई। बाद में केवल खाली बोरियां रह गई थीं। 
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बाढ़ के बाद मिट्टी के टीले और कीचड़
जब बाढ़ का पानी चला गया तो सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की मोटी पर्त, कीचड़ आदि को हटाने की थी। जो कई सप्ताह बाद हट पाई थी। मकानों में सीलन से दरारें भी आ गई थीं।

Sunday, July 9, 2023

तोरा गांव के मोगरा से महके बांके बिहारी मंदिर


तोरा गांव के मोगरा से महक रहा बांके बिहारी मंदिर
चार कुंतल प्रतिदिन आगरा से मथुरा-वृंदावन जाता है यह फूल
रोजाना सजाये जा रहे हैं आकर्षक फूल बंगला 

प्रस्तुति-आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
आगराः वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में प्रवेश करते ही आनंद की फुहार तन-मन को प्रफुल्लित कर देती है। मंद-मंद बयार के साथ आनंदित कर देने वाली सुंगध भगवान की भक्ति में विभोर कर देती है। मोतियों की तरह लटकते फूलों की लड़ियां, उनकी डिजाइनर आकृतियां भी फूल बंगला की छटा को और अधिक मनोहारी कर देते हैं। इन्हीं फूलों की माला पूरे मथुरा-वृंदावन में विक्रय के लिए उपलब्ध रहती हैं, अपने आराध्य को अर्पित करने के लिए, अपने जीवन को सुवासित करने  के लिए। 
जिस मोगरा के फूल की यह सुगंध भक्ति में विभोर करती हैं, वह फूल आगरा में ताजगंज के गांव तोरा से जाता है।  इन  फूलों से वहां नियमित फूल बंगला सजाया जा रहा है, जिसकी सुगंध पूरे देश में फैल रही है। देशभर से आने वाले श्रद्धालु भी मोगरा की माला अपने साथ प्रसाद के रूप में ले जाते हैं। बांके बिहारी मंदिर के अतिरिक्त मथुरा और वृंदावन के अन्य मंदिरों में फूल बंगला जाने के लिए भी यह मोगरा भेजा रहा है। 
तोरा गांव फूलों की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यहां के 15 किसान लंबे समय से मोगरा की ही खेती करते हैं। यह मोगरा आगरा के आसपास के अन्य शहरों में नाममात्र का होता है। तोरा गांव में इसकी भरपूर खेती होती है, जिससे यह फूल अहमदाबाद, जयपुर, अजमेर सहित अन्य शहरों में भी आगरा से ही जाता है। मोगरा की खेती करने वाले हिमांशु पाराशऱ ने बताया कि यहां करीब सौ बीघा खेत में यह फसल होती है। एक बार खेत में इसकी पौध लगने के बाद 30-35 साल तक फिर से पौधारोपण की जरूरत नहीं पड़ती। हर साल नव दुर्गा के बाद यह फसल होने लगती है। और जन्माष्टमी के आसपास यह फूल आना खत्म हो जाता है। मोगरा की खेती मनीष पाराशर, हरीकांत दीक्षित, कुंवरपाल राजपूत, कालीचरन आदि करते हैं। 
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बांके बिहारी को पसंद है मोगरा की सुगंध 
भगवान  बांके बिहारी को मोगरा के फूल की सुंगध बहुत पसंद है। इन दिनों इनकी इसी फूल की माला भी उन्हें अर्पित की जाती है। मोगरा के फूल के इत्र से भी ठाकुरजी की सेवा की जाती है। मोगरे की खुशबू से शीतलता का आभास होता है। 
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(वर्जन)
तोरा गांव से प्रतिदिन बांकेबिहारी जी मंदिर व अन्य मंदिरों के लिए मथुरा और वृंदावन प्रतिदिन 3 से 4 कुंतल प्रतिदिन मोगरा का फूल जाता है। यह गांव के लिए नहीं, आगरा जनपद के लिए गौरव की बात है। पहले गोकुल और अब गोवर्धन में भी इस फूल की खेती होनी लगी है, लेकिन नाममात्र को होती है। तोरा गांव में फूल की जो फसल होती हैं, उसका मुकाबला कहीं नहीं है। 
-नवीन पाराशर, अध्यक्ष-आगरा फूल व्यवसाय एसोसिएशन

अमर उजाला में प्रकाशित मेरा आलेख।

Thursday, June 15, 2023

कल उमड़ी थी, मिट आज चली

... कल उमड़ी थी मिट आज चली...
सन् 1982 के करीब की बात है। तब मैं साप्ताहिक स्वराज्य व दैनिक स्वराज्य टाइम्स के संपादक मंडल में था। साहित्य ही मेरा प्रिय विषय था।अतः इस प्रकार आलेख लिखना व संपादन किया करता था।देश भर की पत्र-पत्रिकाओें का पढ़ने में रुचि भी थी। परम पूज्य महादेवी वर्मा जी के प्रति अटूट  श्रद्धा थी। पाठ्यक्रमों में मैंने उनको पढ़ा था। तब बहुत बड़े साहित्यकार भी संपादक के नाम पत्र लिखने में संकोच नहीं करते थे।एक दिन साप्ताहिक हिंदुस्तान में पूज्य महादेवी वर्मा जी का युवाओं पर एक पत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने यह लिखा था कि बेरोजगारी के कारण ही युवा अपराध की दुनिया में जा रहा है।
मुझे पढ़ कर अच्छा नहीं लगा। मैंने पूरी श्रद्धा के साथ, पूज्य महादेवी जी से क्षमा याचना सहित एक पत्र साप्ताहिक हिंदुस्तान के पत्र कालम के लिए ही लिखा।उसमें मैंने उनकी बात का विरोध किया। लिखाकि यदि कोई युवक बेरोजगार है तो क्या वह अपराध की दुनिया में चला जाएगा। रोजगार के लिए अन्य उपाय है। अपराध की दुनिया में रोजगार युवक भी जा सकते हैं। मैंने लिखा कि युवाओं नकारात्मक सोच की नहीं, सकारात्मक सोच की जरूरत है।
वह पत्र साप्ताहिक हिंदुस्तान ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। (मुझ पर इसका कोई प्रमाण नहीं है)
11 सितंबर 1987 को स्वराज्य टाइम्स कार्यालय में बैठा था। ट्रांजिस्टर पर समाचार सुन रहा था। अचानक समाचार आया,महादेवी जी का निधन हो गया। मैं स्तब्ध रह गया। हिंदी साहित्य का बहुत बड़ा नुकसान था। मेरी आंखें छलछला गई। मेरे दिमाग में उन्हीं की कविता की दो पंक्तियां बार-बार तैर रही थीं-..कल उमड़ी थी, मिट आज चली। तभी मैंने उनका समाचार स्वराज्य टाइम्स के लिए लिखना शुरू किया। उनके परिचय के साथ साहित्यिक यात्राऔर देहावसान पर शोक। आगरा के कुछ साहित्यकारों की ओर से श्रद्धांजलि भी लिखी । मैंने हैडिंग लगाया था---कल उमड़ी थी मिट आज चली। यह समाचार प्रकाशित हुआ। दूसरे दिन प्रेस जाकर जब मैंने दिल्ली के समाचार पत्र देखे तो उनमें भी यही शीर्षक था। मुझे बहुत अच्छा लगा। यानि मुझे लगा कि मेरी सोच भी वही थी जो दिल्लीा के पत्रकारों की रही होगी।
आज महादेवी जी की जयंती है। मुझे यह स्मृतियां आज ताजा हो गईं। उनकी जयंती पर मैं उनके चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं।

भेरों बाजार की सेंट्रल बैक से था पुराना नाता

भेरों बाजार की सेंट्रल बैक से था पुराना नाता

हमारे परिवार का संबंध केनरा बैंक, स्टेट बैंक, ग्रामीण बैंक से सीधा-सीधा रहा, क्योंकि हमारे भाई यहां सेवारत रहे, लेकिन बेलनगंज के भैरों बाजार स्थित सेंट्रल बैंक से हमारा सबसे अच्छा और सबसे लंबा नाता रहा। जो दिल से जुड़ा रहा।

