मौत उसी की होती है, जिस पर जमाना करे अफासोस
यूं तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए।
बहुत कम ही शख्सियत एसी होती हैं, जिनके निधन पर लोग स्तब्ध रह जाएं। वही व्यक्ति लोगों का दिल जीत सकता है, जो हर किसी के काम आए, वह भी निस्वार्थ भाव से। हमारे आदरणीय श्री दिनेश बंसल कातिब जी भी एसे समाजसेवी थे, जिन्होंने शहर को दिया ही दिया। कभी कुछ पाने की तमन्ना नहीं रही।
उन्होंने समाज को जो दिया, उतना शायद ही कोई दे पाए। मेरी सबसे पहली मुलाकात अग्रवाल महासभा के कार्यक्रमों में हुई थी। उसके बाद एसा सिलसिला चला कि शहर के बड़े और प्रमुख कार्यक्रमों में उनसे मुलाकात होने लगी थी। वे मुझे बहुत स्नेह करते थे। उन्होंने एसे कई कार्यक्रम भी किए जो आसान नहीं थे। बल्केश्वर में यमुना के तट पर मेरी याद में केवल उन्होंने ही श्रीमद् भागवत सप्ताह कराई थी। किसी भी शंकराचार्य की कथा कराना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने करके दिखाई। इस कार्यक्रम को लेकर मैंने पहले उनसे शंका जताई थी। मैंने कहा था कि आजकल लोग नाचने, ठुमकने वाली भागवत कथाओं में जाते हैं, इसमें कौन आएगा। वे बोले, आदर्श बाबू , देखना तो सही...। वास्तव में उनका कहना सही था, काफी भीड़ रही। इसी प्रकार उन्होंने कमला नगर में श्रीकृष्णलीला का मंचन कराया, वह भी बहुत सफल रहा। हाल ही में कोठी मीनाबाजार में मंगलम परिवार की राम कथा विख्यात संत विजय कौशल महाराज की कराई, उसमें भी उनका अनुभव रहा। वे बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन कराने में सिद्धहस्त हो गए थे। उनकी तन्मयता और निस्वार्थ भाव होने के कारण किसी काम में न कोई दिक्कत आती न कोई विघ्न पड़ता था। मैंने यह भी देखा कि किसी कार्यक्रम में उन्होंने अपने आप को न कभी हावी किया, न किसी को हावी होने देना चाहते थे।
वाटर वर्क्स स्थित गोशाला कमेटी के वे महामंत्री थे। उन्होंने उसका संरक्षण ही नहीं किया, बल्कि उसके स्वरूप को ही बदल दिया। वहां व्यक्तिगत खर्चे से भी एक हाल बनवाया, जिसका कभी कोई प्रचार नहीं किया। गोशाला कमेटी की स्मारिका भी उन्हीं की वजह से हम लोग प्रकाशित करा सके थे।
श्रीराम लीला कमेटी में वे वरिष्ठ उपाध्यक्ष थे। उसमें वे आधुनिकता लाने चाहते थे। मेरे द्वारा लिखी गई पुस्तक को उन्होंने बहुत पंसद किया और जल्द ही प्रकाशित कराना चाहते थे। उन्होंने सारी रूपरेखा भी बता दी थी, उनका निर्देशन होता तो अब तक प्रकाशित भी हो गई होती। पिछले महीने ही इंद्रपुरी देवी मंदिर में वे मिले, मंदिर पर पुस्तक के बारे में उन्होंने महंत जी के सामने ही कहा था कि तुम मेरे पास आओ, मैं सब करा दुंगा। यानि हर काम में वे दिलचस्पी लेते और मदद की भावना रहती थी।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 35 साल की पत्रकारिता में मैंने एसा समाजसेवी नहीं देखा, जो हर समय समाज के लिए समर्पित रहा हो। अग्रवाल समाज के उत्थान के लिए हर प्रकार की कल्पना वे करते थे। अब जररूत है उनके शेष कार्यों को पूरा करने की। उनके बताए रास्ते पर चलने की।
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अब उन पर प्रकाशित हो स्मारिका
मेरा मानना है कि कागज पर लिखा या छपा हुआ ही हमेशा याद रहता है। उसी से इतिहास बनता है, वही धरोहर होती है। बंसल जी ने जितना किया, जो किया, जो कराया, उस सब पर एक स्मारिका का प्रकाशन होना चाहिए। जो हम सबको ही नहीं, पूरे समाज को सेवा करने की प्रेरणा देगी।
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हर किसी के लिए हर किसी के भाव नहीं उमड़ते। मैं उनके निधन से बहुत आहत हूं। उनके निधन से जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति होना असंभव है। मेरे ख्याल से विधायक जगन प्रसाद गर्ग जी के बाद शहर की यह सबसे बड़ी क्षति हुई है। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उन्हें अपने चरणों में स्थान दे कर उनकी आत्मा को परम शांति प्रदान करें। उनके परिजनों को इस संकट को सहन करने की शक्ति दें। ऊं शांति।
--आदर्श नंदन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार