Tuesday, December 1, 2020

सबके हमदर्द थे दिनेश बंसल कातिब

मौत उसी की होती है, जिस पर जमाना करे अफासोस

यूं तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए।

बहुत कम ही शख्सियत एसी होती हैं, जिनके निधन पर लोग स्तब्ध रह जाएं। वही व्यक्ति लोगों का दिल जीत सकता है, जो हर किसी के काम आए, वह भी निस्वार्थ भाव से। हमारे आदरणीय श्री दिनेश बंसल कातिब जी भी एसे समाजसेवी थे, जिन्होंने शहर को दिया ही दिया। कभी कुछ पाने की तमन्ना नहीं रही।

उन्होंने समाज को जो दिया, उतना शायद ही कोई दे पाए। मेरी सबसे पहली मुलाकात अग्रवाल महासभा के कार्यक्रमों में हुई थी। उसके बाद एसा सिलसिला चला कि शहर के बड़े और प्रमुख कार्यक्रमों में उनसे मुलाकात होने लगी थी। वे मुझे बहुत स्नेह करते थे। उन्होंने एसे कई कार्यक्रम भी किए जो आसान नहीं थे। बल्केश्वर में यमुना के तट पर मेरी याद में केवल उन्होंने ही श्रीमद् भागवत सप्ताह कराई थी। किसी भी शंकराचार्य की कथा कराना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने करके दिखाई। इस कार्यक्रम को लेकर मैंने पहले उनसे शंका जताई थी। मैंने कहा था कि आजकल लोग नाचने, ठुमकने वाली भागवत कथाओं में जाते हैं, इसमें कौन आएगा। वे बोले, आदर्श बाबू , देखना तो सही...। वास्तव में उनका कहना सही था, काफी भीड़ रही। इसी प्रकार उन्होंने कमला नगर में श्रीकृष्णलीला का मंचन कराया, वह भी बहुत सफल रहा। हाल ही में कोठी मीनाबाजार में मंगलम परिवार की राम कथा विख्यात संत विजय कौशल महाराज की कराई, उसमें भी उनका अनुभव रहा। वे बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन कराने में सिद्धहस्त हो गए थे। उनकी तन्मयता और निस्वार्थ भाव होने के कारण किसी काम में न कोई दिक्कत आती न कोई विघ्न पड़ता था। मैंने यह भी देखा कि किसी कार्यक्रम में उन्होंने अपने आप को न कभी हावी किया, न किसी को हावी होने देना चाहते थे।

वाटर वर्क्स स्थित गोशाला कमेटी के वे महामंत्री थे। उन्होंने उसका संरक्षण ही नहीं किया, बल्कि उसके स्वरूप को ही बदल दिया। वहां व्यक्तिगत खर्चे से भी एक हाल बनवाया, जिसका कभी कोई प्रचार नहीं किया। गोशाला कमेटी की स्मारिका भी उन्हीं की वजह से हम लोग प्रकाशित करा सके थे।  

श्रीराम लीला कमेटी में वे वरिष्ठ उपाध्यक्ष थे। उसमें वे आधुनिकता लाने चाहते थे। मेरे द्वारा लिखी गई पुस्तक को उन्होंने बहुत पंसद किया और जल्द ही प्रकाशित कराना चाहते थे। उन्होंने सारी रूपरेखा भी बता दी थी, उनका निर्देशन होता तो अब तक प्रकाशित भी हो गई होती। पिछले महीने ही इंद्रपुरी देवी मंदिर में वे मिले, मंदिर पर पुस्तक के बारे में उन्होंने महंत जी के सामने ही कहा था कि तुम मेरे पास आओ, मैं सब करा दुंगा। यानि हर काम में वे दिलचस्पी लेते और मदद की भावना रहती थी।

मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 35 साल की पत्रकारिता में मैंने एसा समाजसेवी नहीं देखा, जो हर समय समाज के लिए समर्पित रहा हो। अग्रवाल समाज के उत्थान के लिए हर प्रकार की कल्पना वे करते थे। अब जररूत है उनके शेष कार्यों को पूरा करने की। उनके बताए रास्ते पर चलने की।

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अब उन पर प्रकाशित हो स्मारिका

मेरा मानना है कि कागज पर लिखा या छपा हुआ ही हमेशा याद रहता है। उसी से इतिहास बनता है, वही धरोहर होती है। बंसल जी ने जितना किया, जो किया, जो कराया, उस सब पर एक स्मारिका का प्रकाशन होना चाहिए। जो हम सबको ही नहीं, पूरे समाज को सेवा करने की प्रेरणा देगी।

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हर किसी के लिए हर किसी के भाव नहीं उमड़ते। मैं उनके निधन से बहुत आहत हूं। उनके निधन से जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति होना असंभव है। मेरे ख्याल से विधायक जगन प्रसाद गर्ग जी के बाद शहर की यह सबसे बड़ी क्षति हुई है। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उन्हें अपने चरणों में स्थान दे कर उनकी आत्मा को परम शांति प्रदान करें। उनके परिजनों को इस संकट को सहन करने की शक्ति दें। ऊं शांति।

--आदर्श नंदन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार

Thursday, November 26, 2020

बच्चों में बच्चे बन गए थे प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो यशपाल

बच्चों में बच्चे बन गए थे प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो यशपाल

आज विख्यात वैज्ञानिक पदम् विभूषण प्रो यशपाल का जन्मदिन है  उन्होंने इस देश को।जो दिया है, उसे भुलाया नहीं जा सकता।
प्रोफेसर साहब से मेरी मुलाकात करीब 15 वर्ष पूर्व बल्केश्वर के सेंट एंड्रूज स्कूल में हुई। मैंने वहां उनका इंटरव्यू लिया था। उन्होंने उस समय भारत मे हो रही वैज्ञानिक तरक्की के बारे में विस्तार से बताया। वहीं उनका कहना था कि।नई पीढ़ी के प्रति वे बहुत आशान्वित हैं। कार्यक्रम के दौरान भी उन्होंने छोटे विद्यार्थियों के साथ अपनापन दिखाया। उनसे प्रश्न किये व उनके प्रश्नों के जवाब भी दिए। उन्होंने गणित की कठिनाइयों के सरल तरीके भी बताए। इतना महान व्यक्तित्व इतना सरल और सहज होगा। कोई सोच नहीं सकता था। मैं उन्हें श्रद्धा पूर्वक नमन करता हूँ।
यह चित्र प्रो यशपाल जी से बात करते हुए है।साथ मे भाई सेंट एन्ड्रूज स्कूल के स्वामी डॉ गिरधर शर्मा और पत्रकार भाई राम कुमार शर्मा हैं।
किरणों के अध्ययन में अपने योगदान के लिए यशपाल जी ने 1949 में पंजाब विश्वविद्यालय से भौतिकी में मास्टर्स की हासिल की थी। 
उन्होंने 1958 में मासाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अपने योगदान के लिए 1976 में वह पद्म भूषण से नवाजे गए थे।लोक प्रशासन, शिक्षा और प्रबंधन में उत्कृष्ट काम के लिए अक्टूबर 2011 में उन्हें लाल बहादुर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

नहीं बना सका मनोरमा जी के सपनों का गांधी स्मारक

नहीं बना सका मनोरमा जी के सपनों का गांधी स्मारक

सर्वोदय विचारक, गांधीवादी आदरणीय श्रीमती मनोरमा शर्मा बहन जी ने शहर को अनेक आयाम प्रदान किए। कुछ सपनों को भी संजोया, जिसके लिए जीवन भर उन्होंने इसके प्रयास किए। जो सपने उन्होंने संजोए, जीते जी तो पूरे हो सकते थे, लेकिन उनकी आंख समय से पहले ही मिचने के कारण वे सपने अधूरे रह गए। उनमें एक सपना था यमुना पार स्थित गांधी स्मारक को पर्यटन केंद्र बनाने का। उसका उन्होंने कायाकल्प करा दिया था। वे चाहती थीं कि जो भी पर्यटक एत्माद्दोला का अवलोकन करने आएं, वे गांधी स्मारक भी देंखे। इसी प्रकार सपेरों का गांव के पास सकलपुर का उन्होंने विकास किया। उसके और अधिक विकास का सपना था। इन कार्यों से मुझे अवगत कराती रहती थीं, मुझे अक्सर इन स्थलों पर ले जाती थीं।

ये दोनों सपने उनके अभी तक अधूरे हैं। शासन, प्रशासन हमेशा दबाव की राजनीति करता है। जहां तक का विकास मनोरमा बहन जी ने कराया, उसके आगे कुछ नहीं बढ़ा, बल्कि उपेक्षा के कारण फिर से गांधी स्मारक दुर्गति की ओर है।

बहन जी ने अपने स्तर पर बड़े बड़े कार्यक्रम आगरा में कराए। एक लाख से अधिक लोगों की यमुना यात्रा का स्वागत उन्होंने आगरा में कराया, उनकी व्यवस्था कराई थी। उनका बल्केश्वर स्थित आवास पर देश के प्रमुख लोगों का आवागमन रहता था। मैंने यहाँ तांत्रिक श्री चंद्रास्वामी से दो बार मुलाकात की। यहीं पर गांधीवादी एसएन सुब्बाराब, मेधा पाटेकर, स्वामी अग्निवेश, जल पुरुष राजेंद्र आदि तमाम लोगों से साक्षात्कार लिए थे।

बहन जी का स्नेह हम लोगों पर सदैव रहा। हर हफ्ते किसी न किसी बहाने से मुलाकात और दो-चार बार फोन करना, यह उनकी आदत में शुमार था, यानि उनकी यह हम पर बड़ी कृपा थी। हमें कभी कोई दुख न हो, इसका पूरा ध्यान रखती थीं। उनका ममत्व अब हमेशा याद आता है। उनसे बिछ़ुड़े भले ही 12 साल हो गए, आज भी उनकी छवि आंखों में समाई रहती है।
उनके द्वारा स्थापित महिला शांति सेना का नेतृत्व उनकी पुत्रवधु श्रीमती वत्सला प्रभाकर कर रही है।

आज बहनजी की परम पुण्य तिथि पर कोटि-कोटि नमन करता हूं।

-आदर्श नंदन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार

Friday, October 16, 2020

टेंट में तख्त पर लिया था अनुराधा पोंडवाल का इंटरवयू

*संस्मरण 5*

*टैंट में तख्त पर बैठकर लिया अनुराधा पौंडवाल का इंटरव्यू* 

दो मई 1997, कोठी मीना बाजार मैदान। यहां देवी जागरण का आयोजन किया गया था, जिसमें विख्यात गायिका अनुराधा पौंडवाल और उनकी बेटी कविता पौंडवाल भजन प्रस्तुत करने आईं थीं।

कार्यक्रम न होने की अफवाह फैला दी गई। निर्धारित राशि उन्हें नहीं दी गई। कार्यक्रम संकट में आ गया था। इस दौरान संकटमोचन के रूप में उभर कर आए डाक्टर सोप कंपनी के डायरेक्टर श्री अशोक जैन। उन्होंने कमान संभाली और अपने स्तर पर पूरी व्यवस्था की। श्री जैन के पिताजी श्री पदमचंद जैन की इच्छा के अनुसार अनुराधा पौंडवाल का प्रवास भी उनके जयपुर हाउस स्थित आवास पर कराया गया था।

कार्यक्रम बहुत शानदार रहा। अमर उजाला में इसके कवरेज के लिए तत्कालीन सिटी इंचार्ज श्री एसपी सिंह जी ने मुझे भेजा था। उसके प्रारंभिक कार्यक्रम की कवरेज मैंने फोटो जर्नलिस्ट श्री जगदीश को लिख कर दे दी। बाकी कवरेज में श्री एसपी सिंह जी को फोन पर नोट करा दी। अब बारी थी इंटरव्यू की। कार्यक्रम सहयोगी डा.मधुरिमा शर्मा व श्री अशोक जैन ने इंटरव्यू की व्यवस्था की। टेंट में पीछे ग्रीन रूम तो था नहीं, पीछे टैंट में तख्त पर ही उनका इंटरव्यू लिया।इस दौरान वरिष्ठ चित्रकार प्रो अश्विनी शर्मा भी मौजूद थे।
इसके बाद अनुराधा जी व कविता जी कई बार आगरा आईं और उनका कवरेज किया, साक्षात्कार लिए, लेकिन यह पहला साक्षात्कार हमेशा याद रहेगा।कविता पोंडवाल ने कमलानगर की जनकपुरी में मेरे द्वारा संपादित स्मारिका जन जन के प्रभु श्री राम का विमोचन 2013 में किया था।
 
अनुराधा जी ने बातचीत के दौरान बताया कि उन्होंने कभी संगीत नहीं सीखा। यह ऐसी कला है जो किसी के सिखाने से नहीं आती। खुद को समर्पित होना पड़ता है। इसे संवारने के लिए रात-दिन अभ्यास करना पड़ता है, तब जाकर मंजिल के करीब पहुंचते हैं। मैं आज भी उसी तरह अभ्यास करती हूं जैसा शुरुआती दौर में करती थी।

एक प्रश्न के जबाव में उन्होंने बताया था कि कार्यक्रम कैसा भी हो छोटा या बड़ा, तैयारी पूरी गंभीरता से करती हूं। मुझे तो हर जगह मेरा सर्वश्रेष्ठ ही कार्यक्रम देना है। मैंने टेक्नोलॉजी को खुद पर हावी नहीं होने दिया। आज के दौर में ज्यादातर सिंगर सिर्फ टेक्नोलॉजी की बदौलत ही चलते हैं। टेक्नोलॉजी के भरोसे आप ज्यादा समय तक नहीं चल सकते। उनका कहना था कि संगीत सिर्फ पेशा ही नहीं बल्कि मेरी जीवन शैली है। मेरी रुह है, मेरी आत्मा है। मुझे गज़ल गाने में थोड़ी झिझक होती है पर गीत और भजन गाना ज्यादा पसंद है।

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*श्री अशोक जैन (डॉकटर सोप  ) को श्रद्धांजलि*

इस कार्यक्रम में सहयोगी रहे श्री अशोक जैन का निधन अभी हाल ही में हो गया। दो दशकों में उनसे कार्यक्रमों में कई बार मुलाकात हुई। फिल्म प्रोड्यूसर श्री रंजीत सामा के सभी कार्यक्रमों में वे मिल जाते थे। बहुत ही मिलनसार व्यक्ति थे। कोरोना काल से पहले इन्क्रडेबिल इंडिया फाउंडेशन की एक मीटिंग में उनसे अंतिम मुकालात हुई थी। उन्हें मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
अनुराधा पौंडवाल के इकलौते पुत्र आदित्य पौंडवाल का भी पिछले दिनों निधन हो गया। उन्हें भी मैं श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।   

----आदर्श नंदन गुप्त

ताज के साये में पग घुघुरु बांध हेमामालिनी मीरा बन नाची


संसमरण 10
ताजमहल के साये में पग घुंघुरू बांध हेमामालिनी मीरा बन नाची 

आदर्श नंदन गुप्त, आगराः अनुपम सौंदर्यशाली ताजमहल, उसके साये में महताब बाग, वहां मीरा बनकर स्वप्न सुंदरी हेमामालिनी ने जब नृत्य किया तो दर्शकों विश्वास ही नहीं हो रहा था कि शोले फिल्म का बसंती, अपनी इस प्रकार की अनूठी प्रस्तुति देंगी, जिसमें सभी श्रद्धाभक्ति में डूब जाएंगे।

विख्यात सिने तारिका हेमामालिनी का आज शनिवार को जन्मदिन है। ताजनगर के वासी उनके दीर्घजीवन की कामना कर रहे हैं। हेमामालिनी फिल्मों की शूटिंग के सिलसिले में कई बार आगरा आई होंगी, लेकिन वर्ष 1994 में ताजमहल के पीछे महताब बाग में मीरा नृत्य नाटिका की प्रस्तुति हेमा ने दी थी। उस समय तक हेमा का राजनीति के दूर-दूर तक नाता नहीं था। हम लोग जब गए तो वह बहुत ही सहज भाव के साथ स्वयं ही मंच की सज्जा करा रही थीं। 
इस मशहूर अभिनेत्री के अभिनय को लोगों ने रुपहले पर्दे पर तो कई बार देखा, लेकिन उनका यहां दूसरा रूप था। हेमामालिनी की मीरा के रूप, रस, रंग एवं विरह की अलग-अलग मुद्राओं को दर्शक अपलक निहारते रहे। करीब ढाई घंटे तक- मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई, जा के सिर मोर-मुकट मेरो पति सोई...। छाड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई  आदि मीरा से जुड़े गीत-भजनों पर नृत्य किए। हेमामालिनी उसके कई साल बाद राजनीति में आ गई। चुनाव प्रचार के लिए उनका कई बार यहां आना हुआ।

हरि सत्संग समिति ने नवंबर, 2012 में
फतेहाबाद रोड एक मैदान पर नृत्य नाटिका रामायण का मंचन किया। उसमें उनका अलग ही रूप निखर कर आया था। समिति के संजय गोयल ने बताया कि यह कार्यक्रम तीन घंटे तक चला था।
लीडर्स आगरा का वार्षिक समारोह 2018 को हुआ था, उसमें वे मुख्य अतिथि थीं। समिति के अध्यक्ष सुनील जैन ने बताया कि हेमामालिनी ने शहर की कई शख्सियतों को सम्मानित किया था। हरिसत्संग समिति और लीडर्स आगरा के पदाधिकारियों ने हेमामालिनी के जन्मदिवस पर उनके दीर्घजीवन की कामना की है।

Sunday, October 11, 2020

ताज महल के प्रति दीवानगी थी अमिताभ बच्चन में

अमिताभ से तीन मुलाकात, हर बार दिखे जोश से लवरेज

कुछ विभूतियों को तो जैसे भगवान ने खासतौर पर इस धरती पर भेजा है उनमें से एक शहनशाह अमिताभ बच्चन भी है। जब भी मुलाकात हुई, उनके चेहरे पर चमक दिखी, सदैव जोश से लबरेज़ दिखे, जब चलते हुए देखा तो वास्तव में लगा कि कोई शहंशाह चल रहा है। 
पहली बार अमिताभ से मेरी मुलाकात वर्ष 2005 में हुई। मेहताब बाग में बंटी और बबली की शूटिंग में हुई। चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था के बाबजूद में वहां कवरेज के लिए पहुंच गया। लंबे लंबे डग भरते हुए जब उन्हें आपने सामने से गुजरते हुए देखा, तो लगा कि कोई महामानव चला जा रहा है।
शाम को एक पंचतारा होटल में पहुँचे, वहां उनके साथ अमर सिंह और फ़िल्म निर्देशक भी थे। हम लोगो के साथ भाई अमी आधार निडर थे। हम सबसे लंबी बातचीत उस दौरान हुई।
🌸वर्ष 2007 में सूत्रों से पता चला कि अमिताभ बच्चन होटल अमर विलास में आए हुए है। फिर क्या था, वहां डेरा डाल दिया। वे यहाँ ऐश्वर्य राय का जन्मदिन मनाने आए थे। उनके साथ तब अमर सिंह, अभिषेक बच्चन,जया बच्चन, ऐश्वर्या थे। तब मेरे पास छोटा सा कैमरा भी था, जिससे मेने इन सबकी छोटी सी वीडियो बनाई थी।

🌸20 अक्टूबर 2009 को मैक्स    विजय कार्यक्रम तारघर मैदान  में हुआ । जिसमें कई लोगो का सम्मान किया गया था।उसके बाद एक होटल में प्रेस वार्ता हुई थी।
 🌸दादा साहब फाल्के अवार्ड किसी को यू ही नही मिल जाता। अमिताभ इस लायक है। वे इस सदी के महानायक हैं। उंन्हे यह मिल रहा है, उसके लिए उंन्हे बधाई।
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21 अक्टूबर 2009 को मैक्स  विजय कार्यक्रम तारघर मैदान, शहजादी मंडी  में हुआ, जिसमें कई शख्सितयों को उन्होंने सम्मानित किया गया था।शाम को उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था इनाम और खिताबों को ज्यादा अहमियत नहीं देते। बीबीसी ने एक बार इंटरनेट पर वोटिंग कराई थी, जिसमें उन्हें बालीवुड के महानायक का खिताब दे दिया था, लेकिन मैं अपने बाबूजी (कवि हरिवंश राय बच्चन) के पद चिन्हों पर ही चल कर समाज के काम आना चाहता हूं। अभिषेक व एश्वर्या से भी उम्मीद है कि वे भी बाबूजी के बताए रास्ते पर चलेंगे। बंटी और बबली फिल्म की शूटिंग के दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि पुरानी फिल्म रेशमा और शेरा की शूटिंग भी यहां हुई थी। उनके साथ राखी भी थीं। छात्र जीवन की याद करते हुए उन्होंने पत्रकारों को बताया था कि कालेज में पढने के बाद वे नौकरी की तलाश में भी रहे, लेकिन सफल नहीं हुए। इसके बाद आल इंडिया रेडियो में भी कुछ साल तक काम किया था।
 विज्ञापन यूपी में दम है, क्योंकि यहां जुर्म कम है की शूटिंग आगरा और फतेहपुर सीकरी में हुई थी, तब भी अमिताभ आगरा आए थे।

Saturday, October 10, 2020

क्रांतिकारियों की भाभी थी दुर्गा

संस्मरण 8(   जयंती 7 अक्टूबर)

क्रांतिकारियों की भाभी दुर्गाः जिनके लिए बम और रिवाल्वर खिलौने थे

चित्र में दिखाई दे रहीं बहुत ही सहज, सरल सी दिखने वाली बुजुर्ग महिला के बारे में किसी को भी सहज विश्वास नहीं होगा कि क्रांतिकारियों की यह परम श्रद्धेय दुर्गा भाभी हैं, वे बम और रिवाल्वर को खिलौना समझती थीं। सात अक्टूबर को इनका जन्मदिन है।

कोलकाता के अधिवेशन में अमर शहीद भगत सिंह को बचा कर ले जाने में इनकी प्रमुख भूमिका थी। भगत सिंह हैट लगाकर अंग्रेज जैसे थे, दुर्गा भाभी उनकी पत्नी और अमर शहीद राजगुरु उनके नौकर बने थे। क्रांतिकारियों के मास्टर माइंड क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की पत्नी थीं। भाभी बम बनाने में भी एक्सपर्ट थीं। असेंबली बम कांड के बाद भगत सिंह आदि क्रांतिकारी गिरफ्तार हो गए थे। दुर्गा जी ने उन्हें छुड़ाने के लिए वकील को पैसे देने के लिए सारे गहने बेच तीन हजार रुपए दिए थे। एक बम बनाते समय इनके पति भगवती चरण बोहरा जी चिथड़े उड़ गए थे।

शहीदों की अर्धशताब्दी समारोह का आयोजन जब

आगरा में हुआ तब, वे क्रांतिकारी, इतिहासकार श्रीमन्मथनाथ गुप्त, भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी श्री शिव वर्मा, क्रांतिकारी श्री जयदेव कपूर के साथ दुर्गा भाभी भी थीं। उसके बाद 6 अक्टूबर 1985 को जब क्रांतिकारी शिव वर्मा जी का नागरिक अभिनंदन सरदार भगत सिंह शहीद स्मारक समिति ने किया, तब भी दुर्गा भाभी जी आईं थी। तब मुझे उनका सम्मान करने का मौका मिला। उसके बाद ले कई बार आगरा आईं और मुझे उनके साक्षात्कार का मौका मिला।

मेरे पूज्य पिताजी स्वाधीनता सेनानी स्व.रोशनलाल करुणेश से उनका परिचय था। उन्होंने लखनऊ के मांटेसरी स्कूल खोला था, जो आज भी संचालित है। उनसे लगातार पत्राचार होता रहता था। दुर्गा भाभी सहित इन सभी क्रांतिकारियों ने अभिनंदन ग्रंथ में पिताजी के बारे में भी विचार लिखे थे।

मैं जब भी दुर्गा भाभी जी क्रांतिकारी जीवन पर विचार करता हूं तो मेरा मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। उनसे मुलाकात के क्षण याद आते ही मैं रोमांचित हो उठता हूं।

(चित्र में क्रांतिकारी श्रद्धेय दुर्गा भाभी जी को माल्यार्पण करता हुआ मैं, 6 अक्टूबर 1985, क्रांतिकारी शिव वर्मा अभिनंदन समारोह)

मेरी पत्रकारिता की परीक्षा था गुरुदास मान का इंटरव्यू

संस्मरण-7

मेरी पत्रकारिता की परीक्षा था गुरुदास मान का इंटरव्यू

अमर उजाला में वर्ष 1991 में सांस्कृतिक पत्रकारिता शुरू कर चुका था। कुछ छोटे-छोटे समाचार छपने लगे थे। नौ नवंबर को आगरा में पंजाबी गायक गुरुदास मान आए। उन दिनों उनका दिल दा मामला जैसे कई गीत सुपर हिट हो चुके थे। लायंस क्लब आगरा यूनाइटेड ने उत्तरकाशी के भूकंप पीड़ितों की सहायतार्थ गुरुदास मान नाइट का आयोजन होटल क्लार्क शिराज में किया। अमर उजाला के डायनमिक सिटी इंचार्ज श्री राजीव दधीच थे। उन्होंने ही अमर उजाला में मेरी पत्रतकारिता की शुरू कराई थी। उन्होंने कहा आदर्श, आज तुम्हारी परीक्षा की घ़ड़ी है, तुम्हें हर हालत में गुरुदास मान का इंटरव्यू करना है।
फील्ड में पहली बार उतरा थे। कैसे, कहां क्या, कुछ पता नहीं था। फोटो जर्नलिस्ट श्रीजगदीश के साथ होटल क्लार्क शिराज पहुंचा। वहां इंटरव्यू के लिए प्रयास किए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। मान ने कहलवा दिया कि कार्यक्रम से पहले वे रियाज करते हैं, इसलिए वे किसी से नहीं मिलते। मैं बड़ा परेशान, आखिर परीक्षा की घड़ी थी। उनके कार्यक्रम का कवरेज किया। मुख्य अतिथि तत्कालीन मंडलायुक्त बीके चतुर्वेदी ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया। गुरुदास ने ये सिला मिला हैं,दोस्ती के पीछे, दिल दा मामला है, जैसे कई गीत सुनाकर माहौल को खुशनुमा बना दिया। कार्यक्रम का कवरेज मैंने भाई जगदीश को लिखकर दे दिया। कार्यक्रम के समापन के बाद आयोजकों के माध्यम से मान से मिलने का प्रयास किया। उन्होंने रूम पर बुला लिया। आधी रात के बाद वे थके हुए थे, लेकिन मुझे तो साक्षात्कार लेना ही था। उन्होंने बड़े प्रेम से बातें की।
दूसरे दिन यह एक्सक्लूसिव इंटरव्यू तीन कालम में प्रकाशित हुआ तो अखबार के साथ-साथ मेरी भी वाहृ-वाही हुई। 27 फरवरी 1990 को गुरुदास मान ताजमहोत्सव में भी आए। उसके बाद उनका कई बार उनका आगमन हुआ। उनसे मुलाकात और बात होती रही, लेकिन पहला इंटरव्यू मेरी पत्रकारिता की सफल परीक्षा साबित हुआ।