सेंट्रल बैंक को लेकर मेरी सबसे पहली एक तस्वीर जो बनती है, वह उसके गेट पर खड़ा बूढ़ा छोले वाला। जब हम तीन, चार साल के रहे होंगे, तब हम लोग अपने आवास (तब तिकोनिया बेलनगंज में, भीकमपान वाले के बराबर) से यह छोले लेने जाते थे। पत्ते पर रखे वे 10-5 पैसे के छोले का स्वाद निराला था। खुब चटखारे लेकर खाते था। उसका स्वाद आज भी मेरी जीभ पर है।

बेलनगंज में उस समय एक दर्जन से अधिक बैंक थी। जिनमें से ज्यादातर भैरों बाजार के आसपास थीं। लंच टाइम में सभी कर्मचारी इस पतले-दुबले, इकहरे बदन वाले बाबा के छोले के स्वाद लिया करते थे।

उसके बाद मुझे याद आती है, शहर के प्रमुख समाजसेवी और सांस्कृतिक सेवा समिति के अध्यक्ष स्व.श्री बीएन शुक्ला की। जो ड्यूटी के बाद या लंच टाइम में हमारे आवास पर पूज्य पिताजी (स्व.रोशनलाल गुप्त करुणेश जी से सलाह-मशवरा करने आया करते थे। उन्होंने आगरा में प्रतिवर्ष पांच विभूतियों को आगरा रत्न की उपाधि देने की श्रंखला शुरू की थी। जब हमारे पिताजी को यह सम्मान मिला, उसी वह इस समारोह में सुंदरानी नेत्र चिकित्सालय के संस्थापक पद्म श्री जेएम पाहवा, होटल ग्रांड के स्वामी श्री रंजीत  राय डंग जी को भी सम्मानित किया गया था। मुख्य अतिथि से पूर्व सांसद एवं स्वाधीनता सेनानी स्व.शंभूनाथ चतुर्वेदी। सम्मान की यह श्रंखला उनके निधन के बाद ही बंद हो गया। उनके साथी स्व.धर्मपाल साहनी विशेष रूप से हुआ करते थे।

मेरे हिसाब से बेलनगंज की जितनी भी बैंक थीं या अब है, सबसे ज्यादा जगह इसी बैंक पर है। शायद 1200 वर्ग गज। इसी बिल्डिंग में आज भी डाकखाना संचालित है। इस बिल्डिंग सहित अनेक बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, जमीन जायदाद आगरा के प्रमुख उद्योगपति स्व.शिवराज भार्गव के पूर्वजों की हैं। बहुत सों पर मुकदमे चले, कहीं हार हुई तो कहीं जीत।

इस बैंक से अपनापन तब और बढ़ा, जब हमारे बड़े भाई श्री संजय गुप्ता कुछ दिनों के लिए यहां सेवारत रहे और बाद में आफर मिलने पर उन्होंने स्टेट बैंक ज्वाइन कर ली थी।

उसके बाद सिलसिला यहां चला बिजली के बिल जमा करने का। लंबी-लंबी लाइनों में हम लोग लगा करते थे। अन्य जो सरकारी फीस जमा होती थी, उसके लिए भी यहां कतार लगानी पड़ती थी।

पूज्य पिता जी की पेंशन यहां से ही मिलती थी। जब तक वह स्वस्थ रहे, तब मैं उनके साथ पैदल चला जाता था। अशक्त और अस्वस्थ होने पर उन्हें मैं रिक्शा या कभी कभार व्हील चेयर पर ले जाता था। उनके विछोह के बाद पूज्यमाता जी स्व.श्रीमती रामलता गुप्ता को पेंशन मिलने लगी, तब मैं कभी मेरी धर्मपत्नी आदीपिका गुप्ता भी उनके साथ जाती थी।

