संस्मरण-6
आधुनिक तुलसी मोरारी बापू की कथा में बरसा था रंग
सांस्कृतिक पत्रकारिता के दौरान यही नहीं कि मैंने फिल्मी हस्तियों से मुलाकात की, देश के सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठापित कथावाचकों, संतों, महंतो, शंकराचार्यों, जैन आचार्यों के दर्शन, उनसे साक्षात्कार करने का भी परम सौभाग्य मुझे मिला। कथावाचकों में जिन्हें मैं सर्वोच्च शिखर पर मानता हूं, वे हैं संत मोरारी बापू। वे कथावाचक ही क्यों, संत हैं, इस भारत के। वे आधुनिक तुलसी हैं, जो देश-विदेश में भगवान राम की कथा सुना रहे हैं। समंदर, टापू, हवाई जहाज, यानि जल, थल, नभ में भी उन्होंने भगवान श्रीराम का गुणगान किया है। गणिकाओं के लिए भी उन्होंने कथा का वाचन किया।
ऐसे अन्यतम संत मोरारी बापू की कथा मेरे जीवन में पहली बार और अभी तक आखिरी बार छह सितंबर वर्ष 2003 में शहजादी मंडी स्थित तारघर मैदान में हुई। नौ दिवसीय इस कथा में बापू ने ताजमहल को अपना विषय बनाते हुए मानस तेजो महल पर विस्तृत व्याख्या की थी। उनका कहना था कि तुलसीकृत रामचरित मानस प्रेम का अनुपम सागर है, जिसमें डूबने से जीवन उपकृत हो जाता है।
बापू की इस कथा में धर्म का मर्म था। भगवान राम के प्रति राग था, अनुराग था। कथा के दौरान जब वे फिल्मी गीत गाते थे, तो माहौल में मस्ती छा जाती थी, लेकिन वे हर फिल्मी गीत की बहुत गहराई से धर्म आधारित व्याख्या करते थे।
उस समय में मैं दैनिक जागरण में था। भाई राजकुमार शर्मा अमर उजाला अखबार में थे। हम दोनों ने बहुत गजब का कवरेज दिया, बल्कि उनकी जैसी शख्सियत थी, वैसे दिया। बापू का प्रवास स्थल होटल ताजखेमा था। वहां बापू की प्रेस वार्ता हुई थी, जहां उन्होंने 8 सितम्बर को सभी पत्रकार साथियों को सम्मानित भी किया था। इस कथा का मीडिया मैनेजमेंट सदर बाजार वाले श्री ललित गुप्ता ने संभाला था। ललित जी कई साल से बापू की कथा एक बार फिर आगरा में कथा कराने में जुटे हैं। शायद इस वर्ष उन्हें सफलता मिल जाए।
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(इंटरनेट से--कौन हैं मोरारी बापू--- मोरारी बापू उर्फ़ मोरारी दास प्रभु दास हरियाणी एक धार्मिक गुरु और हिन्दू धार्मिक कथा वाचक हैं। ये गुजराती और हिंदी दोनों भाषा का प्रयोग करते हैं। ये मूल रूप से तलगाजरडा, गुजरात के निवासी हैं। ये भारत में विभिन्न प्रांतों के अलावा यूनाइटेड स्टेट्स, यूनाइटेड किंगडम, साउथ अफ्रीका, केन्या, यूगांडा आदि देशों में भगवान श्रीराम की कथा सुना चुके हैं। इनकी पहली कथा 1960 में हुई थी, जिसे लोगों ने सराहा। अभी तक इन्होंने 800 से अधिक कथा कह चुके हैं।
-----आदर्श नन्दन गुप्त
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