(गुरुदास मान-एक परिचय ---इंटरनेट से

गुरुदास मान ने गायन के अलावा वारिस शाह-इश्क दा वारिस, लोंग दा लश्करा, शहीद-ए-मुहब्बत (बूटा सिंह) ,  वीर-जारा समेत 50 से ज्यादा पंजाबी, हिंदी, हरियाणवी फिल्मों में अभिनय किया है। दूरदर्शन दिल्ली के पॉप टाइम्स नामक प्रसिद्ध शो को भी लिखा और निर्देशित किया। सितम्बर 2010 में ब्रिटेन के वोल्वरहैम्टन विश्वविद्यालय ने गुरदास जी को विश्व संगीत में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। 14 दिसम्बर 2012 को उन्हें पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के 36वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल ने डाक्टर ऑफ लिटरेचर की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। वे अपनी मंजिल की ओर लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

आधुनिक तुलसी मोरारी बापू की कथा में बरसा था राम रंग

संस्मरण-6

आधुनिक तुलसी मोरारी बापू की कथा में बरसा था रंग

सांस्कृतिक पत्रकारिता के दौरान यही नहीं कि मैंने फिल्मी हस्तियों से मुलाकात की, देश के सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठापित कथावाचकों, संतों, महंतो, शंकराचार्यों, जैन आचार्यों के दर्शन, उनसे साक्षात्कार करने का भी परम सौभाग्य मुझे मिला। कथावाचकों में जिन्हें मैं सर्वोच्च शिखर पर मानता हूं, वे हैं संत मोरारी बापू। वे कथावाचक ही क्यों, संत हैं, इस भारत के। वे आधुनिक तुलसी हैं, जो देश-विदेश में भगवान राम की कथा सुना रहे हैं। समंदर, टापू, हवाई जहाज, यानि जल, थल, नभ में भी उन्होंने भगवान श्रीराम का गुणगान किया  है। गणिकाओं के लिए भी उन्होंने कथा का वाचन किया।

ऐसे अन्यतम संत मोरारी बापू की कथा मेरे जीवन में पहली बार और अभी तक आखिरी बार छह सितंबर वर्ष 2003 में शहजादी मंडी स्थित तारघर मैदान में हुई। नौ दिवसीय इस कथा में बापू ने ताजमहल को अपना विषय बनाते हुए मानस तेजो महल पर विस्तृत व्याख्या की थी। उनका कहना था कि तुलसीकृत रामचरित मानस प्रेम का अनुपम सागर है, जिसमें डूबने से जीवन उपकृत हो जाता है।

बापू की इस कथा में धर्म का मर्म था। भगवान राम के प्रति राग था, अनुराग था। कथा के दौरान जब वे फिल्मी गीत गाते थे, तो माहौल में मस्ती छा जाती थी, लेकिन वे हर फिल्मी गीत की बहुत गहराई से धर्म आधारित व्याख्या करते थे।

उस समय में मैं दैनिक जागरण में था। भाई राजकुमार शर्मा अमर उजाला अखबार में थे। हम दोनों ने बहुत गजब का कवरेज दिया, बल्कि उनकी जैसी शख्सियत थी, वैसे दिया। बापू का प्रवास स्थल होटल ताजखेमा था। वहां बापू की प्रेस वार्ता हुई थी, जहां उन्होंने 8 सितम्बर  को सभी पत्रकार साथियों को सम्मानित भी किया था। इस कथा का मीडिया मैनेजमेंट सदर बाजार वाले श्री ललित गुप्ता ने संभाला था। ललित जी कई साल से बापू की कथा एक बार फिर आगरा में कथा कराने में जुटे हैं। शायद इस वर्ष उन्हें सफलता मिल जाए।
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(इंटरनेट से--कौन हैं मोरारी बापू--- मोरारी बापू उर्फ़ मोरारी दास प्रभु दास हरियाणी एक धार्मिक गुरु और हिन्दू धार्मिक कथा वाचक हैं। ये गुजराती और हिंदी दोनों भाषा का प्रयोग करते हैं। ये मूल रूप से तलगाजरडा, गुजरात के निवासी हैं। ये भारत में विभिन्न प्रांतों के अलावा यूनाइटेड स्टेट्स, यूनाइटेड किंगडम, साउथ अफ्रीका, केन्या, यूगांडा आदि देशों में भगवान श्रीराम की कथा सुना चुके हैं। इनकी पहली कथा 1960 में हुई थी, जिसे लोगों ने सराहा। अभी तक इन्होंने 800 से अधिक कथा कह चुके हैं।
-----आदर्श नन्दन गुप्त

पांच सुरक्षा चक्र थे ऐश्वर्या राय की पहली फ़िल्म की शूटिंग के

*संस्मरण-4*
पांच सुरक्षा चक्रों को तोड़ कर लिया ऐश्वर्या राय का साक्षात्कार*

विश्व के दो सौंदर्य आमने-सामने थे। एक तरफ ताजमहल, दूसरी तरफ विश्व सुंदरी एश्वर्या राय। देसी-विदेशी पर्यटकों की निगाह ताजमहल पर बाद में पड़ रह थी, पहले वे एश्वर्या राय को देखने को लालायित थे। हजूम इस कदर की नियंत्रण करना मुश्किल हो रहा था।
वर्ष 1997 में ऐश्वर्या अपनी पहली फिल्म की 'इरूवर की ' शूटिंग के लिए ताजमहल आईं थीं। यह फिल्म तमिल में थी, बाद में इस फिल्म को जींस के नाम से हिंदी में रिलीज किया गया था।
फिल्म की इस शूटिंग का पता मीडिया जगत लग चुका था। शूटिंग की सुरक्षा चाकचौबंद थी। पांच सुरक्षा चक्र थे- पुलिस, पीएसी, पुरातत्व विभाग की सुरक्षा एजेंसी, फिल्म यूनिट और एश्वर्या के निजी सुरक्षाकर्मी। लगता था कि वहां कोई पक्षी भी नहीं पहुंच पाएगा। मैं उस समय अमर उजाला में कवरेज करता था। मैं, फोटो जर्नलिस्ट ब्रिजेश सिंह के साथ ताजमहल पहुंचा। फिल्म निर्देशक मणिरत्न थे। वे पहले कई क्षेत्रीय फिल्मों की शूटिंग के लिए आगरा आते रहे थे, हल्की-फुल्की पहचान थी, लेकिन वह काम नहीं आई। ब्रिजेश की ताजमहल के कई अधिकारियों से पहचान थी तो धीरे-धीरे शूटिंग स्थल की ओर बढ़ते गए। कुछ पत्रकारों को तो पहले ही रोक दिया गया था। थोड़ी दूर पहुंचने के बाद हमें भी रोक दिया। लगा कि वापस लौटना पड़ेगा। तभी वहां आज अखबार के वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर हमारे बड़े भाई श्री विनोद अग्रवाल भी वहां पहुंचे। वे भी हमारे साथ हो गए। उनके पुलिस, पीएसी व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से अच्छे संबंध थे। वे उनसे बात करने लगे। जब उच्च अधिकारियों से कोई मित्रवत बात कर रहो हो तो अधीनस्थ कैसे रोकते। विनोद जी के साथ हम दोनों भी बात करते-करते एश्वर्या के पास तक पहुंच गए। मैं मौके को चूकने नहीं देना चाहता था। ब्रिजेश सिंह ने फोटो शूट किए। मैंने बिना कागज पैन निकाले एश्वर्या से प्रश्न कर दिए। आगरा में इससे पहले कब आई हो। यहां किस फिल्म की शूटिंग हो रही है, ताजमहल कैसा लग रहा है। भविष्य की योजना क्या है। हालांकि विनोद जी बिलकुल मेरे साथ थे, लेकिन शायद वे कुछ समझ नहीं पाए या मेरे प्रति उनका स्नेह था। हम सब लोग वहां से लौट आए। कोई अन्य पत्रकार वहां नहीं पहुंच सके। माहौल का वर्णन करते हुए मैंने अमर उजाला में लिखा- विश्व के दो सौंदर्य आमने सामने, एक ओर विश्व की खूबसूरत इमारत ताजमहल तो दूसरी ओर विश्व सुंदरी ऐश्वर्या।
उसके बाद चारों प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिख दिया। चार कालम में यह एक्सक्लूसिव इंटरव्यू अमर उजाला में प्रकाशित हुआ। इसका श्रेय आदऱणीय विनोद अग्रवाल भाई साहब का रहा।