जब मैंने अमर उजाला के बाद दैनिक जागरण ज्वाइन किया तो यहां हमारा वेतन आने लगा तो यहीं पर अपना एकाउंट खुलावाया। जो अभी इस सप्ताह पहले बंद करा दिया। यहां हर बार हमारी मदद कवि एवं पंचमुखी महादेव मंदिर के महंत श्री गिरीश अश्क जी करते रहे। जो बहुत ही मृदुभाषी एवं सहयोगी भावना के हैं।

कई सालों बाद जब मैं पिछले हफ्ते बैंक गया। देखा कि पूरी बिल्डिंग जर्जर हो गई है। जिस भाग में बैंक अब भी संचालित है, वहां अभी भी पुराना ढर्रा था। कर्मचारियों में अभी भी काम टालने की आदत दिखी। कैशियर अभी भी खजांची बने हुए हैं । जब आखिरी पेमेंट लेने गया तो सिक्के भी देने थे। लोहे की पुरानी अटैची, जो बहुत दिन बाद देखी थी, उसे उन्होंने खोला, उसमें रजनीगंधा की खाली डिब्बी से सिक्के निकाले और मुझे दिये।

लगता है यह बैंक अपने जीर्णोद्धार के इंतजार में है। आसपास मल्टी स्टोरी बाजार बन गए हैं। बैंक को उसका पूरी तरह उपयोग करना चाहिए।

 जब मैं गया तो सारी पुरानी यादें सिलसिले बार ताजा हो गईं। मेरी यादों को पढ़ कर अन्य सुधी जन भी इस में अपनी राय व्यक्त करेंगे, यह मेरा पूरा विश्वास है।

सुखद स्मृति आकाशवाणी की

सुखद अनुभव रहे आकाशवाणी के

आकाशवाणी से मेरे बहुत पुराने संबंध रहे हैं। मेरे पूज्य पिताजी स्वाधीनता सेनानी स्व.रोशनलाल गुप्त करुणेश की आकाशवाणी मथुरा पर भेंट वार्ताएं हुआ करती थीं। क्योंकि पिताजी के मन मस्तिष्क में पूरा स्वाधीनता आंदोलन और विश्व की क्रांतियां समाहित थीं। इसलिए उन्हीं को आकाशवाणी मथुरा के अधिकारी बुलाया करते थे। वहां पर मैं पिताजी के साथ जाया करता था। वहां पर कई बार श्रद्धेय अचला नागर जी से भी मेरी भेंट हुई, लेकिन व्यस्तता उनकी बहुत हुआ करती थी। 
उन दिनों ज्यादातर रिकार्डिंग, इंटरव्यू श्री सत्यदेव आजाद जी और श्री श्रीकृष्ण शरद जी लिया करते थे। ये दोनों ही समय-समय पर आगरा आकर भी अलग-अलग लोगों के साक्षात्कार लेकर रूपक आदि तैयार करते थे। और भी अधिकारी थे, लेकिन नाम अब याद नहीं रहे।
पिताजी और मैं बस से जाते। नाम मात्र को पारश्रमिक मिलता था, जो बस यात्रा, द्वारिकाधीश जी के दर्शन, भोग और वहां से पेड़े खरीदने आदि में ही व्यय हो जाता था। लेकिन उस समय तो केवल आकाशवाणी ही जन-जन का प्रिय था। प्रचार, समाचार और मनोरंजन का एक मात्र यह माध्यम था। कभी-कभी आकाशवाणी से लौटते समय गायत्री तपोभूमि भी हम लोग जाते थे, जहां क्रांतिकारी श्री सत्यभक्त जी से मुलाकात होती थी। वे गायत्री तपोभूमि के लिए देशभक्तों पर ट्रेक्ट (छोटी-छोटी पुस्तकें) लिखा करते थे। 
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मेरी भी वार्ताएं
पिताजी के साथ जाते-जाते मुझे भी आकाशवाणी पर युव वाणी में वार्ता करने का मौका मिल गया। जहां तक मुझे याद है, मेरी पहली वार्ता 16 मार्च 1986 को थी, जिसका विषय था स्वाधीनता संग्राम में आगरा के बलिदानी वीर। इसमें सफलता मिलने लगी तो अन्य विषयों पर भी अवसर मिला। 22 सितंबर 1986 को धरती का क्षेत्रफल और आबादी का भार पर वार्ता रही। उन दिनों हम लोगों ने आगरा में नेत्रदान अभियान चलाया था। जो टाइम्स आई रिसर्च फाउंडेशन, दिल्ली के सहयोग से संचालित था। 14 जून 1987 को नेत्रदान महादान पर आकाशवाणी मथुरा से वार्ता प्रसारित हुई। भारतीय साहित्यकारों के आदर्श टैगोर, (9-6-1988), आयुर्वेद का विकास, समाचार साप्ताहिकी (18-1-1997) सहित अनेक अन्य वार्ताएं प्रसारित हुई। समाचार साप्ताहिकी भी कई बार प्रसारित हुई। आगरा में आकाशवाणी केंद्र शुरू होने के बाद अभी तक वहां से निरंतर मेरी वार्ताएं प्रसारित हो रही हैं। 
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आगरा में आकाशवाणी
आगरा में लंबे समय से आकाशवाणी केंद्र खोले जाने की मांग चल रही थी। उसे पूरा करते हुए विभव नगर में केंद्र का सन् 1989 में शुभारंभ हुआ। उद्घाटन के समय पत्रकारों के लिए सम्मानजनक व्यवस्था न होने पर पत्रकारों ने उसका बहिष्कार कर दिया था। तब मुख्य अतिथि एवं तत्कालीन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री हरीकिशन भगत एवं प्रदेश मंत्री डा.कृष्णवीर सिंह कौशल भी पत्रकारों के साथ धरने पर बैठ गए और उन्हें मना लिया था। 

