Saturday, October 10, 2020

काका हाथरसी ने इनाम में भेजा था 500 रुपये का मनीआर्डर

संस्मरण -3 (18 सितम्बर को जन्म-व पुण्यतिथि पर)

काका हाथरसी ने भेजा था इनाम में 500 रुपये का मनिआर्डर

बचपन से ही शख्सियतों को पत्र लिखकर उनका आशीर्वाद लेने की आदत थी। इसी के तहत हास्य कवि काका हाथरसी जी को मैंने पत्र लिखा, उनके काव्यमय आशीर्वाद पत्र आने लगे। सिलसिला कुछ ज्यादा बढ़ा तो वे अपने काव्य संग्रह मुझे भेजने लगे। उन्होंने मुझे तुकांत कोश भी भेजा, जिसमें तुकबंदी के लिए हर शब्द के पर्यायवाची शब्द थे। फोन उस समय नहीं थे, न इतनी बड़ी विभूति को फोन करने की हिम्मत। दैनिक और साप्ताहिक स्वराज्य टाइम्स में उनके बारे में कई लेख लगातार लिखे तो वे और प्रभावित हुए। उसके बाद तो उनका आशीर्वाद मिलता ही गया। वे अपनी वार्षिक पत्रिका हास्यरसम में भी मेरे लेख प्रमुखता से प्रकाशित करने लगे। मैंने उनके बारे में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे।

22 सितंबर 1985 में मैंने उनके बारे में एक लेख पंजाबी केसरी में लिखा। उनका पत्र आया, पूछा-वहां से कितना पारिश्रमिक मिला है। मैंने कहा कि पंजाब केसरी रचनाकारों को भुगतान नहीं करता। इस पर कुछ दिन बाद ही उनका एक मनिआर्डर 500 रुपये का आ गया, लिखा था कि ये मेरी ओर से इनाम है। तब 500 रुपये बहुत थे। इतना बड़ा इनाम मिलने से मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उनके इस प्रोत्साहन से मैं अन्य पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखता गया। चाहत यह थी कि इतनी बड़ी हस्ती से संबंध प्रगाढ़ होते जाएं।

उसी का एक परिणाम यह हुआ कि 3 मई 1990 को काका हाथरसी ट्रस्ट और उपासना संस्था ने आगरा में 15 वां काका हाथरसी हास्य समारोह का आयोजन किया। इसमें वर्ष 89 के श्रेष्ठ कवि के रूप में हास्य कवि सत्यदेव शास्त्री भोंपू को काका हाथरसी हास्य पुरस्कार प्रदान किया। सम्मान स्वरूप 15 हजार रुपये दिए। बिल्डर्स श्री जेएस फौजदार ने अध्यक्षता की। मुख्य अतिथि उद्योगपति केएन वासन थे। संचालन काका हाथरसी पुरस्कार ट्रस्ट के अध्यक्ष गीतकार नीरज ने किया था। सितार वादक स्व.अजय खन्ना की पत्नी श्रीमती रीता खन्ना, कवि डा.वीरेंद्र तरुण, श्री अरुण डंग, शशांक प्रभाकर, दिनेश पंडित, फिल्म प्रोड्यूसर व गीतकार माया गोविंद, रजनीकांत गिलहरी, डा.जगदीश सोलंकी, डा.राकेश शरद आदि शामिल थे। उपासना के अध्यक्ष अनिल शनिचर ने सभी का स्वागत किया था।

इसी वर्ष की हास्य रसम (1990) में काकाजी ने मेरे नाम से समारोह की रिपोर्ट प्रमुखता से प्रकाशित की। मेरा एक लेख काका हाथरसी की दाढ़ी में छिपा है हास्य का स्विच प्रकाशित किया। साथ ही हास्य समारोह 1990 के स्तंभ के रूप में विशिष्ट जनों के साथ मेरा चित्र भी प्रकाशित किया।

उसके बाद काकाजी के हाथरस स्थित निवास पर मिलने एक ही बार जा पाया, जब उनका स्वास्थ्य गड़बड़ा गया। एक दिन किसी ने सूचना भिजवाई कि काका हाथरसी की तबीयत ज्यादा खराब है और आगरा में ही एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हैं। उनसे मिलने मैं अपनी पत्नी के साथ पहुंचा। उस समय स्थिति बहुत नाजुक नहीं लग रही थी। हम दोनों को भरपूर आशीर्वाद दिया। मेरे कहने पर तब मेरे बड़े भाई विधायक जगन प्रसाद गर्ग भी उन्हें देखने गए थे। उसके बाद काकाजी हाथरस चले गए। 18 सितंबर 1995 में उनका निधन हो गया। उनकी शवयात्रा में शामिल होने में हाथरस गया। वसीयत के अनुसार ऊंट गाड़ी में उनकी शवयात्रा निकाली गई थी। श्मशान घाट पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया था। संयोग ही है कि उनका जन्मदिन भी 18 सितंबर (1906) ही है। उनके अवतरण और स्वर्गारोहण दिवस पर मैं उन्हें कोटि-कोटि नमन करता हूं। उनकी कीर्ति की छाया कमजोर पड़ती जा रही है। उनके परिजनों और शुभचिंतकों को इस संबंध में प्रयास करने चाहिए।

काकाजी के बारे में लिखे कुछ लेख

-हास्य कवि सम्राटः काका हाथरसी, पंजाब केसरी- 22 सितंबर 1985

-हास्य कवि सम्राटः काका हाथरसी –हास्य रसम 1986

-काका हाथरसीःजिनकी वाणी में ही हास्य है- विकासशील भारत, 18 सितंबर 1986

-सारे जग को हंसाने वाला कवि-काका हाथरसीः विकासशाली भारत- 03 सितंबर 1987

-हिंदी के आराधक-हास्य कवि काका हाथरसी-हास्य. रसम, 1988

-काका के कारतूस- पंजाब केसरी-8 जनवरी 1988  

-हिंदी सेवी काका हाथरसी-भोजपुरी लोक, इलाहाबाद-1989

-ये मां का चीर ही नहीं, कफन बेच देंगे-काका हाथरसी सम्मान समारोह की रिपोर्ट- हास्य रसम-1990

-काका हाथरसी की दाढ़ी में छिपा हास्य का स्विच- हास्य रसम- 1990

-जिनकी कीर्ति ध्वजा विश्व में फहरा रही है, हास्य कवि काका हाथरसी, दैनिक जागरण, 08 मार्च1990

,,,,,आदर्श नन्दन गुप्त

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