विश्व में सौंदर्य का परचम फहराने वाली एश्वर्या राय के फिल्मी जीवन का सबसे पहला साक्षात्कार लेने का सौभाग्य मैं मानता हूं, क्योंकि उनकी पहली फिल्म का पहला सीन मेरे सामने हुआ और तभी मैंने उनका अनौपचारिक साक्षात्कार लिया। इससे पहले इंटरव्यू उनके विश्व सुंदरी के रूप में ही हुए होंगे। एसा मेरा मानना है।

फिल्म की शूटिंग के बाद तो एश्वर्या का कई बार आगमन हुआ, लेकिन इंटरव्यू फिर कभी किसी का नहीं हो पाया।

वर्ष 1994 में मिस वर्ल्‍ड का क्राउन पहनने के बाद भी ऐश्वर्या आगरा आई थीं, तब उनका ताजमहल में फोटो सैशन हुआ था। अमर उजाला के फोटो जर्नलिस्ट ब्रिजेश सिंह ने उनके तमाम फोटो लिए थे।
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*होटल अमर विलास में मनाया जन्मदिन*
एक नवंबर 2007 का प्रसंग याद आ रहा है। पता चला कि होटल अमर विलास में अमिताभ बच्चन व एश्वर्या पहुंचने वाले हैं। यह आगरा का ही नहीं, अन्य शहरों में भी सबसे बड़ा होटल है। पत्रकार वहां पहुंच गए। सबको काफी दूर खड़ा कर दिया। होटल में प्रवेश से लेकर लाबी में पहुंचने तक के दृश्य सभी ने दूर से कवर किए। एक नंबवर की रात ऐश्वर्या ने होटल 'अमर विलास' के ' कोहिनूर सूइट' में केक काटा। इस वक्त बच्चन परिवार के साथ उनके पारिवारिक मित्र अमरसिंह भी मौजूद थे। कोहिनूर सूइट का एक दिन का किराया एक लाख 60 हजार रुपए था। इसी सूइट में भारत-पाकिस्तान शिखर वार्ता के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भी ठहरे थे। उसके बाद कई बार वे आईं थीं, लेकिन उसमें अन्य साथियों ने कवर किया था।
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*एश्वर्या रॉय परिचय (इंटरनेट से)*
एश्वर्या रॉय बच्‍चन भारतीय फिल्‍म अभिनेत्री और 1994 की मिस वर्ल्‍ड प्रतियोगिता की विजेता हैं। उनका बॉलीवुड में करियर शानदार रहा है और वे भारत की पापुलर और हाईप्रोफाइल सेलिब्रिटीज में से एक मानी जाती हैं। उन्‍हें दो बार फिल्‍मफेयर पुरस्‍कार भी मिल चुका है। उन्‍हें भारत सरकार की ओर से 2009 में पद्मश्री और 2012 में फ्रांस सर‍कार की ओर से औरड्रे डेस आर्टस एट डेस लेट्रेस से सम्‍मानित किया
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*ये हैं उनकी खास फिल्‍में-*
इरूवर, और प्‍यार हो गया, जींस, हम  दिल दे चुके सनम, ताल, जोश, हमारा दिल आपके पास है, मोहब्‍बतें, बंटी और बबली, देवदास, दिल का रिश्‍ता, खाकी, रेनकोट, उमराव जान, धूम 2, गुरू, प्रोवोक्‍ड, द लास्‍ट लीजन, जोधा अकबर, सरकार राज, रावन, रोबोट, गुजारिश।
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*फोटो परिचय*
फिल्म जोधा अकबर की शूटिंग पर ऐश्वर्या राय से मिलने उनके ससुर और महानायक अमिताभ बच्चन पहुंचे थे। आगरा के किले की इस तस्वीर में आशुतोष के साथ ऋतिक रोशन, अनिल कपूर और अमिताभ बच्चन दिखाई दे रहे हैं। कुछ फोटो ताजमहल के हैं (कुछ फोटो इंटरनेट से)

काका हाथरसी ने इनाम में भेजा था 500 रुपये का मनीआर्डर

संस्मरण -3 (18 सितम्बर को जन्म-व पुण्यतिथि पर)

काका हाथरसी ने भेजा था इनाम में 500 रुपये का मनिआर्डर

बचपन से ही शख्सियतों को पत्र लिखकर उनका आशीर्वाद लेने की आदत थी। इसी के तहत हास्य कवि काका हाथरसी जी को मैंने पत्र लिखा, उनके काव्यमय आशीर्वाद पत्र आने लगे। सिलसिला कुछ ज्यादा बढ़ा तो वे अपने काव्य संग्रह मुझे भेजने लगे। उन्होंने मुझे तुकांत कोश भी भेजा, जिसमें तुकबंदी के लिए हर शब्द के पर्यायवाची शब्द थे। फोन उस समय नहीं थे, न इतनी बड़ी विभूति को फोन करने की हिम्मत। दैनिक और साप्ताहिक स्वराज्य टाइम्स में उनके बारे में कई लेख लगातार लिखे तो वे और प्रभावित हुए। उसके बाद तो उनका आशीर्वाद मिलता ही गया। वे अपनी वार्षिक पत्रिका हास्यरसम में भी मेरे लेख प्रमुखता से प्रकाशित करने लगे। मैंने उनके बारे में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे।

22 सितंबर 1985 में मैंने उनके बारे में एक लेख पंजाबी केसरी में लिखा। उनका पत्र आया, पूछा-वहां से कितना पारिश्रमिक मिला है। मैंने कहा कि पंजाब केसरी रचनाकारों को भुगतान नहीं करता। इस पर कुछ दिन बाद ही उनका एक मनिआर्डर 500 रुपये का आ गया, लिखा था कि ये मेरी ओर से इनाम है। तब 500 रुपये बहुत थे। इतना बड़ा इनाम मिलने से मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उनके इस प्रोत्साहन से मैं अन्य पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखता गया। चाहत यह थी कि इतनी बड़ी हस्ती से संबंध प्रगाढ़ होते जाएं।

उसी का एक परिणाम यह हुआ कि 3 मई 1990 को काका हाथरसी ट्रस्ट और उपासना संस्था ने आगरा में 15 वां काका हाथरसी हास्य समारोह का आयोजन किया। इसमें वर्ष 89 के श्रेष्ठ कवि के रूप में हास्य कवि सत्यदेव शास्त्री भोंपू को काका हाथरसी हास्य पुरस्कार प्रदान किया। सम्मान स्वरूप 15 हजार रुपये दिए। बिल्डर्स श्री जेएस फौजदार ने अध्यक्षता की। मुख्य अतिथि उद्योगपति केएन वासन थे। संचालन काका हाथरसी पुरस्कार ट्रस्ट के अध्यक्ष गीतकार नीरज ने किया था। सितार वादक स्व.अजय खन्ना की पत्नी श्रीमती रीता खन्ना, कवि डा.वीरेंद्र तरुण, श्री अरुण डंग, शशांक प्रभाकर, दिनेश पंडित, फिल्म प्रोड्यूसर व गीतकार माया गोविंद, रजनीकांत गिलहरी, डा.जगदीश सोलंकी, डा.राकेश शरद आदि शामिल थे। उपासना के अध्यक्ष अनिल शनिचर ने सभी का स्वागत किया था।

इसी वर्ष की हास्य रसम (1990) में काकाजी ने मेरे नाम से समारोह की रिपोर्ट प्रमुखता से प्रकाशित की। मेरा एक लेख काका हाथरसी की दाढ़ी में छिपा है हास्य का स्विच प्रकाशित किया। साथ ही हास्य समारोह 1990 के स्तंभ के रूप में विशिष्ट जनों के साथ मेरा चित्र भी प्रकाशित किया।

उसके बाद काकाजी के हाथरस स्थित निवास पर मिलने एक ही बार जा पाया, जब उनका स्वास्थ्य गड़बड़ा गया। एक दिन किसी ने सूचना भिजवाई कि काका हाथरसी की तबीयत ज्यादा खराब है और आगरा में ही एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हैं। उनसे मिलने मैं अपनी पत्नी के साथ पहुंचा। उस समय स्थिति बहुत नाजुक नहीं लग रही थी। हम दोनों को भरपूर आशीर्वाद दिया। मेरे कहने पर तब मेरे बड़े भाई विधायक जगन प्रसाद गर्ग भी उन्हें देखने गए थे। उसके बाद काकाजी हाथरस चले गए। 18 सितंबर 1995 में उनका निधन हो गया। उनकी शवयात्रा में शामिल होने में हाथरस गया। वसीयत के अनुसार ऊंट गाड़ी में उनकी शवयात्रा निकाली गई थी। श्मशान घाट पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया था। संयोग ही है कि उनका जन्मदिन भी 18 सितंबर (1906) ही है। उनके अवतरण और स्वर्गारोहण दिवस पर मैं उन्हें कोटि-कोटि नमन करता हूं। उनकी कीर्ति की छाया कमजोर पड़ती जा रही है। उनके परिजनों और शुभचिंतकों को इस संबंध में प्रयास करने चाहिए।