आकाशवाणी आगरा पर भी पूज्य पिताजी के इंटरव्यू लगातार होते रहे। एक लंबी भेंट वार्ता सुश्री ऋतु राजपूत जी ने की थी। श्रीकृष्ण शरद जी भी मथुरा आकाशवाणी से आगरा ही आ गए थे। वे व अन्य अधिकारी पिताजी का साक्षात्कार समय-समय पर लेते रहे। मैं अभी भी विभिन्न विषयों पर वार्ता तक दे रहा हैं। वहां तब श्री दुर्ग विजय सिंह दीप भी थे। मैंने उनके साथ दैनिक स्वराज्य टाइम्स में कार्य किया था। वे भी हमारा सहयोग करते थे। उनके अलावा बहुत सारे अधिकारी आए और चले गए। जब दैनिक जागरण ज्वाइन किया तो कई बार वहां की वीट भी देखी और आकाशवाणी द्वारा आयोजित कई संगीत सम्मेलनों का कवरेज किया। 
इन दिनों भी श्री पृथ्वीराज चौहान जी, महेंद्र सिंह जैमिनी, कुंदन सिंह जी, नीरज जैन जी, सर्वेश जी, श्रीकृष्ण जी, अजय प्रकाश जी, मुकेश वर्मा जी, विनोद शर्मा जी, देव प्रकाश शर्मा जी, राजेश शर्मा जी, मोहित कुमार जी सहित कई नाम एसे हैं, जिनका हमेशा सहयोग ही नहीं मिला, बल्कि आत्मीयता रही। अशोक धवन जी का भले ही कार्यक्रम या प्रसारण में कोई योगदान नहीं रहता, लेकिन उनसे लगातार संपर्क रहा। कई साल तक वे आगरा दूरदर्शन पर तैनात रहे, फिर से आकाशवाणी पर स्थानांतरित हो गए हैं। 
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तब बहुत बड़ी बात थी रेडियो पर बोलना
जब तक दूरदर्शन शुरू नहीं हुआ, तब तक आकाशवाणी का विशेष महत्व रहा। उस पर अपनी वार्ता प्रसारित करना बड़ा गौरवशाली माना जाता था। पूरे मौहल्ले में चर्चा हो जाती थी, सभी रेडियो और ट्रांजिस्टर पर सुना कर थे। अखबारों में भी छपता था-“आदर्श नंदन आज आकाशवाणी” पर। 
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बांसुरी वादक करते हैं रिकार्डिंग
आकाशवाणी आगरा पर व्यवस्था कभी भी बहुत अच्छी नहीं रहीं। मैंने जब दैनिक जागरण से आकाशवाणी की वीट देखी, तभी मुझे पता चला कि बहुत दिनों से आकाशवाणी पर रिकार्डिस्ट की नियुक्ति नहीं हुई है। वहां जो रिकार्डिंग करते थे वे थे बांसुरी वादक संगीतज्ञ रामकृष्ण जी। मैंने यह समाचार प्रमुखता से लिख दिया। उसके बाद मुझे लगा कि रामकृष्ण जी कहीं बुरा नहीं मान गए हों, लेकिन वे बहुत ही सरल, सहज व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने इसे अपनी आलोचना नहीं समझा। मुझे पता चला है कि उनका निधन हो चुका है, अब उनके सुपुत्र प्रियंक कुमार सैक्सोफोन के अंतरराष्ट्रीय स्तर के वादक है। 
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5.50 लाख रुपया सरकार लेकर पैर बनवाया 
तभी मैंने एक खबर और लिखी थी। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी मुकेश वर्मा जी के पैर में कोई दिक्कत हो गई थी। तब उन्होंने बड़ी जद्दोजहद करके सरकार से 5.50 लाख रुपये की मदद ली और अपना कृत्रिम पैर बनवाया था। 
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आकाशवाणी का संघर्ष 
अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। अभी भी साहित्यकारों, कवियों और संस्कृति कर्मियों को वहां प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए बुलाया जाता है। जरूरत है उसके परिमार्जन की। नई तकनीकी के साथ, नई युग में कदम से कदम मिला कर चलने की। लेकिन आकाशवाणी का संघर्ष बढ़ता जा रहा है। अधिकारी व कर्मचारी तेजी से सेवानिवृत हो रहे हैं, उनकी जगह नई नियुक्ति भी नहीं हो रही है।