काकाजी के बारे में लिखे कुछ लेख

-हास्य कवि सम्राटः काका हाथरसी, पंजाब केसरी- 22 सितंबर 1985

-हास्य कवि सम्राटः काका हाथरसी –हास्य रसम 1986

-काका हाथरसीःजिनकी वाणी में ही हास्य है- विकासशील भारत, 18 सितंबर 1986

-सारे जग को हंसाने वाला कवि-काका हाथरसीः विकासशाली भारत- 03 सितंबर 1987

-हिंदी के आराधक-हास्य कवि काका हाथरसी-हास्य. रसम, 1988

-काका के कारतूस- पंजाब केसरी-8 जनवरी 1988  

-हिंदी सेवी काका हाथरसी-भोजपुरी लोक, इलाहाबाद-1989

-ये मां का चीर ही नहीं, कफन बेच देंगे-काका हाथरसी सम्मान समारोह की रिपोर्ट- हास्य रसम-1990

-काका हाथरसी की दाढ़ी में छिपा हास्य का स्विच- हास्य रसम- 1990

-जिनकी कीर्ति ध्वजा विश्व में फहरा रही है, हास्य कवि काका हाथरसी, दैनिक जागरण, 08 मार्च1990

,,,,,आदर्श नन्दन गुप्त

गीतकार हसरत जयपुरी ने सुनाई थी लव स्टोरी

संस्मरण 2

गीतकार हसरत जयपुरी ने सुनाई लव स्टोरी

पत्रकारिता के दौरान एसी शख्सियतों के साक्षात्कार लेने का भी शुभ अवसर भी जिन्हें याद करके आज भी मन रोमांचित हो उठता है। एसी ही विभूति थे बालीवुड के महान गीतकार हसरत जयपुरी। जिन्होंने हिंदी फिल्मों को बेशुमार

मधुर गीत दिए। वे 19 मार्च 1994 को सूरसदन में चित्रांशी द्वारा आयोजित याद ए फिराक आल इंडिया मुशायरे में पधारे थे। मुशायरा शुरू होने पर ही उनका आगमन हुआ तो सीधे मंच पर पहुंच गए। मंच पर विख्यात शायर कैफी आजमी भी मौजूद थे। पूरे मुशायरे का कवरेज अमर उजाला में लिख कर भेज दिया। अब हसरत जयपुरी शहर में आएं और उनका साक्षात्कार न हो, एसा नहीं हो सकता था। मैं व अन्य पत्रकार साथी मुशायरा खत्म होने तक उनका इंतजार करते रहे।

 मुशायरा खत्म होने के बाद हसरत जी मंच से उतरे तो उन्हें हम पत्रकारों ने घेर लिया। मैंने पूछ लिया कि आपकी एक लवस्टोरी बहुत चर्चित है।

यह सुनते ही उनके चेहरे की झुर्रियां गुलाबी पड़ गईं। चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थिरकने लगी। वे बोले, युवावस्था में ही उनके मन में कविता के कीड़े कुलबुलाने लगे थे। अपने पड़ोस में रहने वाली एक युवती राधा से प्यार हो गया। उसके लिए कविता लिखी थी-ये मेरा प्रेमपत्र पढ़ कर, के तुम नाराज़ न होना। वे बोले, यह ध्यान नहीं कि कविता राधा को दी कि नहीं, लेकिन फिल्म निर्माता राज कपूर ने इसे अपनी फिल्म संगम (1964) में शामिल किया और यह गीत पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया था। इसके बाद बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं, गीत में भी राधा के नाम का उपयोग किया।  

इस प्रसंग को सुनाने के बाद ही वे ज्यादा देर तक नहीं रुके और सूरसदन के वीआइपी गेट की सीढ़ियों से चित्रांशी के अध्यक्ष श्रीकेसी श्रीवास्तव के कंधे का सहारा लेकर उतरे और कार से गंतव्य को रवाना हो गए। उनके साथ विख्यात शायर कैफी आजमी भी थे।

श्री हसरत जयपुरी जी का यह प्रेम प्रसंग शुरू से चर्चा का विषय बना था, जिसे उन्होंने बड़े ही चटखारे के साथ हम लोगों को सुनाया था।

 

जयपुर में जन्मे हसरत जयपुरी का नाम इकबाल हुसैन था।

1940 में बस परिचालक की नौकरी के लिए मुंबई आ गए। वह मुशायरों में हिस्सा लेते थे। एक मुशायरे में, पृथ्वीराज कपूर ने जयपुरी की शायरी सुनी और अपने बेटे राज कपूर से उनके लिए सिफारिश की। राज कपूर उन दिनों शंकर जयकिशन के साथ एक संगीतमय प्रेम कहानी, बरसात (1949) की योजना बना रहे थे। जयपुरी ने फिल्म के लिए अपना पहला गीत जिया बेकरार है लिखा। उनका दूसरा गीत छोड़ गए बालम था।शैलेंद्र के साथ जयपुरी ने 1971 तक राजकपूर की सभी फिल्मों के लिए गीत लिखे। जयकिशन की मृत्यु के बाद तथा मेरा नाम जोकर (1970) और कल आज और कल (1971) की असफलताओं के बाद, राज कपूर ने अन्य गीतकारों और संगीत निर्देशकों की ओर रुख किया। राज कपूर शुरू में उन्हें प्रेम रोग (1982) के लिए वापस बुलाना चाहते थे, लेकिन बाद में एक और गीतकार, अमीर क़ज़लबाशके लिए राज़ी हो गए। कपूर ने आखिरकार उन्हें फिल्म राम तेरी गंगा मैली (1985 ) के लिए गीत लिखने के लिए कहा। बाद में, उन्होंने हसरत को फिल्म हिना (1991) के लिए तीन गाने लिखने के लिए भी आमंत्रित किया। जब साथी गीतकार शैलेन्द्र ने निर्माता के तौर पर फ़िल्म तीसरी कसम बनाई, तब उन्होंने जयपुरी को फिल्म के लिए गीत लिखने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने फिल्म हलचल (1951) के लिए पटकथा भी लिखी। गीतकार के रूप में उनकी आखिरी फिल्म हत्या: द मर्डर (2004) थी। अन्य तमाम लोकप्रिय गीत उन्होंने लिखे। 17 सिंतबर 1999 को उन्हें इस संसार से विदा ले ली। उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों के लिए दो हजार से भी अधिक गीत लिखे थे।

(जीवन परिचय इंटरनेट के आधार पर है।)

(चित्र 19 मार्च 1994 को याद ए फिराक आल इंडिया मुशायरे का है, जिसमें चित्रांशी के अध्यक्ष श्री केसी श्रीवास्तव,  श्री हसरत जयपुरी व कैफी आजमी जी की अगवानी कर रहे हैं।)

Thursday, October 8, 2020

एक पर्ची से अपनी जैसी हो गई थीं आशा भोसले जी

23 जनवरी 2005 की बात है। हमारे एक मित्र से पता चला कि सुर साम्राज्ञी आशा भोसले जी किसी कार्यक्रम से लौटते हुए होटल ताजव्यू में रुकी हुई हैं। कुछ समय ही उनका प्रवास रहेगा। मैं होटल पहुंचा। मैं दैनिक जागरण से था और अमर उजाला से भाई कुमाल ललित पहुंच गए। होटल में किसी तरह मैंने जुगाड़ बनाई तो उनका रूम नंबर पता  चला गया। फोन मिलाया तो आशाजी के पीए ने उठाया। वह होटल की लाबी में आया और कह दिया कि आईजी, डीआईजी, कमिश्नर साहब के भी फोन आ रहे हैं, लेकिन आशाजी किसी से नहीं मिल रहीं। वे रियाज कर रही हैं।

  मैं निराश हो रहा था, इतनी बड़ी शख्सियत से बिना मिले लौटने पर। अचानक मैंने उनके पीए से कहा कि तुम बस मेरी एक पर्ची उन्हें दे देना। मना करती हैं तो लौट जाएंगे। मैंने बहुत ही विनम्रता के साथ लिखा कि मुझे 15 साल अनवरत सांस्कृतिक पत्रकारिता करते हुए हो गए। मेरे सामने पहली बार प्रेम की इस नगरी में आपका पदार्पण हुआ है। अब फिर न जाने कब आना होगा। आज आपके दर्शन न हुए तो मेरी 15 साल की पत्रकारिता की साधना अधूरी रह जाएगी। बस पांच मिनट का समय दे दी दीजिए।