Tuesday, March 28, 2023

कल उमड़ी थी, मिट आज चली

... कल उमड़ी थी मिट आज चली...
सन् 1982 के करीब की बात है। तब मैं साप्ताहिक स्वराज्य व दैनिक स्वराज्य टाइम्स के संपादक मंडल में था। साहित्य ही मेरा प्रिय विषय था।अतः इस प्रकार आलेख लिखना व संपादन किया करता था।देश भर की पत्र-पत्रिकाओें का पढ़ने में रुचि भी थी। परम पूज्य महादेवी वर्मा जी के प्रति अटूट  श्रद्धा थी। पाठ्यक्रमों में मैंने उनको पढ़ा था। तब बहुत बड़े साहित्यकार भी संपादक के नाम पत्र लिखने में संकोच नहीं करते थे।एक दिन साप्ताहिक हिंदुस्तान में पूज्य महादेवी वर्मा जी का युवाओं पर एक पत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने यह लिखा था कि बेरोजगारी के कारण ही युवा अपराध की दुनिया में जा रहा है।
मुझे पढ़ कर अच्छा नहीं लगा। मैंने पूरी श्रद्धा के साथ, पूज्य महादेवी जी से क्षमा याचना सहित एक पत्र साप्ताहिक हिंदुस्तान के पत्र कालम के लिए ही लिखा।उसमें मैंने उनकी बात का विरोध किया। लिखाकि यदि कोई युवक बेरोजगार है तो क्या वह अपराध की दुनिया में चला जाएगा। रोजगार के लिए अन्य उपाय है। अपराध की दुनिया में रोजगार युवक भी जा सकते हैं। मैंने लिखा कि युवाओं नकारात्मक सोच की नहीं, सकारात्मक सोच की जरूरत है।
वह पत्र साप्ताहिक हिंदुस्तान ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। (मुझ पर इसका कोई प्रमाण नहीं है)
11 सितंबर 1987 को स्वराज्य टाइम्स कार्यालय में बैठा था। ट्रांजिस्टर पर समाचार सुन रहा था। अचानक समाचार आया,महादेवी जी का निधन हो गया। मैं स्तब्ध रह गया। हिंदी साहित्य का बहुत बड़ा नुकसान था। मेरी आंखें छलछला गई। मेरे दिमाग में उन्हीं की कविता की दो पंक्तियां बार-बार तैर रही थीं-..कल उमड़ी थी, मिट आज चली। तभी मैंने उनका समाचार स्वराज्य टाइम्स के लिए लिखना शुरू किया। उनके परिचय के साथ साहित्यिक यात्राऔर देहावसान पर शोक। आगरा के कुछ साहित्यकारों की ओर से श्रद्धांजलि भी लिखी । मैंने हैडिंग लगाया था---कल उमड़ी थी मिट आज चली। यह समाचार प्रकाशित हुआ। दूसरे दिन प्रेस जाकर जब मैंने दिल्ली के समाचार पत्र देखे तो उनमें भी यही शीर्षक था। मुझे बहुत अच्छा लगा। यानि मुझे लगा कि मेरी सोच भी वही थी जो दिल्लीा के पत्रकारों की रही होगी।
आज महादेवी जी की जयंती है। मुझे यह स्मृतियां आज ताजा हो गईं। उनकी जयंती पर मैं उनके चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं।