पीए ने पर्ची उन्हें दी, कुछ ही पल बाद बुलावा आ गया। पीए न सख्त हिदायत दी कि पांच मिनट से ज्यादा समय मत लेना। हमने स्वीकरोक्ति में हां कह दी और पहुंच गए कक्ष में। हम दोनों (मैं और कुमार ललित) ने उनके चरण स्पर्श किए। बातचीत शुरू की। फिल्मों से संबंधित बहुत सारी बातें हुई। वर्ष 1957 में रिलीज हुआ आगरा रोड फिल्म की चर्चा की। उसमें उन्होंने गीत गाया है- सुनो सुनाएं तो तुम्हें एक छोटी सी कहानी। हमारे व्यवहार से तो फिर वे अपनी जैसी ही हो गईं। पांच मिनट के जब 20 मिनट हो गए तो पीए आंख से इशारा करे, लेकिन वे तो अपने घर, परिवार की बातें भी करने लगीं थीं। मुझे आश्चर्य हुआ कि इतनी बड़ी शख्सियत और हमें इतना स्नेह दे रही हैं। हम दोनों ने आधा घंटे से अधिक बातें कीं, फिर भी उनका मन नहीं भरा, न हमारा, लेकिन हम उनकी व्यस्तता और एक-एक पल की कीमत जानते थे। उन्हें फिर से चरण स्पर्श कर वापस आ गए। मुझे गर्व हो रहा था उस पर्ची पर जिसने इतने गौरवाशाली पलों को उपलब्ध कराया। मुलाकात हुए एक लंबा समय बीत गया। अभी आठ सितंबर को उनके जन्मदिन पर वे यादें फिर ताजा हो गईं।

आशाजी के बारे में बता दूं कि आठ सितंबर 1933 को जन्मी पार्श्व गायक आशा भोसले जी 1000  से अधिक फिल्मों में 12,000 से अधिक गीत गा चुकी हैं। वे विभिन्न भाषाओं में फिल्म संगीत, पॉप गीत और पारंपरिक गीत गाती हैं। भारतीय संगीत इतिहास के सबसे प्रेरणादायक और सम्मानित गायकों में से वे एक हैं। अभी भी गा रही हैं। मैं उनके स्वस्थ रहते हुए दीर्घजीवन की कामना करता हूं।

*आदर्श नन्दन गुप्त*

Thursday, April 23, 2020

जावेद अख्तर साहब का इंटरव्यू लेते हुए आदर्श नंदन गुप्त 



                         जावेद अख्तर साहब  - विश्व विख्यात गीतकार 


विख्यात फिल्मी गीतकार शायर जावेद अख़्तर से साक्षात्कार लेते हुए
जावेद अख्तर कवि और हिन्दी फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक हैं। वह सीता और गीता, ज़ंजीर, दीवार और शोले की कहानी, पटकथा और संवाद लिखने के लिये प्रसिद्ध है। ऐसा वो सलीम खान के साथ सलीम-जावेद की जोड़ी के रूप में करते थे। इसके बाद उन्होंने गीत लिखना जारी किया जिसमें तेज़ाब, 1942: अ लव स्टोरी, बॉर्डर और लगान शामिल हैं।
आगरा में वे कई बार आए और उनके साक्षात्कार लेने का अवसर मिला
एम.  एफ.  हुसैन साहब का साक्षात्कार व औटोग्राफ लेते हुए 


                                   एम. एफ. हुसैन साहब - एक महान चित्रकार 


विश्व विख्यात चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन से ऑटोग्राफ व इंटरव्यू लेने का गौरवशाली क्षण, 8 जुलाई 2001, होटल होली डे इन।

सम्मान: पद्म श्री (1955), पद्म भूषण (1973), पद्म विभूषण (1991)
मक़बूल फ़िदा हुसैन, जिन्हें एम एफ़ हुसैन के नाम से भी जाना जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय चित्रकार थे। वे मशहूर ‘द प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। ‘भारत का पिकासो’ कहे जाने वाले हुसैन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 20वीं शदी के सबसे प्रख्यात और अभिज्ञात भारतीय चित्रकार थे। हुसैन को मुख्यतः उनकी चित्रकारी के लिए जाना जाता है पर वे कला की दूसरी विधाओं जैसे फिल्मों, रेख-चित्रण, फोटोग्रफी इत्यादि में भी पारंगत थे।
उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया। सन 1967 में उन्हें ‘थ्रू द आईज ऑफ़ अ पेंटर’ के लिए ‘नेशनल फिल्म अवार्ड फॉर बेस्ट एक्सपेरिमेंटल फिल्म’ मिला। सन 2004 में उन्होंने ‘मिनाक्षी: अ टेल ऑफ़ थ्री सिटीज’ नामक फिल्म भी बनायी जिसे ‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ में प्रदर्शित किया गया।
बम्बई गये और जे. जे. स्कूल ऑफ़ आअपने करियर के शुरूआती दौर में पैसा कमाने के लिए हुसैन सिनेमा के पोस्टर बनाते थे। पैसे की तंगी के कारण वे दूसरे काम भी करते थे जैसे खिलौने की फ़ैक्टरी में काम जहाँ उन्हे अच्छे पैसे मिल जाते थे। जब भी उन्हें समय मिलता वे गुजरात जाकर प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बनाते थे।
एक युवा पेंटर के तौर पर मकबूल फ़िदा हुसैन ‘बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स’ की राष्ट्रवादी परंपरा को तोड़कर कुछ नया करना चाहते थे इसलिए कुछ और चित्रकारों और कलाकारों के साथ मिलकर उन्होंने वर्ष 1947 में ‘द प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ की स्थापना की।
मकबूल फ़िदा हुसैन के कला कृतियों की पहली प्रदर्शनी सन 1952 में ज्यूरिख में लगायी गई। अमेरिका में उनके कला की प्रदर्शनी पहली बार सन 1964 में न्यू यॉर्क के ‘इंडिया हाउस’ में लगायी गई।
सन 1967 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘थ्रू द आईज ऑफ़ अ पेंटर’ बनाई जिसे ‘बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में प्रदर्शित किया गया और ‘गोल्डन बेयर शॉर्ट फिल्म’ का पुरस्कार भी मिला। सन 1971 में ‘साओ पावलो बाईएन्निअल’ में पाब्लो पिकासो के साथ-साथ वे भी विशिष्ट अतिथि थे।
1990 के दशक में हुसैन को हिन्दू देवी-देवताओं को गैर-पारंपरिक तरीके से दर्शाने के कारण कुछ हिन्दू संगठनों का विरोध झेलना पड़ा। उनके खिलाफ अदालत में कई मुकदमे दाखिल किये गए और सन 1998 में कुछ अतिवादी तत्वों ने उनके घर पर हमला कर तोड़-फोड़ भी किया। विरोध-प्रदर्शन के कारण उनकी एक प्रदर्शनी को लन्दन में भी बंद करना पड़ा।
सन 2000 मेंउन्होंने प्रसिद्ध अदाकारा माधुरी दीक्षित को लेकर ‘गजगामिनी’ नामक फिल्म बनायी। सन 2004 में उन्होंने अदाकारा तब्बू के साथ एक और फिल्म ‘मिनाक्षी: अ टेल ऑफ़ थ्री सिटीज’ बनायी पर कुछ मुस्लिम संगठनों के विरोध के बाद हुसैन ने फिल्म को सिनेमाघरों से उतार लिया।
सन 2006 में हुसैन पर हिन्दू देवी-देवताओं के नग्न चित्रों के द्वारा ‘लोगों की भावना को ठेस पहुँचाने’ का आरोप लगाया गया। हालाँकि फिल्म सिनेमा घरों में ज्यादा समय तक प्रदर्शित नहीं हो पाई पर फिल्म समीक्षकों ने फिल्म को सराहा और इसे कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए। इस फिल्म को ‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ में भी प्रदर्शित किया गया।
सन 2008 में एम एफ हुसैन सबसे महंगे भारतीय चित्रकार बन गए जब क्रिस्टीज के नीलामी में उनकी एक चित्रकला लगभग 16 लाख अमेरिकी डॉलर में बिकी।
सन 2007 के आस-पास तक ‘लोगों की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने’ के मामले में हुसैन के खिलाफ 100 से भी ज्यादा मुकदमे दाखिल हो गए थे । और इन्ही में से एक मामले में ‘अदालत में हाजिर नहीं होने के लिए’ उनके खिलाफ वारंट भी जारी कर दिया गया। हालाँकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस वारंट को बाद में रद्द कर दिया था। हुसैन को मौत की धमकियाँ भी मिली जिसके बाद उन्होंने 2006 में स्वेच्छा से देश छोड दिया था और लंदन में प्रवास करने लगे

स्व श्री रवींद्र जैन जी की का साक्षात्कार लेते हुए 

                                       रवींद्र जैन - एक महान गायक व संगीतकार 


दूरदर्शन के tv सीरियल रामायण में जैसे ही चौपाइयां सुनाई देती है मन श्रद्धा से उमड़ पड़ता हैं। उन्ही रविन्द्र जैन से एक गौरवशाली मुलाकात व साक्षात्कार।साथ हैं पत्रकार साथी डॉ महेश धाकड़, मोहन शर्मा,मनोज मिश्रा।
जन्मजात नेत्रहीन संगीतकार रविन्द्र जैन, जिन्होंने दूरदर्शन पर रामानंद सागर की रामायण को सुर और संगीत दिया।
जन्मजात नेत्रहीन संगीतकार , जिन्होंने रामायण की चौपाईयों को जीवंत किय।