Monday, January 9, 2023

केशरीनाथ त्रिपाठी ने किया था नमन वीडियो का विमोचन


सरल एवं सादगी के प्रतिरूप थे केशरीनाथ त्रिपाठी जी

केशरीनाथ जी ने करुणेश जी पर बनी नमन एलबम का  किया था विमोचन

6 दिसंबर 2004 को ताज प्रेस क्लब द्वारा माथुर वैश्य महासभा भवन में  पद्मश्री व पद्म भूषण कवि नीरज जी के 80 वे जन्मदिवस को गौरव महोत्सव के रूप में मनाया गया था। इसमें प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्री केशरी नाथ त्रिपाठी व श्रीमती सुषमा स्वराज मुख्य रूप से उपस्थित थीं। मंच पर डा.भीमराव आंबेडकर विवि के पूर्व कुलपति डा.अगम प्रसाद माथुरसमाजसेवी स्व. धर्मपाल विद्यार्थी व ताज प्रेस क्लब के तत्कालीन अध्यक्ष गजेंद्र यादव भी मंचासीन थे।

साहित्यसेवी आदर्श नंदन गुप्ता ने बताया कि कवि नीरज के इस गौरव महोत्सव में श्रीमती सुषमा स्वराज्य व श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने स्वाधीनता सेनानी स्व.रोशनलाल गुप्त करुणेश के जीवन पर मून टीवी द्वारा बनाई वीडियो एलबम नमन का विमोचन भी किया था। मून टीवी के डायरेक्टर श्री राहुल पालीवाल व संपादक श्री राजीव दीक्षित के निर्देशन में बनी इस एलबम की निर्माम व एंकंरिंग गुंजन शर्मा बेहतरीन तरीके से की है और उसे शूट किया था हरीओम ने। उस समय केशरीनाथ त्रिपाठी ने करुणेश के स्वाधीनता आंदोलन क्रांतिकारी भूमिका को काफी सराहा था।

इसके अलावा केशरी नाथ जी समय-समय पर आगरा आए और मेरी उनसे मुलाकात, बातचीत भी हुई। चूंकि नीरज जी से वे बहुत प्रभावित थे, अतः उनके हर कार्यक्रम में वे आते थे। समाजसेवी कांतिभाई पटेल से भी केशरीनाथ जी प्रभावित रहे। कांतिभाई पटेल की पुस्तक कृष्ण गौरवगाथा का विमोचन 5 मई 2003 को  केशरीनाथ ने किया था। कांतिभाई पटेल के अमृत महोत्सव में भी वे मुख्य अतिथि थे। तभी भी मेरी उनसे बातचीत और मुलाकात रही। उनके निधन से हमने सच्चे और ईमानदार नेता को खो दिया है। उनके निधन पर में शोक व्यक्त करते हुए हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।