रविन्द्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ था |
1960 में प्रतिभूषण भट्टाचार्य उनको मुंबई लेकर गए और उनको फिल्मों में काम दिलाया | उन्होंने सौदागर ,चोर मचाये शोर , गीत गाता चल , चितचोर , दुल्हन वही जो पिया मन भाये , पहेली , अंखियों के झरोखे से और नदिया से पार जैसी मशहूर फिल्मों के लिए संगीत दिया | संगीत के साथ साथ उन्होंने कई गीत लिखना भी शुरू कर दिया था। रविन्द्र जैन ने मो.रफी , किशोर कुमार और येसुदास जैसे महान गायकों के साथ काम किया | उन्होंने फिल्मों से काफी नाम कमाया, लेकिन उनको असली शोहरत टीवी से मिली | उन्होंने 80 के दशक से लेकर तीन दशकों तक टीवी जगत के लिए ना केवल संगीत दिया बल्कि कई गाने भी गाये | रामानदं सागर की रामायण से सबसे पहले उन्होंने अपने टीवी करियर की शरुआत की, जिसमें उन्हों संगीत भी दिया और रामायण का शीर्षक गीत और चौपाइया भी गायीं।| आज भी आपको उनकी चौपाई “मंगल भवन अमंगल हारी ” याद होगी जिसे हम उन्ही के संगीत और स्वरों में आज गाते है | बचपन से ही भजनों का शौक रखने वाले रविन्द्र जैन ने पूरे दिल से रामायण के लिए संगीत दिया |
इसके बाद दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों अलिफ़ लैला ,श्री कृष्णा , जय गंगा मैया , साईं बाबा और माँ दुर्गा जैसे पौराणिक धारावाहिकों में रामानन्द सागर के साथ काम किया | 9 अक्टूबर 2015 को 71 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

Wednesday, April 22, 2020

                         
उस्ताद बिस्मिल्ला खान का इंटरव्यू लेते हुए 
     
                               वाह उस्ताद बिस्मिल्ला खां

19 फरवरी 2000 को वरिष्ठ पत्रकार श्री विवेक जैन द्वारा मेरे साथ शहनाई सम्राट भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहिब का लिया इंटरव्यू ,
पढियेगा जरूर, कई प्रश्नों के बहुत रोचक जवाब दिए थे खान साहिब ने
प्रश्न: 1- पॉप संगीत के तूफान में भारतीय संगीत की वर्तमान समय में क्या स्थिति है?
जवाब- पॉप संगीत भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है क्योंकि भारतीय संगीत एक साधना है उसे वर्षों तक परिश्रम करके सीखना पड़ता है और जो वर्षों तक रियाज करने के पश्चात आता है।पाश्चात्य नृत्य इससे बिल्कुल उल्टा है उसे सीखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। मेरा यह मानना है कि प्रत्येक भारतवासी अपने बच्चों को भारतीय संगीत अवश्य सिखाएं। यदि 10 में से 4 बच्चे भी इस संगीत को सीख गए तो हमारी संस्कृति बनी रहेगी। हम बड़ी मुश्किल से इस मुकाम पर अपनी संस्कृति को बचाकर लाए हैं। क्या हमारे यहां नृत्य नहीं है लेकिन इसमें फर्क है कि भारतीय नृत्य सिखाया जाता है, तब भी आसानी से नहीं आता जबकि विदेशी नृत्य बिना सिखाये आ जाता है। ऐसा प्रयास करें कि शास्त्रीय संगीत मर नहीं जाए।
2- वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर आपका क्या कहना है ?
जवाब - आजादी के बाद हम एक हैं। हिंदू मुसलमान सभी एक हैं ।अब क्यों लड़ते हो ? एक बार नीति बनाकर सभी नेता अमल करें लेकिन सब आपस में लड़ रहे हैं। मेरी सभी राजनीतिक को सलाह है कि संगीत सीखे लड़ाई खत्म हो जाएगी।
3- आज संगीत में रीमिक्स हो रहा है, पाश्चात्य संगीत के साथ शास्त्रीय संगीत के साथ नए नए प्रयोग हो रहे हैं।क्या आप भी ऐसा कोई प्रयोग कर रहे हैं ?
जवाब - पहले सुनिए, गौर कीजिए ,हमारे यहां इतने राग हैं, पांच राग ,तीस रागनियां, छह राग, छत्तीस रागनियां, एक राग के पांच और उसके पुत्र और भांजे आठ आठ हैं ।कुल मिलाकर देखिए कितने हुए ? बिलावल, तोड़ी ,भैरव कितने हैं ? हमें प्योर राग लेकर चलना है मिक्स नहीं करना है।
4- युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
जवाब- पढ़ना जरूर है, लेकिन कामकाज के साथ। संगीत अवश्य आना चाहिए। भजन गाये, रियाज करें। संगीत से पीछे नहीं हटना है तभी हमारी संस्कृति कायम रह सकेगी।
5- टीवी व मीडिया ने जो हमारी संस्कृति को दूषित कर दिया है तो हम किस तरह पुरानी संस्कृति में लौट सकते हैं ?
जवाब - अब वह समय लौटकर नहीं आएगा। जो बिना सिखाए आ रहा है, वही बढ़ेगा। जो सिखाने पर भी नहीं आ रहा उसका क्या भविष्य है ?
6- किसी राष्ट्रीय नेता ने आपके शहनाई सुनी हो तब का कोई प्रसंग या संस्मरण वो तो है वह सुनाएं ?
जवाब - पंडित जी और इंदिरा जी मुझे बहुत मानते थे। एक बार 15-20 कलाकारों का एक कार्यक्रम था, इंदिरा जी भी आई थी ।कार्यक्रम की शुरुआत मेरी शहनाई से हुई ।जैसे ही हमने "रघुपति राघव राजा राम" की धुन बजाई वे मस्त हो गई और एकाग्र चित्त होकर सुनती रही। मेरी शहनाई वादन के बाद वह चली गई।
7- ताज महल के बारे में बताएं ।क्या कभी ताजमहल के चबूतरे पर बैठकर शहनाई बजाने का मन नहीं हुआ ?
जवाब - बेमिसाल है, चीज़ ऐसी है कि जवाब नहीं। दुनिया वाले इसकी नकल करके ले जाते हैं ।हम जब भी आए हैं ताजमहल खूब घूमे हैं ।अभी ज़ी टीवी के एक कार्यक्रम में आए थे। तब ताजमहल के पीछे एक 5 मिनट का कार्यक्रम दिया था।
8 - अगर आपको देश का मुखिया बना दिया जाए तब ?
जवाब- इस लायक नहीं है। लेकिन अगर हमको बना दिया गया बाबू ,तो यकीन मानिए राष्ट्रपति 10 राग 5 ताल याद हो तब, वजीर ए आजम 8 राग चार ताल याद हो तब। यह सब होगा तब जगह देंगे।
9- नई पीढ़ी से उम्मीदें ?
जवाब - किसी भी विद्यालय ने पंडित रविशंकर,उस्ताद अमजद अली खान नहीं दिए।क्योंकि वहां शिक्षा दी जाती है लेकिन रियाज नहीं कराते।
10- शहनाई का क्या भविष्य है ?
जवाब - रहेगी, हमारे मामू, परनाना, दादा, परदादा ने बजाया ।एक दो अवश्य से निकलेंगे,जो बजाएंगे।हमने एक रुपए का सवा सेर घी खाया है जो अब नहीं मिलता। दम का काम है फूंक मारनी पड़ती है, अब वह ग़िज़ा कहां से दें।रियाज ही रह गई है। कौन आएगा हम नहीं जानते ? मालिक शहनाई को सुर देगा तो आदमी भी देगा।
11- सबसे अच्छा जीवन का कार्यक्रम ?
जवाब- अब्दुल करीम खान तोड़ी अच्छा गाते थे।मुंबई के राज महल बिल्डिंग में ठहरे थे ।अब्दुल करीम कुछ साल पहले गुजर गए थे,उनकी याद में एक कार्यक्रम था। लोग लिवाने आ गए ,वहां चले गए। करीम खान के चित्र के पास शहनाई बजाई।तोड़ी बजाई तो देखा लोगों की आंखों में आंसू थे,हिचकी बंध गई। एक बुढ़िया बोली, कौन कहता है कि अब्दुल करीम खा नहीं रहे ।ऐसी तोड़ी जीवन में फिर नहीं बजा पाया।
12- आपकी जवानी व जिंदादिली का राज ?
जवाब- (हंसते हुए) जवानी का राज कुछ भी नहीं है। केवल संगीत व संगीत से लगाव है।हमें दुनियादारी से ज्यादा वास्ता नहीं है। आज भी पांचों वक्त की नमाज व अल्लाह का करम है।